Ram Avtar Jaggi murder case: रामअवतार जग्गी हत्याकांड में उच्च न्यायालय को निर्देश; सीबीआई की अपील सुनी जाए!

Fri, Nov 07 , 2025, 08:00 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नयी दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित रामअवतार जग्गी हत्याकांड मामले में गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने एक अहम निर्णय में सीबीआई की अपील को स्वीकार करते हुए उसे छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय को वापस भेजने का आदेश दिया है, ताकि मामले की साक्ष्य और तथ्यों के आधार पर पर विस्तृत सुनवाई की जा सके। उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई की अपील में विलम्ब को माफ़ करते हुए यह निर्देश दिया है।

उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने यह फैसला सुनाया। यह मामला 04 जून 2003 का है, जब एनसीपी नेता रामअवतार जग्गी की रायपुर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। प्रारंभिक जांच राज्य पुलिस द्वारा की गई, लेकिन बाद में असंतोष के चलते मामला सीबीआई को सौंपा गया। जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में अमित जोगी (पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र) समेत कई लोगों पर साजिश और हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए थे।

हालांकि, 31 मई 2007 को विशेष सीबीआई अदालत ने सबूतों के अभाव में अमित जोगी को बरी कर दिया, जबकि अन्य 28 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार, सीबीआई और पीड़ित सतीश जग्गी ने बिलासपुर उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने तकनीकी आधारों पर इन याचिकाओं को खारिज कर दिया।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि जब किसी आपराधिक मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी (सीबीआई) को सौंपी जाती है, तो अपील का अधिकार राज्य सरकार के बजाय केंद्र सरकार के पास होता है। इस आधार पर राज्य सरकार की याचिका को अस्वीकार कर दिया गया। वहीं, पीड़ित सतीश जग्गी की अपील भी इसलिए खारिज की गई क्योंकि अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 372, जो पीड़ित को अपील का अधिकार देती है, वर्ष 2009 में लागू हुई, जबकि बरी करने का आदेश 2007 में आया था।

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई की अपील में हुई देरी को माफ करते हुए कहा कि इतने गंभीर आपराधिक मामले को केवल तकनीकी कारणों से खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान अमित जोगी, राज्य सरकार और पीड़ित पक्ष सभी को अपनी बात रखने का पूरा अवसर दिया जाए। इस फैसले से 22 साल पुराने रामअवतार जग्गी हत्याकांड की कानूनी लड़ाई को नई दिशा मिली है और अब उच्च न्यायालय में इसके तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों की दोबारा समीक्षा होगी।

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