Imli Movie Review: इंडिया प्राइड इमली रिव्यू: मिट्टी से उठी आवाज़,  जो बन गई देश की शान

Tue, Oct 14 , 2025, 01:51 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

निर्देशक: स्वतंत्र गोयल
कलाकार: प्रसन्ना बिष्ट (इमली), विक्रम कोच्चर (कोच अय्यर)
अवधि: 2 घंटे 6 मिनट
रिलीज़ डेट: 17 अक्टूबर, 2025
रेटिंग: ⭐️⭐️⭐️⭐ (4/5)

Imli Movie Review : कभी-कभी कोई कहानी सिर्फ फिल्म नहीं होती, बल्कि आईना होती है, उस भारत का, जो आज भी शहरों के शोर से दूर अपनी मिट्टी में सपने बोता है। “इंडिया प्राइड इमली (India Pride Imli)” ऐसी ही कहानी है, जहां संघर्ष भी है, सादगी भी, और सबसे बढ़कर है आत्मविश्वास की गूंज। कहानी जो मिट्टी की खुशबू लाती है।  इमली (Prasanna Bisht) झारखंड के एक छोटे से गांव की लड़की है, जिसके हाथों में लकड़ी का धनुष है लेकिन आंखों में दुनिया देखने का सपना।

वो अपने आस-पास की दुनिया से अलग है। उसकी फुर्ती, उसका निशाना और उसकी सोच। जब कोच अय्यर (Vikram Kochhar) उसकी प्रतिभा को पहचानते हैं, तो ये कहानी सिर्फ खेल की नहीं, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की बन जाती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे एक साधारण लड़की जब अवसर पाती है, तो वो सिर्फ अपनी नहीं, अपने पूरे समाज की तस्वीर बदल देती है। 

सिनेमा जो चमक से नहीं, सच्चाई से चलता है
स्वतंत्र गोयल (Swatantra Goyal) का निर्देशन दिखाता है कि फिल्म बड़े सेट्स या ग्लैमर से नहीं, इरादे से बड़ी बनती है। उन्होंने इमली की यात्रा को ऐसे दिखाया है जैसे कोई कविता धीरे-धीरे अपनी लय पकड़ती है। नाटकीय मोड़ नहीं हैं, लेकिन हर दृश्य में एक भावनात्मक सच्चाई है। खासकर वो सीन जहां इमली अपने गांव लौटकर बच्चों को तीर चलाना सिखाती है। यहीं फिल्म अपने नाम को सही ठहराती है — “इंडिया प्राइड”, यानी भारत का गर्व। 

अभिनय जो दिल से निकला लगता है
प्रसन्ना बिष्ट ने इमली को निभाया नहीं, जिया है। उनकी आंखों में संघर्ष की चमक और मुस्कान में जीत की मिठास है। विक्रम कोच्चर ने कोच के किरदार में वो कड़वाहट और कोमलता दोनों दिखाई हैं जो हर सच्चे गुरु में होती है। फिल्म के बाकी कलाकारों ने अपने हिस्से का ईमानदार योगदान दिया है — कोई भी दृश्य बनावटी नहीं लगता।

फिल्म के संदेश में है असली ताकत
इमली सिर्फ खेल की कहानी नहीं, बल्कि समाज की चुप आवाज़ों की कहानी है — जहां एक लड़की यह साबित करती है कि “टैलेंट” न जाति देखता है, न ठिकाना।
यह फिल्म ‘खेलो इंडिया’ जैसी योजनाओं को भी मानवीय दृष्टि से छूती है — दिखाती है कि सरकारी पहलें तभी सफल होती हैं, जब समाज खुद बदलाव के लिए तैयार हो।

तकनीकी पक्ष और संगीत
गांवों की असली लोकेशन, देहाती रंग और प्राकृतिक रोशनी फिल्म को डॉक्युमेंट्री जैसी प्रामाणिकता देते हैं। तीन गाने हैं, लेकिन हर एक कहानी को बढ़ाता है, थोपता नहीं। बैकग्राउंड म्यूज़िक भावनाओं को बहुत खूबसूरती से साथ लेकर चलता है।कमज़ोरियां (जो सुधार योग्य हैं)

  •   पहले हाफ में कुछ सीन लंबे खिंचते हैं
  •   कहानी कुछ जगहों पर अनुमानित महसूस होती है
  •   संवाद और गहराई पा सकते थे

फिर भी, फिल्म अपनी सादगी में एक दुर्लभ ताकत छिपाए है। अंतिम विचार: यह फिल्म ‘इमली’ नहीं, प्रेरणा का स्वाद देती है।  “इंडिया प्राइड इमली” उस सिनेमा की मिसाल है जो मनोरंजन नहीं, मनोबल बढ़ाता है। यह हमें याद दिलाती है कि भारत की असली ताकत उन गांवों में बसती है जहां सपनों को अब भी मिट्टी की खुशबू से सींचा जाता है। थिएटर से निकलते हुए शायद आपके हाथ में पॉपकॉर्न का पैकेट न बचे, लेकिन दिल में इमली जैसी खट्टी-मीठी प्रेरणा ज़रूर रह जाएगी।

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