आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?, प्रकाश अंबेडकर और मायावती ने किया कड़ा विरोध; किन बिंदुओं पर आपत्ति?

Fri, Aug 02 , 2024, 12:38 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एससी और एसटी (SC and ST) के आरक्षण में उपश्रेणियां रखने की मंजूरी दे दी है। यानी आरक्षण में आरक्षण (reservation) को मंजूरी मिल गई है। कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है।  कुछ राजनीतिक नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया है। वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश अंबेडकर (Prakash Ambedkar) और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती (Bahujan Samaj Party President Mayawati) ने इस फैसले का विरोध किया है। इन दोनों नेताओं ने कहा है कि आरक्षण का बंटवारा उचित नहीं है। 

प्रकाश अंबेडकर ने क्या कहा?
हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी एसटी आरक्षण (SC ST reservation) को लेकर दिए गए फैसले का स्वागत करते हैं। लेकिन हम पूरे फैसले से सहमत नहीं हैं। इसीलिए हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आधे फैसलों का स्वागत करते हैं।' लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया गया वर्गीकरण विवादास्पद है। हालाँकि, हम इसका कड़ा विरोध करते हैं। इसका कारण यह है कि उच्चतम न्यायालय के पास वर्गीकरण करने की शक्ति नहीं है। संविधान में आरक्षण का वर्गीकरण करने का अधिकार किसी को नहीं दिया गया है। प्रकाश अंबेडकर ने कहा, इसलिए संसद भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आरक्षण का वर्गीकरण करने का फैसला असंवैधानिक है। कोर्ट ने इस मामले में क्रिमिलियर के मुद्दे पर विचार किया। हम उसके भी खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट नीतिगत फैसले नहीं ले सकता। हमारा मानना ​​है कि कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर चला गया है। प्रकाश अंबेडकर ने भी कोर्ट से अपना फैसला वापस लेने की मांग की है। 

क्या है मायावती का विरोध?
बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) ने ट्वीट कर इस फैसले का विरोध किया है। सामाजिक शोषण की तुलना में राजनीतिक शोषण कुछ भी नहीं है। क्या देश में दलितों और आदिवासियों का जीवन नफरत, भेदभाव और आत्मसम्मान के साथ-साथ आत्मसम्मान से भी मुक्त हो गया है? यदि नहीं, तो आरक्षण को इन जाति-आधारित और पिछड़ी जातियों के बीच क्यों विभाजित किया गया? ये सवाल किया है मायावती ने। 

देश में एससी, एसटी और ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस और बीजेपी दोनों का रुख उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। ये दोनों दल दलितों और आदिवासियों के सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के पक्ष में नहीं हैं। मायावती ने कहा है कि इन तत्वों को संविधान की 9वीं सूची में डालकर संरक्षित किया जा सकता था।

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