मुंबई। महाराष्ट्र के पुणे जिले के जुन्नार, अम्बेगांव, शिरुर और खेड़ के हरे-भरे इलाकों में कुछ दशकों (lush green) में बड़ा भारी बदलाव आया है। यह इलाका कभी वनाच्छादित था लेकिन अब एक विशाल कृषि प्रधान क्षेत्र में बदल गया है। इस इलाके को सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से पानी पहुंचाकर राज्य के कुछ सबसे अधिक उत्पादक गन्ना उत्पादक क्षेत्र बनाया गया है। इस परिवर्तन ने एक ऐसी आपदा को जन्म दिया है जिसने चौथाई सदी में 52 लोगों की जान ले ली है। अब मानव और वन्यजीव क्षेत्रों के बीच टकराव के विनाशकारी परिणामों के कारण और भी कई लोगों की जान लेने की आशंका मंडरा रही है।
यह संकट इतना गहरा गया है कि महाराष्ट्र के वन मंत्री गणेश नाइक (Ganesh Naik) को यह घोषणा करनी पड़ी कि आदमखोर के रूप में पहचाने गए तेंदुओं को देखते ही गोली मार दी जानी चाहिए। उनका यह बयान गांवों में पसरे उस आतंक के जवाब में आया है जिसके तहत अक्टूबर और नवंबर की शुरुआत के 20 दिनों में तेंदुओं के तीन घातक हमले हुए। इन घटनाओं ने जनता में इतना रोष पैदा कर दिया कि ग्रामीणों ने वन विभाग के वाहनों में आग लगा दी और लगभग 18 घंटे तक राजमार्गों को जाम करके रखा।
सरकार को भी तकनीकी हस्तक्षेप से लेकर विवादास्पद पशु नियंत्रण उपायों तक बड़े पैमाने पर समाधानों के लिए संघर्ष करना पड़ा। यह क्षेत्र भारत के सबसे गंभीर मानव-वन्यजीव संघर्षों का एक केंद्र बन गया है। आंकड़े गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। वन अधिकारियों ने अक्टूबर के मध्य से अकेले अम्बेगांव और शिरुर तालुका से कम से कम 17 तेंदुओं को पकड़ा है, जिन्हें अब जुन्नार के माणिकदोह तेंदुआ बचाव केंद्र में रखा गया है। केवल 50 जानवरों को रखने के लिए डिजाइन की गई इस सुविधा केंद्र में अब 67 तेंदुए हैं, जिससे खतरनाक स्थिति पैदा हो रही है। अकेले जुन्नार वन प्रभाग ने पांच वर्षों में तेंदुओं के मुठभेड़ों में 40 गंभीर चोटों और 16 मौतों को रिकॉर्ड किया है। हाल के महीनों में स्थिति और बिगड़ गई है।
सरकारी निर्देश के अनुसार इस सप्ताह हुए तीन घातक हमले इस संकट की क्रूरता को उजागर करते हैं। गत 12 अक्टूबर को पांच वर्षीय शिवन्या शैलेश बॉम्बे पर पिंपरखेड़ गांव के पास गन्ने के खेतों में काम कर रहे अपने दादा के लिए पानी लाते समय जानलेवा हमला कर दिया गया। दस दिन बाद 22 अक्टूबर को जम्बूट गांव में एक बुजुर्ग महिला भागुबाई रंगनाथ जाधव की हत्या कर दी गई। यह संकट 2 नवंबर को तब चरम पर पहुुंच गया जब तेरह वर्षीय रोहन विलास बॉम्बे को दिनदहाड़े उसके घर से घसीटकर खेत पर लाकर उस पर जानलेवा हमला किया गया। यह एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को झकझोर दिया और लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। गांव के लोगों ने वन विभाग के वाहनों में आग लगा दी और लगभग 18 घंटे तक पुणे-नासिक राजमार्ग को जाम करके रखा।
ये तीन मौतें इस त्रासदी का मात्र एक छोटा सा हिस्सा हैं। वर्ष 2024 में पुणे जिले में तेंदुओं के हमलों में कम से कम आठ मौतें रिकॉर्ड की गईं, जिनमें से पांच बच्चे थे। यह दो दशकों में दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि अकेले 2025 में कम से कम पांच मौतें होने की सूचना है। ये मौतें तस्दीक करती हैं कि संकट और भी तेजी से बढ़ रहा है। अब तक एक चौथाई सदी (1990 से) में जुन्नार क्षेत्र में तेंदुओं के हमले में 52 लोगों की जान जा चुकी है, जिससे यह भारत का सबसे खतरनाक मानव-तेंदुआ संघर्ष क्षेत्र बन गया है।
समस्या की जड़ इस आपदा की उत्पत्ति एक गहरे परिवर्तन में निहित है। डिंभे, माणिकदोह, पीपलगांव जोग, बधान, चिल्हेवाड़ी और चस्कमण बांधों सहित प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण कृषि समृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था। लेकिन इन परियोजनाओं ने अनजाने में तेंदुओं के लिए आदर्श आवास बना दिए और साथ ही मानव बस्तियों को तेंदुओं के क्षेत्र में और भीतर खींच लिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि पुणे और पड़ोसी अहमदनगर जिलों में कुल मिलाकर लगभग 1,300 तेंदुए हैं और अकेले जुन्नार में तेंदुओं का घनत्व प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में 6 से 7 व्यक्ति तक पहुंच जाता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के अनुसार यह कई संरक्षित वन क्षेत्रों से भी अधिक है।
गन्ने के खेत शिकारियों के लिए आश्चर्यजनक शरणस्थली बन गए हैं। घने गन्ने की खेती तेंदुओं के छिपने, प्रजनन करने और शावकों को सुरक्षित रूप से पालने के लिए एक आदर्श आश्रय प्रदान करती है। रिसर्च बताते हैं कि इन कृषि क्षेत्रों में शावकों के जीवित रहने की दर 100 प्रतिशत तक पहुंच जाती है और तेंदुओं का जीवनकाल लगभग 20 वर्ष तक बढ़ जाता है और यह प्राकृतिक वनों की तुलना में काफी अधिक है। चूंकि पश्चिमी घाट में वनस्पति 7 प्रतिशत से भी कम रह गई है, इसलिए तेंदुओं ने धीरे-धीरे कृषि परिदृश्यों के अनुकूल खुद को ढाल लिया है।
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Thu, Nov 13 , 2025, 08:48 PM