नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) असंवैधानिक है और इसे रद्द किया जाना चाहिए(Supreme Court Gave Deadline)। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) को निर्देश दिया है कि वह 31 मार्च तक उन लोगों के नाम का खुलासा करे जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में इन चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों (political parties) को चंदा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने आख़िर क्या कहा है?
साल 2016 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली (Union Finance Minister Arun Jaitley) ने कालेधन (black money) पर लगाम लगाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना पेश की थी। लेकिन इस योजना में एक पेंच था कि जो लोग या कंपनियां चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को फंडिंग या चंदा देना चाहते थे, वे केवल भारतीय स्टेट बैंक से विभिन्न मूल्यवर्ग के बांड खरीद सकते थे। किसी अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक (nationalized bank) के पास ये बांड जारी करने का अधिकार नहीं है। लेकिन जिसने ये बॉन्ड लिया है उसका नाम बैंक को नहीं बताया जा सकता।
चंदा किसने दिया, यह पता नहीं चल पा रहा है
चूंकि नाम का खुलासा नहीं किया जा सका, इसलिए यह पता नहीं चल सका कि राजनीतिक दलों को किसने और कितना चंदा दिया। लेकिन यह मामला असंवैधानिक है और जनता को पता होना चाहिए कि किसने किसे कितना पैसा दिया है, यह राय सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने व्यक्त की है।
इसलिए, अदालत ने स्टेट बैंक को निर्देश दिया कि वह पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 के बाद से इस तरह से चुनावी बांड खरीदने वाले लोगों और संगठनों के नाम और राशि का पूरा विवरण चुनाव आयोग को दे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी चाहिए। साथ ही जो बांड नकदी में परिवर्तित नहीं हुए हैं, उन्हें बांड खरीदार के खाते में वापस करना होगा।
'लाभ के लिए लाभ' सिद्धांत पर आधारित
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला चुनावी चंदा 'लाभ के बदले लाभ' के सिद्धांत पर आधारित है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसकी घोषणा आज की गई।
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Thu, Feb 15 , 2024, 02:39 AM