नई दिल्ली. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश गर्म (political heat heating) होने के साथ ही बीएसपी नेताओं (BSP leaders) की बेचैनी बढ़ती जा रही है. बसपा सांसदों ने विपक्षी दलों के साथ मेल-मिलाप कर रहे हैं. दानिश अली से लेकर रितेश पांडे (Danish Ali to Ritesh Pandey) तक सियासी ठिकाना तलाश रहे हैं, लेकिन मायावती (Mayawati) पूरी तरह खामोश हैं. पहले के मुकाबले उनके स्वभाव में नरमी भी दिखाई दे रही है.
लोकसभा चुनाव को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है, लेकिन बसपा सांसदों में एक अलग तरीके की राजनीतिक बेचैनी दिख रही है. लखनऊ के बसपा ऑफिस में जब मायावती की बैठक को लेकर तैयारी हो रही थी, ठीक उसी समय अमरोहा से पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली पटना में सीएम नीतीश कुमार से मिल रहे थे. दो नेताओं की मुलाकात में हैरानी वाली तो कोई बात नहीं, वो भी जब दोनों बीजेपी के विरोधी हों, लेकिन दानिश-नीतीश की एक साथ फोटो ने बसपा कैंप में तूफान मचा दिया है.
दानिश ने नीतीश से क्यों मिले?
बीएसपी में दूसरी पार्टी के नेताओं से मेल-मिलाप की परंपरा नहीं है. मायावती के कहने और दिशा-निर्देश पर ही बसपा के नेता दूसरी पार्टी के नेताओं से मुलाकात करते हैं. बसपा सांसद दानिश अली ने नीतीश कुमार से मिले हैं, जिसके लेकर 2024 चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. दानिश अली बिना मायावती के मर्जी के नीतीश से मिले हैं. माना जा रहा है कि 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बन रहे विपक्षी गठबंधन से दानिश अली चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहे हैं.
कुंवर दानिश अली का नीतीश से मिलना और उससे पहले अंबेडकर नगर के बसपा सांसद रितेश पांडे का सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मुलाकात. जौनपुर से बसपा के सांसद श्याम सिंह यादव दिल्ली में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शिरकत करते हैं. इतना ही नहीं वो कभी सीएम योगी आदित्यनाथ तो कभी अखिलेश यादव से मिलते हैं. बसपा सांसदों के खुलेआम दूसरे दलों के नेताओं के साथ मुलाकात पर मायावती चुप हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बसपा सांसदों की बेचैनी और मायावती की नरमी के सियासी मायने क्या हैं?
एकला चलो की राह पर मायावती
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर मायावती ने किसी भी गठबंधन में शामिल होने के बजाय ‘एकला चलो रे’ के फॉर्मूले पर चलने का ही फैसला किया है. ऐसे में विपक्षी एकता के सूत्रधार कहे जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बसपा सांसद कुंवर दानिश ने मुलाकात किया. इस मुलाकात की तस्वीर मायावती के करीबी नेताओं ने उन तक पहुंचा दी है. पार्टी के सूत्रों से पता चला है कि दानिश ने नीतीश से भेंट के बारे में मायावती से कोई इजाजत नहीं ली थी.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब पिछली बार लखनऊ आए थे तो उन्होंने अखिलेश यादव से मुलाकात की थी. साथ ही नीतीश ने यूपी में बनने वाले विपक्षी गठबंधन का अखिलेश यादव के नेतृत्व करने का भी संकेत दिया था. नीतीश ने विपक्षी एकता के लिए देश भर में बड़े नेताओं के साथ मुलाक़ात की थी, लेकिन अब तक मायावती से नहीं मिले. ऐसे में दानिश अली का नीतीश कुमार से की मुलाकात करना बसपा अध्यक्ष मायावती को कतई पसंद नहीं आई है, लेकिन वक्त की नजाकत को समझते हुए पार्टी अभी ‘वेट एंड वॉच’ में है.
BSP सांसदों की बेचैनी
दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन की सियासत तेज हैं. ऐसे में मायावती अकेले चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर चुकी हैं, जिसके चलते ही बसपा के अधिकतर सांसद इन दिनों सियासी बेचैनी से गुजर रहे हैं और सुरक्षित ठिकाने की तलाश में हैं. बीएसपी के कुछ सांसदों का मामला फाइनल है तो कुछ नेताओं की फाइल पेंडिंग में है. सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि मायावती भी इस बात को जानती हैं कि उनके अधिकतर सांसदों का मन बसपा में नहीं लग रहा है.
हालांकि, एक जमाना था जब मायावती को किसी नेता पर शक होता था तो उसे फौरन पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देती थीं. एक बार बीएसपी के एक ताकतवर मंडल कोऑर्डिनेटर लखनऊ से अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले और रास्ते में एक ढाबे पर समाजवादी पार्टी के एक दिग्गज नेता से उनकी मुलाक़ात हो गई. किसी ने दोनों नेताओं की मुलाकात की फोटो मायावती तक पहुंचा दी. इसके बाद मायावती के सामने उनकी पेशी हुई और वे पार्टी से बाहर कर दिए गए थे.
मायावती क्यों हैं नरम?
इतना ही नहीं पार्टी नेताओं अगर अपनी मर्जी से बयान भी दे देते तो उन्हें निकालने में देर नहीं करती थी. लेकिन अब बसपा नेता विपक्षी दल के नेताओं से मिल ही नहीं रहे हैं बल्कि 2024 में चुनाव लड़ने का विकल्प भी तलाश रहे हैं. इसके बावजूद मायावती उन पर एक्शन नहीं ले रही है. आखिर किस-किस पर एक्शन लें, क्योंकि पार्टी में बड़े नेता बचे ही कितने हैं? बसपा के तमाम जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं तो कुछ को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. ऐसे में अगर मायावती अपने सांसदों पर एक्शन लेना शुरू कर देंगी तो फिर बचेगा ही कौन?
नए ठिकाने की तलाश में बसपा सांसद
मायावती को किसी सांसद के खिलाफ कार्रवाई करनी होती तो सबसे पहले निशाने पर सांसद श्याम सिंह यादव होते. वे जौनपुर से बीएसपी के लोकसभा सांसद हैं. कभी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत करते हैं तो कभी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलते हैं. इतना ही नहीं कभी अखिलेश यादव से मिलने पहुंच जाते हैं और जौनपुर में सपा कार्यालय में बैठकी करते हैं. उनके बारे में कभी ये खबर आती है कि वे समाजवादी पार्टी में जा सकते हैं तो कभी बीजेपी का दामन थामने की बात आती है. हालांकि, माना जा रहा है कि सांसद श्याम सिंह यादव बीएसपी छोड़ने का मन बना चुके हैं. सपा उन पर हाथ रखने के तैयार नहीं और बीजेपी भी बहुत ज्यादा भाव नहीं दे रही है. श्याम सिंह यादव कांग्रेस के एक बड़े नेता के संपर्क में भी हैं. मायावती सब जान कर भी अनजान हैं. शुरुआत में तो उन्होंने सांसद को हद में रहने की सलाह भी दी थी पर यादव जी तो अपने मन की करते हैं. श्याम सिंह जब दूसरी पार्टी के नेताओं से मिलते हैं तो खुद ही फोटो पोस्ट भी करते हैं .
फजलुर्रहमान का क्या होगा
सहारनपुर से बीएसपी के सांसद हाजी फजलुर्रहमान भी नए सियासी ठिकाना तलाश रहे हैं. फजलुर्रहमान की इमरान मसूद से छत्तीस के आंकड़े हैं. ऐसे में इमरान मसूद के बसपा में आने के बाद सहारनपुर से वो चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं. पिछली इमरान मसूद कांग्रेस के उम्मीदवार थे और 2019 के चुनाव में बीएसपी का आरएलडी और सपा से गठबंधन था तो बीजेपी सहारनपुर में हार गई थी और फजलुर्रहान सांसद चुने गए थे. इमरान मसूद के बसपा में आने से उनके चुनाव लड़ने की संभावना है, जिसके चलते फजलुर्रहान कशमकश की स्थिति में है. इसके चलते ही सपा और आरएलडी के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं, लेकिन बसपा में भी अपनी पकड़ बनाए हुए हैं.
रितेश पांडे दो नाव पर सवार
बीएसपी के सबसे युवा सांसद हैं रितेश पांडे का भी मन पार्टी में नहीं लगा रहा है और हाथी से उतर सकते हैं. इनके पिता राकेश पांडेय भी एमपी रहे हैं और फिलहाल सपा से विधायक हैं. रितेश अंबेडकरनगर से सांसद हैं और उनके बीजेपी के साथ साथ सपा के भी कुछ नेताओं से बड़े अच्छे रिश्ते हैं. इस बात को वे जानते हैं कि 2024 में बीएसपी से चुनाव लड़ कर जीतना नामुमकिन है. अंबेडकरनगर लोकसभा सीट पर अब सपा मजबूत हो गई है, क्योंकि लालजी वर्मा और रामअचल राजभर जैसे कद्दावर नेता अब सपा के साथ हैं. ऐसे में रितेश पांडे कदम उसी पार्टी में होंगे, जहां उन्हें अपनी जीत की सबसे ज्यादा संभावना दिखेंगी. इसके अलावा गाजीपुर से सांसद रहे अफजल अंसारी भले ही खुद को चुनाव न लड़ सकें, लेकिन 2024 में उनका परिवार सपा से किस्मत आजमा सकता है. दरअसल, 2014 में बसपा अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी और पार्टी एक भी सांसद नहीं जीत सका था. 2019 में मायावती ने सपा-आरएलडी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और बसपा के 10 सांसद जीतकर आए थे. गाजीपुर से बसपा सांसद रहे अफजल अंसारी की सदस्यता जा चुकी है, जिसके बाद पार्टी के 9 सांसद बचे हैं, लेकिन 2024 के चुनावी रण में मायावती के ‘एकला चलो रे’ के फॉर्मूले से बेचैन हैं और अपने लिए राजनीतिक विकल्प की तलाश में जुटे हैं.
विपक्षी नेताओं से क्यो मिल रहे बसपा नेता
बीएसपी के आधे से ज्यादा सांसद हैं जो गुप-चुप तरीके से अपनी अपनी सियासी गोटियां सेट करने में लगे हैं. इनमें से अधिकतर मान चुके हैं कि अगर बीएसपी से चुनाव लड़े तो फिर जीतना असंभव है. इसलिए सब दूसरी पार्टियों से टिकट की जुगाड़ में हैं. मायावती की पार्टी के पुराने नेता और बिजनौर से सांसद मलूक नागर गठबंधन का राग अलाप रहे हैं. मोदी सरकार के एक केंद्रीय मंत्री से उनकी लगातार मुलाकात का दौर जारी है. पिछले चुनाव में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन के कारण ही जीत दर्ज कर सके थे, लेकिन मौजूदा सियासत में बसपा से उनकी जीत आसान नहीं है. इसलिए मजबूत ठिकाना तलाश रहे हैं.बसपा सांसदों के हर कदम से मायावती वाकिफ हैं, लेकिन सियासी हालत के चलते चुप हैं. इस तरह मायावती सब जानते हुए भी फैसले लेने से बच रही हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में समय भी बहुत कम बचा है. बीएसपी से निकाले जाने पर लोकसभा के संसदों सदस्यता भी बनी रह सकती है. इसीलिए मायावती अब दर्शक के रोल में हैं और 2024 की सियासी नब्ज को देख रही हैं?



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Wed, Aug 23 , 2023, 12:36 PM