Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा पर करें इन मंत्रों का जाप, सभी दुख और संकट हो जाएंगे दूर

Sun, Jul 02 , 2023, 01:57 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली। सनातन धर्म (eternal religion) में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और धन की देवी मां लक्ष्मी (mother lakshmi) की पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा 3 जुलाई को है। इसे गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन वेदों के जनक वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। अतः आषाढ़ पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास जी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा और सेवा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही गुरु के आशीर्वाद से करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। इस दिन साधक श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। इससे जगत के पालनहार भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनएं पूर्ण होती हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा के समय इन मंत्रों का जाप अवश्य करें। आइए, भगवान विष्णु के मंत्र जानते हैं-
गुरु पूर्णिमा पर करें इन मंत्रों का जाप
गुरू वैदिक मंत्र

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।
गुरू गायत्री मंत्र
ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
विष्णु मंत्र
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
लक्ष्मी गायत्री मंत्र
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
कारोबार में तरक्की हेतु मंत्र
ॐ ऐं श्रीं महालक्ष्म्यै कमल धारिण्यै गरूड़ वाहिन्यै श्रीं ऐं नमः
तुलसी गायत्री मंत्र
ऊँ श्री त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि |
तन्नो: तुलसी प्रचोदयात ||
तुलसी मंत्र
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे,
विष्णुप्रियायै च धीमहि,
तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
धन प्राप्ति हेतु मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
लक्ष्मी स्त्रोत
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥

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