उत्तर प्रदेश। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी तपिश बढ़ गई है. बीजेपी क्लीन स्वीप के मिशन (mission of clean sweep) में जुटी है तो विपक्षी पार्टियां (opposition parties) गठबंधन से लेकर अपने-अपने समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई हैं. इसी के मद्देनजर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी (RLD chief Jayant Chaudhary) पश्चिमी यूपी के गांव-गांव में सामाजिक समरसता अभियान चला रहे हैं, जिसके तहत गैर-जाट समाज वाले खासकर मुस्लिम समुदाय के गांव को फोकस किया गया है. इस अभियान के तहत आरएलडी गांव-गांव जाकर मुस्लिम, दलित, गुर्जर और अन्य जाति के लोगों के साथ संवाद कर सियासी समीकरण मजबूत करने में जुट गई है.
जयंत चौधरी का गांव-गांव संवाद
माना जा रहा है कि जयंत चौधरी मुस्लिम मतों के लिए सपा की बैसाखी के बजाय अब खुद के दम पर साधने में जुट गए हैं ताकि 2024 में अगर किसी नए समीकरण और गठबंधन की स्थिति होने पर किसी तरह की कठिनाई का सामना न करना पड़े. पश्चिम यूपी की सियासत जाट, मुस्लिम और जाटव समुदाय के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है. इसीलिए जयंत चौधरी वेस्ट यूपी के लगभग 1500 गांव में सामाजिक समरसता संवाद अभियान चला रहे है. आरएलडी के नेता व कार्यकर्ता करीब 250 से भी ज्यादा गांव में संवाद कार्यक्रम कर चुके हैं.
कांग्रेस को लेकर सॉफ्ट कार्नर
आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने विदेश में होने के चलते पटना में विपक्षी एकता की बैठक में शिरकत नहीं किया, लेकिन 2024 में बनने वाले विपक्षी गठबंधन में वो शामिल रह सकते हैं. हालांकि, जयंत चौधरी चाहते हैं कि कांग्रेस को यूपी के विपक्षी गठबंधन में रखा जाए जबकि सपा प्रमुख अखिलश यादव कांग्रेस को लेकर बहुत ज्यादा स्पेस देने के मूड में नहीं है. जयंत चौधरी जानते हैं कि अगर कांग्रेस अलग चुनावी मैदान में उतरती है तो पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटों का बिखराव बीजेपी के लिए संजीवनी बन सकती है.
जाट-मुस्लिम पर जयंत का फोकस
दरअसल, जाट समुदाय आरएलडी का कोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय का झुकाव बीजेपी की तरफ हो गया था. जयंत चौधरी ने जाट समुदाय की नाराजगी को काफी हद तक दूर कर लिया है, लेकिन अभी भी अच्छा-खासा तबका बीजेपी से साथ है. ऐसे में जयंत चौधरी बाखूबी जानते हैं कि पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के सहारे बीजेपी से मुकाबला नहीं कर सकती है. इसीलिए वो जाटों के साथ-साथ गैर-जाट समुदायों को साधने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं, जिनमें सबसे मुख्य फोकस पर मुस्लिम है और उसके बाद दलित, गुर्जर, सैनी सहित किसान जातियां शामिल हैं.
जाट-मुस्लिम की ताकत क्या?
जाट समुदाय भले ही यूपी में 2 से 3 फीसदी के बीच हों, लेकिन पश्चिमी यूपी में 20 से 25 फीसदी है. ऐसे ही मुस्लिम यूपी में 20 फीसदी हैं, लेकिन पश्चिमी यूपी में 30 से 40 फीसदी तक हैं. पश्चिमी यूपी के 17 जिलों में जाट-मुस्लिम एक साथ होकर किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. इस फॉर्मूले पर चौधरी चरण सिंह से लेकर चौधरी अजित सिंह तक कभी किंग तो कभी किंगमेकर बनते रहे, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे ने जाट और मुस्लिमों को दूर कर दिया. इसका खामियाजा सबसे ज्यादा आरएलडी को उठाना पड़ा.
मुस्लिमों को साध रही रालोद
मुजफ्फरनगर दंगे के चलते जाट बीजेपी के साथ चला गया तो मुस्लिम सपा के साथ. 2014 और 2019 में चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी दोनों पिता-पुत्र को सियासी मात खानी पड़ी. जाट और मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए आरएलडी काफी समय से मशक्कत रही है. मुस्लिम वोटों के लिए जयंत चौधरी ने 2022 में सपा के साथ गठबंधन किया था, लेकिन अब रालोद की कोशिश है कि किसी तरह से मुस्लिमों को अपने दम पर साधा जा सके ताकि सपा के साथ अपनी बार्गेनिंग पावर को बढ़ाया जा सके. इसीलिए जयंत चौधरी ने सामाजिक समरस्ता कार्यक्रम को ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम गांव में रखा गया है.
जयंत चौधरी की कोशिश है कि अगर मुस्लिम वोटर्स उनसे साथ जुड़ जाता है तो फिर सपा के साथ गठबंधन के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटों की डिमांड कर सकते हैं. वहीं, सपा भी पश्चिमी यूपी की सियासत को पूरी तरह से जयंत के भरोसे नहीं छोड़ना चाहते हैं, क्योंकि एक बार मुस्लिम मतदाता आरएलडी के साथ जुड़ गया तो फिर सपा के लिए पश्चिमी यूपी में अपने लिए जगह बना पाना आसान नहीं होगा. इसकी वजह यह है कि पश्चिमी यूपी में सपा का कोर वोटबैंक यादव नहीं है, लेकिन मुस्लिम वोटर्स काफी है.
खतौली में प्रयोग सफल रहा
पश्चिमी यूपी का मुस्लिम समुदाय सिर्फ वोट ही नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व के लिए भी जद्दोजहद करता है, लेकिन बीजेपी को हराने वाला जो वोटिंग पैटर्न है, उसके चलते मुस्लिम भी इस बात को समझ रहा है कि अकेले दम पर वो किसी काम के नहीं है. ऐसे में मुस्लिम समुदाय कई सियासी प्रयोग करके देख चुका है, लेकिन उसे लगता है कि जाट और मुस्लिम ही मिलकर बीजेपी को मात दे सकते हैं. इस तरह से मुस्लिम वोटर्स उसी तरफ जाएगा, जिस तरफ जाटों का झुकाव होगा. खतौली उपचुनाव में इस प्रयोग के जरिए जयंत चौधरी बीजेपी को मात देने में सफल रहे थे, जिसके चलते 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी समीकरण के सहारे राजनीतिक तानाबाना बुन रहे हैं.
2019 और 2022 का वोटिंग पैटर्न
2019 लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना पश्चिमी यूपी में करना पड़ा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिन 16 सीटों पर मात खानी पड़ी थी, उनमें से सात सीटें पश्चिमी यूपी की रही थी. ऐसे ही 2022 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से लेकर बिजनौर, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बरेली सहित पश्चिमी यूपी के तमाम जिलों में बीजेपी को करारी मात खानी पड़ी थी. यह इलाका भी मुस्लिम और जाट बहुल है.



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Tue, Jun 27 , 2023, 11:05 AM