PM Modi in Karnataka: चुनौतियों के बीच पीएम की मेगा रैली!

Sat, Mar 25, 2023, 11:03

Source : Hamara Mahanagar Desk

 6 पॉइंट में समझें कर्नाटक में BJP की राह कितनी मुश्किल?
PM Modi in Karnataka:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) शनिवार को कर्नाटक में मेगारैली करेंगे. वह बेंगलुरू मेट्रो की कृष्णराजपुरा मेट्रो लाइन (Krishnarajapura Metro Line) का उद्घाटन करने के साथ विशाल रैली को सम्बोधित भी करेंगे. कर्नाटक के आगामी चुनाव को देखते हुए पीएम मोदी का यह दौरा महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. कर्नाटक में भले ही भाजपा सत्ता में है, लेकिन इस बार राह आसान नहीं होगी. इसकी कई वजह बताई जा रही हैं. पहले ही अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही भाजपा के लिए राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा ने रास्ता और मुश्किल बना दिया है.
इतना ही नहीं, राज्य में सियासी समीकरण के बीच गणित बैठाना भाजपा भी के लिए आसान नहीं होगा. भाजपा को अंदर और बाहर दोनों तरफ से मिल रही चुनौतियों से जूझ रही है.
कर्नाटक में भाजपा के लिए 6 बड़ी चुनौतियां
भाजपा कार्यकर्ता ही खुश नहीं:
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, भाजपा के लिए अपनों से निपटना सबसे बड़ी चुनौती है. चुनावों में पार्टी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता ही भाजपा से खुश नहीं हैं. पिछले साल कर्नाटक में दो हिंदूवादी युवा नेताओं की हत्या कर दी गई. इस पर पार्टी पर रवैया ढुलमुल रहा. इससे एबीवीपी, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और पार्टी के कार्यकर्ता समेत कई नेता भी संगठन से खुश नहीं हैं. अंदर खेमे में कई बार मुख्यमंत्री बोम्मई (Chief Minister Bommai) को पद से हटाने की मांग की जा चुकी है.
पार्टी में कई गुट बने: कर्नाटक में भाजपा अपनों के बीच ही गुटबाजी का शिकार है. बोम्मई, येदियुरप्पा और बीएल संतोष के अलग-अलग गुट बने हैं. इनके बीच सामंजस्य नहीं बन पा रहा है. बैठकों में कभी एक दल मौजूद नहीं होता तो कभी दूसरा दल दूरी बना लेता है. पार्टी में कई ऐसे नेता हैं जो खुद को मुख्यमंत्री पद का बड़ा उम्मीदवार मानते हैं. भाजपा के लिए नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बैठाकर चुनाव में जीत हासिल करना अपने आप में बड़ी चुनौती रहेगी.
संगठन और सरकार में सामंजस्य नहीं: विश्लेषकों का कहना है कि ज्यादातर राज्यों में भाजपा और उसके संगठन के बीच तालमेल साफतौर पर दिखता है, लेकिन कर्नाटक में ऐसा नजर नहीं आ रहा. भाजपा और संघ के संगठनों के बीच दूरी जगजाहिर है. ऐसे में चुनाव में चुनौतियां और भी बढ़ेंगी.
पार्टी को एकजुट करने वाले नेता की कमी: सीएम बसवराज बोम्मई को लेकर पहले से पार्टी के असंतोष है. येदियुरप्पा को लेकर भी स्थिति संतोषजनक नहीं रही है क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोप और कर्नाटक सरकार ने उनके बेटे के दखल को लेकर पहले ही किरकिरी हो चुकी है. ऐसे में कर्नाटक भाजपा में कोई ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी को एकजुट कर सके और सबको साथ लेकर चल सके. पार्टी में जिसे सबका समर्थन मिले.
कांग्रेस ने बढ़ाई चुनौती: कर्नाटक में करीब 20 दिन तक राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चली. इस दौरान कांग्रेस ने जोर-शोर से ‘अबकी बार, कांग्रेस 150 पार’ का नारा उठाया. चुनावों को देखते हुए कांग्रेस ने रणनीति तैयार की. राहुल की यात्रा में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं. इसके सियासी मायने समझें तो यात्रा दक्षिण कर्नाटक से होकर गुजरी थी. इस रूट में 7 संसदीय सीटें जैसे चामराजनगर, मैसुरू, मांड्या, तुमकुर, चित्रदुर्ग, बेल्लारी और रायचूर शामिल थीं. इन्हीं संसदीय सीटों में 21 विधानसभा सीटें हैं. यह इलाका यहां के वोक्कालिगा समुदाय का गढ़ माना जाता है.
वोक्कालिगा समुदाय पर राह आसान नहीं: दक्षिण कर्नाटक यहां के वोक्कालिगा समुदाय का गढ़ है. कांग्रेस पहले से ही भारत जोड़ाे यात्रा के जरिए अपनी रणनीति साफ कर चुकी है. कांग्रेस और जेडीएस की नजर पहले से ही इस समुदाय पर है. ऐसे में भाजपा के लिए चुनौती और बढ़ गई है. लम्बे समय से भाजपा वोक्कालिगा समुदाय पर पकड़ बनाने में जुटी हुई है, लेकिन अब तक कुछ करिश्मा नहीं कर पाई है.

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