विजयादशमी (Vijayadashami) यानी दशहरा समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति और बुराई पर अच्छाई की विजय का पावन पर्व है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके संसार को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। भगवान श्रीराम महानता की प्रतिमूर्ति हैं एवं उनकी समस्त लीलाएं मनुष्यों के लिए आदर्श का पर्याय मानी जाती हैं। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग किसी भी तरह के शुभ कार्य,धार्मिक अनुष्ठान,पूजा-पाठ,विवाह,गृह प्रवेश आदि करने के लिए शुभ मुहूर्त के बारे में अवश्य विचार करते हैं। शुभ मुहूर्त (auspicious time) किसी भी नए कार्य के शुभारंभ या मांगलिक कार्य को शुरू करने का वह समय होता है जिस दौरान सभी ग्रह और नक्षत्र अच्छी स्थिति में होते हुए कर्त्ता को शुभ फल प्रदान करते हैं। लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए विजयादशमी का दिन श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन बिना मुहूर्त निकाले कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन विभिन्न संस्कार युक्त कार्य जैसे बच्चे का नामकरण,अन्न प्राशन,मुंडन,कर्ण छेदन,यज्ञोपवीत,वेदारंभ,गृहप्रवेश,भूमि पूजन,नए व्यापार या दुकान का उद्घाटन नए वाहन या सामान की खरीद आदि कार्य बिना कोई शुभ मुहूर्त निकलवाए किए जा सकते हैं।
शमी पूजन का महत्व (Importance of Shami Pujan)
नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना के बाद दशमी तिथि को विजयादशमी पर समस्त सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पवित्र माने जाने वाले शमी वृक्ष और देवी अपराजिता के अलावा अस्त्र-शस्त्रों का पूजन भी किया जाता है। इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना भी अति शुभ माना गया है। नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है। रावण पर विजय पाने की अभिलाषा में श्रीराम ने पहले नीलकंठ के दर्शन किए थे।
विजयदशमी पर नीलकंठ के दर्शन और भगवान शिव से शुभफल की कामना करने से जीवन में भाग्योदय,धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार पवनपुत्र हनुमानजी ने भी श्री रामजी की प्राणवल्ल्भा सीताजी को शमी के समान पवित्र कहा था,इसलिए मान्यता है कि इस दिन घर की पूर्व दिशा में या घर के मुख्य स्थान में शमी की टहनी प्रतिष्ठित करके उसका विधिपूर्वक पूजन करने से घर-परिवार में खुशहाली आती है। विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती है। शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य के सभी पाप और कष्टों का अंत होता है।
बुराईयों का करें त्याग
दशहरा बुराई पर अच्छी की जीत के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन सभी प्राणियों को बुरे कर्मों का त्याग करने का संकल्प लेना चाहिए। लंकाधिपति रावण (Lord Ravana of Lanka) को काम,क्रोध,लोभ और मोह का प्रतीक माना जाता है। भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके संसार को यह सन्देश दिया कि सभी बुराईयां मनुष्य के पतन का कारण हैं। ज्ञानी-ध्यानी,धर्म परायण,परम शक्तिशाली और विद्वान होने के बावजूद अगर किसी मनुष्य के भीतर इस तरह की बुराइयां मौजूद हैं,तो उसकी सारी योग्यताएं एवं अच्छाइयां निरर्थक हैं। मनुष्य के बुरे कर्म एक न एक दिन उसके अंत का कारण अवश्य ही बनते हैं इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। कभी भी सच्चाई और अच्छाई के मार्ग से भटकना नहीं चाहिए।



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Tue, Oct 04 , 2022, 10:02 AM