विश्वभर के डॉक्टरों का यह मानना हैं की उनके पास आनेवाले 90 प्रतिशत मरीज़ “मनोदैहिक” बिमारियों से ग्रसित होते हैं।क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया हैं? नहीं ना ?इसका मुख्य कारण हैं की मॉडर्न युग के मनुष्य तो केवल निवारण की ही अपेक्षा रखते हैं ,कभी कारण की गहराई में जाना कोई नहीं चाहता। इसीलिए ही तो आज हम हर मर्ज़ के लिए कोई न कोई गोलिया खाते रहते हैं।आज हर घर में जैसे आचार का डिब्बा रहता हैं ऐसे ही गोलियों(दवाई) का भी एक मोटा डिब्बा रहता हैं।परन्तु क्या हर बीमारी का इलाज चंद गोलियां खाने से हो जाता हैं?नहीं! ऐसा संभव नहीं ,क्योंकि बरसो से हमारे भीतर ,हमारी जड़ों तक कुछ ऐसी मानसिक बिमारियों ने अपनी जगह बना ली हैं,जिसका इल्म तक हमें नहीं होता।जी हाँ इन्ही बिमारियों में से बड़ी खतरनाक एक बीमारी हैं “ ईर्ष्या” और “पूर्वाग्रह” या “पक्षपात”।
हममें से कइयो के लिए एसिडिटी की दवाई खाना जैसे एक आम बात हैं,परन्तु कितने लोग “ईर्ष्या” रूपी जलन का इलाज पा सके हैं?शायद बोहोत कम लोग ,क्योंकि जब हमें बीमारी का ही पता नहीं,तो इलाज कहाँ से और किस चीज़ का करें?हम आये दिन बातों बातों में काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार को त्यागने की सोचते हैं,परन्तु क्या हमने कभी “ ईर्ष्या” और “पूर्वाग्रह” या “पक्षपात” से निजात पाने का उपाय ढूंढा हैं? !शायद नहीं!
“पूर्वाग्रह” एक विलक्षण मानसिक बीमारी हैं,जिसका इलाज करना बड़ा मुश्किल हैं,क्योंकि पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति अपने आप को मानसिक बीमार समझता ही नहीं,इसीलिए वह हर प्रकार के इलाज का तीव्र विरोध करता हैं।ऐसे में वह लोगों की नज़रों में केवल तरस और दया का पात्र बनकर रह जाता हैं। परन्तु हम ऐसे व्यक्तियों को उनके क्रूर दुर्भाग्य के हाथों में छोड़ तो नहीं सकते ना ?अतः हमें उन्हें “गुणों के ऑपरेशन थिएटर “ में दाखिल कर निस्वार्थ प्रेम रूपी विसंज्ञन दे,शुभ कामना रूपी ग्लूकोज़ चढ़ाकर अध्यात्मिक ज्ञान एवं राजयोग चिकित्सा पद्धति से उनपर सफल शस्त्रक्रिया करनी होगी , तांकि वह इस महा खतरनाक बीमारी से मुक्त हो सकें।
“ ईर्ष्या” भी पूर्वाग्रह सामान बड़ी खतरनाक बीमारी हैं।दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने “ईर्ष्या” का अनुभव न किया हो। ईर्ष्या की अग्नि में जलने वाले न जीवन के वास्तविक तत्वों को हज़म कर पाते हैं,और न वह सच को बर्दाश्त कर पाते हैं। उनके ह्रदय की धमनिया इस कदर सिकुड़/अवरुद्ध जाती हैं की जब वह किसी को प्रगति करता देखते हैं या किसी और को अपने से आगे बढ़ता हुआ देखते हैं तब जलन वश उन्हें जैसे दिल का दौरा पड़ जाता हैं।ऐैसी व्यक्तियों के अन्दर स्वार्थरूपी ज़हर उबलता रहता हैं,जो उन्हें चैन से कहीं भी बैठने नहीं देता। पूर्वाग्रहित व्यक्ति से भिन्न ईर्ष्या ग्रस्त व्यक्ति शांति की और इलाज की दृढ इच्छा रखते हैं। राजयोग चिकित्सा पद्धति ऐैसी व्यक्तियों के अन्दर प्रेम एवं शांति का जलाशय निर्माण कर उन्हें इस अग्नि की तपत से मुक्ति दिलाता हैं। !स्मरण रहे! ईर्ष्या से नफरत उत्पन्न होती हैं और यदि हम नफरत से मुक्त होना चाहते हैं,तो हमें पहले अपने भीतर से ईर्ष्या को निर्वासित करना होगा,क्योंकि जहाँ ईर्ष्या हैं ,वहां शांति हो नहीं सकती।सार्वभौमिक प्रेम ईर्ष्या का मारक हैं और उसका पोषण केवल ध्यानधारणा से ही किया जा सकता हैं। तो आइये हम सभी “राजयोग “ की संजीवनी बूटी द्वारा इन महा भयंकर बिमारियों का इलाज कर स्वयं को एवं सारे विश्व को सच्ची मुक्ति दिलाएं।

--- राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज जी ---
(ई-मेलःnikunjji@gmail.com--- www.brahmakumaris.org)
(राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज जी आंतराष्ट्रीय वक्ता, आध्यात्मिक शिक्षा विश्लेषक-लेखक और अनुभवी राजयोगा मेडिटेशन शिक्षक के रुप में प्रसिद्ध हैं।)



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Sat, Mar 19 , 2022, 08:07 AM