Sanjay Kapur: संजय कपूर की कथित वसीयत पर उठे सवाल: वसीयत, उलझी समयरेखा और डिजिटल ‘घोस्ट

Sat, Dec 06 , 2025, 12:28 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली।  दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में गुरुवार को दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर (Sanjay Kapur) की विवादित वसीयत की विस्तारपूर्वक जांच जारी रही, जिसमें कई कानूनी एवं साक्ष्य संबंधी कमियाँ सामने आईं जो इसकी विश्वसनीयता पर भारी पड़ सकती हैं। करिश्मा कपूर (Karisma Kapoor) के बच्चों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी (Mahesh Jethmalani) ने आग्रह किया कि वसीयत को क़ानूनी आवश्यकताओं की कसौटी पर कठोरता से परखा जाए, विशेष रूप से तब जब वसीयत कथित तौर पर नाबालिग सहित प्राकृतिक उत्तराधिकारियों को परे करती है।

बहस एक केंद्रीय प्रश्न पर लगातार वापस लौटती रही — क्या अदालत के सामने प्रस्तुत दस्तावेज़ वास्तव में एक वैध, स्वैच्छिक और विधिसम्मत अंतिम इच्छा है, या मात्र “वसीयत होने का दावा” भर?

“डिजिटल घोस्ट” - वसीयत की पृष्ठभूमि पर प्रश्न

महेश जेठमलानी ने सुंजय कपूर को वसीयत के संदर्भ में “डिजिटल घोस्ट” कहा — यानी कोई ईमेल, कोई संदेश, कोई निर्देश या कोई डिजिटल पुष्टि मौजूद नहीं जो उन्हें वसीयत के मसौदे या उसकी मंजूरी से जोड़ती हो।

उन्होंने कहा कि एक उच्च तकनीक और व्यावसायिक रूप से दक्ष व्यक्ति के लिए पूरी तरह डिजिटल चुप्पी अत्यंत असामान्य है और इससे यह कहानी अविश्वसनीय बनती है कि यह एक "सोच-विचार कर बनाई गई संपत्ति योजना" थी।

इसके अतिरिक्त, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का आवश्यक प्रमाणपत्र किसी भी मोबाइल फोन के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया — न संजय के, न प्रिया के, न दिनेश के। अतः व्हाट्सऐप चैट को साक्ष्य के रूप में माना ही नहीं जा सकता।

वसीयत की तारीख और मौजूदा व्यवस्थाओं पर संदेह

कथित वसीयत मार्च 2025 की बताई गई है — उस समय संजय कपूर पूर्णतः स्वस्थ, पेशेवर रूप से सक्रिय और आर्थिक रूप से सुरक्षित थे।
अदालत से प्रश्न किया गया कि जब पहले से ही बच्चों के लिए ट्रस्ट जैसी संरचनागत व्यवस्थाएँ मौजूद थीं, तो बिना किसी स्पष्ट कारण के अचानक उत्तराधिकारी व्यवस्था में इतने बड़े बदलाव का औचित्य क्या था। ऐसी “अचानक” वसीयत, बिना दस्तावेज़ी पृष्ठभूमि या परिस्थितियों के, शक पैदा करती है।

कानूनी दृष्टि से मूलभूत खामी — गवाहों के हस्ताक्षरों में त्रुटि

सबसे गंभीर आपत्ति 
दोनों गवाहों ने यह नहीं कहा कि उन्होंने संजय कपूर को हस्ताक्षर करते देखा या कि उन्होंने एक-दूसरे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए।

क़ानून के अनुसार यह अनिवार्य है, और इसका अभाव वसीयत को सिद्ध करने में घातक दोष है — यह महज तकनीकी चूक नहीं बल्कि वसीयत के वैध निष्पादन की जड़ पर प्रहार है।

वसीयत की कस्टडी पर सवाल

संजय कपूर के निधन के बाद वसीयत किसके पास थी, कहाँ थी, कैसे और कब अदालत तक पहुँची — इसकी कोई स्पष्ट और प्रमाणित श्रृंखला उपलब्ध नहीं।
इतनी ऊँची मूल्य वाली संपत्ति के मामले में यह अस्पष्टता खतरनाक संकेत मानी जाती है और दस्तावेज़ में छेड़छाड़ या प्रतिस्थापन के आरोपों का द्वार खोलती है।

हस्ताक्षर स्थल और समय में विरोधाभास

वसीयत के पाठ में गुरुग्राम में हस्ताक्षर का उल्लेख है, लेकिन गवाहों के हलफनामों में इसका समर्थन नहीं मिलता — न वही स्थान, न समय, न परिस्थितियों का विवरण। यह आंतरिक असंगति वसीयत संबंधी कानून में “संदिग्ध परिस्थितियों” का स्पष्ट उदाहरण मानी जाती है।

“उदारता” की कहानी को चुनौती

बच्चों की फीस और जीवनयापन हेतु भुगतान — प्रिया की स्वेच्छा से नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व आदेशों के तहत किया गया।
अदालत-निर्देशित दायित्वों को “उदारता” बताना और उससे वसीयत में बच्चों की विरासत कम करने को उचित ठहराना गलत है।

प्राकृतिक उत्तराधिकारियों की उपेक्षा — कोई वजह दर्ज नहीं

उत्तराधिकार कानून के अनुसार, बिना कारण बताए प्राकृतिक उत्तराधिकारियों — विशेष रूप से नाबालिग — को बाहर करने से संदेह और गहरा हो जाता है और वसीयत को सिद्ध करने के मानक कठोर हो जाते हैं। कोई पत्र, ईमेल, नोट या बातचीत ऐसा नहीं दिखाया गया जिससे यह स्पष्ट हो कि संजय कपूर जान-बूझकर अपने बच्चों को प्राथमिकता सूची से हटाना चाहते थे।

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