मध्यप्रदेश के मुरैना में स्थित दाऊजी मंदिर! एक ऐसा मंदिर जहां साढ़े तीन दिन के लिए आते हैं भगवान द्वारकाधीश, नाग के रूप में देते हैं दर्शन 

Fri, Oct 17 , 2025, 12:55 PM

Source : Uni India

Dauji Temple in Morena: मध्यप्रदेश के मुरैना जिले स्थित (Morena district of Madhya Pradesh) मुरैना गांव ऐसा गांव माना जाता है, जहां गुजरात की द्वारिका से निकल कर भगवान द्वारकाधीश (Lord Dwarkadhish) हर साल दीपावली पर साढ़े तीन दिन के लिए आते हैं। जिला मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में इस अवसर पर लीला मेला लगता है, जहां हजारों की संख्या में भगवान श्रीकृष्ण के भक्त साढ़े तीन दिन के लिए अपने द्वारिकाधीश से मिलने पहुंचते हैं। 

ये दीपावली की पड़वा से शुरू होकर साढ़े तीन दिन तक चलता है। इस मेले में भगवान के मुरैना गांव आने और तालाब में नागलीला के रूप में दर्शन देने की प्राचीन परंपरा है, जिसके कारण दूर दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस दौरान दाऊजी मंदिर में भगवान की बाल लीलाओं का प्रतीकात्मक मंचन भी किया जाता है। मेले का एक प्रमुख आकर्षण तालाब में होने वाली नागलीला (form of Naglila in the pond) है, जहां श्रद्धालुओं को नाग के रूप में दर्शन होते हैं।

मंदिर के महंत ने यहां बताया कि मंदिर में 785 वर्ष पुरानी भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा हैं। मान्यता है कि भगवान मुरैना गांव में गाय चराने आते थे। गांव के स्वामी परिवार के मुखिया गोपराम स्वामी जिन्हें दाऊजी के नाम से पुकारते थे, भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। कालांतर में भगवान श्रीकृष्ण जब मुरैना गांव से विदा हो रहे थे तब गोपराम स्वामी ने उनको रुकने के लिए विनय की तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि मुरैना गांव में प्रतिमा मेरी जरूर रहेगी, लेकिन मंदिर आपके नाम से ही जाना जाएगा। 

भगवान श्रीकृष्ण ने जाते समय गोपराम स्वामी से कहा था कि मैं जा रहा हूं परंतु दीपावली की पड़वा से साढ़े तीन दिन के लिए मैं मुरैना गांव जरूर आया करूंगा और तालाब में नाग के रूप में दर्शन दूंगा। तब से ये लीला चली आ रही है। महंत का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से कार्तिक मास की पूर्णिमा से अमावस के बीच स्वामी परिवार में बालक जन्म लेता है, उस बालक के द्वारा भगवान की बाल लीलाओं को प्रतीकात्मक रूप से शुरूआत कराई जाती है। 

इस मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा व विश्वास है, इसलिए दूरदराज के गांवों से लोग भगवान की पूजा करने दाऊजी मंदिर पहुंचते हैं। लीला की शुरूआत शोभा यात्रा से होती है। इससे पूर्व बांसुरी बजाकर भगवान का आह्वान किया जाता है। उसके बाद दो बालकों को भगवान श्रीकृष्ण व बलदाऊ के वेश में सजाकर रथ पर बैठाकर महंत के घर से मंदिर तक बैंडबाजे के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है। बताया जाता है कि लीला मेला में भगवान द्वारकाधीश को साक्षी मानकर मंदिर प्रांगण में विभिन्न समुदाय के लोग यहां पंचायतों के माध्यम से अपने विवाद भी निपटाते हैं।

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