हैदराबाद: तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने रविवार को कहा कि पूर्ववर्ती भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार का 2018 में लाया गया कानून स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए बढ़े हुए आरक्षण को लागू करने में बाधा बन गया है। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में नगरपालिका और पंचायत राज अधिनियम संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान कहा कि बीआरएस सरकार ने 2018 में पंचायत राज अधिनियम और 2019 में नगरपालिका अधिनियम बनाया।
इन दोनों में चुनावों को 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के भीतर कराने का प्रावधान था। रेड्डी ने कहा, "यही कानून अब एक गतिरोध बन गया है।" मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यसभा सांसद आर कृष्णैया की एक रिट याचिका पर उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, पिछड़े वर्ग के आंकड़े जमा करने की ज़िम्मेदारी एक आयोग को सौंपी गई। जातिगत सर्वेक्षण कराया गया और कमज़ोर वर्गों को 42 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की गई। विधानसभा ने शिक्षा, रोज़गार और स्थानीय निकायों में आरक्षण की मांग वाले दो अलग-अलग विधेयक पारित किए, लेकिन राज्यपाल ने उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा, "ये विधेयक पांच महीने से राष्ट्रपति के पास लंबित हैं।" इस बीच, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि स्थानीय निकाय चुनाव 30 सितंबर तक करा लिए जाएं। कानूनी बाधा को दूर करने के लिए, राज्य सरकार 50 प्रतिशत की सीमा हटाने के लिए एक अध्यादेश लाई और उसे राज्यपाल के पास भेजा, लेकिन उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया। रेड्डी ने कहा कि जहां कांग्रेस सरकार सामाजिक न्याय के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण देना चाहती है तो वहीं बीआरएस विधानसभा में इसमें व्यवधान डाल रही है।
उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर उनकी मांग का समर्थन न करने के लिए बीआरएस नेताओं की भी आलोचना की। श्री रेड्डी ने चेतावनी देते हुए कहा, "जनता आपको आपकी गलतियों की सज़ा दे चुकी है। अगर आप नहीं बदले, तो वे आपको दोबारा वह दर्जा भी नहीं देंगे।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनकी सरकार कमज़ोर वर्गों के उत्थान और उनके सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
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Sun, Aug 31 , 2025, 03:37 PM