सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता की संपत्ति वापस करने की उनकी एक वारिस याचिका खारिज की

Fri, Feb 14 , 2025, 04:30 PM

Source : Uni India

नयी दिल्ली, 14 फरवरी (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता (Former Chief Minister J Jayalalitha) की आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच अवधि के उल्लंघन में अर्जित उनकी संपत्ति वापस लेने के लिए दायर एक याचिका यह कहते हुए शुक्रवार को खारिज कर दी कि उनकी (जयललिता) मृत्यु के कारण इस अदालत के समक्ष कार्यवाही समाप्त होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें मामले में बरी कर दिया गया है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुश्री जयललिता के कानूनी वारिसों में से एक जे दीपा द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित करते हुए कहा कि यह विचार करने योग्य नहीं है।
याचिकाकर्ता ने इस संबंध में कर्नाटक उच्च न्यायालय के 13 जनवरी, 2025 के आदेश और विशेष न्यायालय के 29 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती दी‌ थी।
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता एम सत्य कुमार ने जोर देकर कहा कि सुश्री जयललिता द्वारा अपने अभिनय करियर के दौरान अर्जित सोने और चांदी की वस्तुएं तथा उनकी मां द्वारा उपहार में दी गई वस्तुएं वापस की जानी चाहिए। उन्होंने दलील देते हुए कहा कि ये संपत्तियां जांच अवधि के बाद अर्जित की गई थीं।
इस पर पीठ ने कहा, “हमें नहीं पता कि आप कैसे पहचानेंगे कि कौन सी वस्तुएं जांच अवधि के उल्लंघन में अर्जित की गई थीं।”
न्यायालय ने हालांकि, कहा कि उनके मामले में पिछले फैसले ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से बहाल कर दिया और केवल उनकी मृत्यु के कारण कार्यवाही समाप्त हो गई।
पीठ ने कहा, “कर्नाटक सरकार बनाम जे. जयललिता के मामले (2017) के फैसले में शीर्ष अदालत की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कि इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही समाप्त हो गई है। वजह यह कि इस बीच (सुनवाई के दौरान) उनकी मृत्यु हो गई है। इसका मतलब यह होना चाहिए कि अभियुक्त संख्या एक को बरी करने वाले उच्च न्यायालय के फैसले की सत्यता के संबंध में मामले पर आगे विचार नहीं किया जाएगा। हालांकि, छूट का अर्थ यह नहीं होगा कि उच्च न्यायालय का फैसला अंतिम हो गया है।”
उच्च न्यायालय ने करोड़ों की आय से अधिक संपत्ति के मामले में अधिकारियों द्वारा जब्त की गई उन विवादित चल और अचल संपत्तियों को वापस करने की याचिका को अस्वीकार कर दिया था।
दीपा की याचिका में दावा किया गया है कि चूंकि 2017 में इस न्यायालय के फैसले के अनुसार कार्यवाही समाप्त हो गई है, इसलिए जयललिता को दोषी नहीं माना जा सकता। इस स्थिति में ‘जब्ती के तहत संपत्ति कुर्की आदेश को हटाकर वापस की जानी चाहिए।’
उच्च न्यायालय के 11 मई, 2015 को बरी करने के आदेश के बाद सुश्री जयललिता का पांच दिसंबर, 2016 को निधन हो गया यानी 14 फरवरी, 2017 को इस न्यायालय के फैसले से पहले।
याचिका में कहा गया है, “चूंकि जयललिता के खिलाफ सभी कार्यवाही समाप्त हो गई और विशेष न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के आधार पर दोषी होने का कोई अनुमान नहीं है।”
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह स्थापित सिद्धांत है कि बरी किए गए व्यक्ति की मृत्यु के साथ बरी किए जाने के खिलाफ अपील समाप्त हो जानी चाहिए और विशेष न्यायालय द्वारा लगाए गए दोषसिद्धि, सजा और जुर्माने को बहाल करने का कोई सवाल ही नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय के 27 मई, 2020 के फैसले के अनुसार वह उनके भाई के साथ सुश्री जयललिता की कानूनी वारिस हैं।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पारित बरी करने के आदेश को इस स्पष्ट निष्कर्ष के साथ खारिज कर दिया था कि जब्ती के आदेश और अन्य निर्देशों का मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों सहित सभी संबंधितों द्वारा पालन किया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि अपील की कार्यवाही में शीर्ष अदालत की आगे की व्याख्या अस्वीकार्य है क्योंकि शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत के आदेश को परिणामी निर्देशों सहित पूरी तरह से बहाल किया जाता है, भले ही अपील के लंबित रहने के दौरान सुश्री जयललिता की मृत्यु हो गई हो।

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