नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ उनकी कविता (poem)को लेकर गुजरात पुलिस की ओर से दर्ज प्राथमिकी की वैधता पर सवाल उठाते हुए सोमवार कहा कि यह आखिरकार एक कविता है। यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सवाल करते हुए कहा कि आखिरकार यह एक कविता है। यह किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है। गुजरात उच्च न्यायालय ने कविता के अर्थ को नहीं समझा। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने श्री प्रतापगढ़ी का पक्ष रखते हुए दावा किया कि गुजरात उच्चतम न्यायालय का आदेश कानून की दृष्टि से गलत है। उन्होंने कहा कि संबंधित न्यायाधीश ने कानून का उल्लंघन किया है।
उनकी दलीलें सुनने केबाद पीठ ने कहा,“यह आखिरकार एक कविता है। यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह कविता अप्रत्यक्ष रूप से कहती है कि अगर कोई हिंसा करता है, तो भी हम हिंसा नहीं करेंगे।” गुजरात सरकार के अधिवक्ता द्वारा समय मांगे जाने पर शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। पीठ ने राज्य के अधिवक्ता से कहा,“कविता पर अपना दिमाग लगाएं। आखिरकार, रचनात्मकता भी महत्वपूर्ण है।”
शीर्ष अदालत ने कथित तौर पर सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने वाली कविता सोशल मीडिया पर डालने के मामले में कांग्रेस सांसद और कवि इमरान प्रतापगढ़ी पर कोई दंडात्मक कार्रवाई करने पर 21 जनवरी को रोक लगा दी थी। न्यायमूर्ति ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रतापगढ़ी को उनकी याचिका पर यह राहत दी थी और अदालत ने गुजरात सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया था। उन्होंने अपनी याचिका में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द करने से इनकार करने वाले गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने तब निर्देश देते हुए कहा था,“हमने कविता भी सुनी... संक्षिप्त नोटिस जारी करें। 10 फरवरी को जवाब देना है। दर्ज मुकदमे के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।” प्रतापगढ़ी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उनकी प्राथमिकी रद्द करने की याचिका को खारिज करने की आलोचना करते हुए कहा था,“हम किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं? न्यायालय को कुछ कहना है। बिना नोटिस जारी किए, (उच्च) न्यायालय ने इसे (खारिज करने का) आदेश दे दिया।”
कांग्रेस सांसद के खिलाफ यह प्राथमिकी एक अधिवक्ता के क्लर्क की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रतापगढ़ी ने सोशल मीडिया पर ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो...’ कविता वाला एक वीडियो पोस्ट किया था। इस मामले में गुजरात पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 197 (राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप), 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए कृत्य) और 302 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द बोलना) के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
गुजरात उच्च न्यायालय ने 17 जनवरी को प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि जांच अभी शुरुआती चरण में है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप एन भट ने अपने कहा था,“मुझे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं दिखता।” उच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि इससे सामाजिक सद्भाव बिगड़ सकता है।
अदालत ने कहा था,“भारत के किसी भी नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसा व्यवहार करे जिससे सांप्रदायिक सद्भाव या सामाजिक सद्भाव बिगड़े नहीं। याचिकाकर्ता से, संसद सदस्य होने के नाते, ऐसी पोस्ट के नतीजों को समझते हुए अधिक जिम्मेदारी से काम करने की अपेक्षा की जाती है।” उच्च न्यायालय के राहत देने से इनकार के बाद श्री प्रतापगढ़ी ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।



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Mon, Feb 10 , 2025, 07:03 PM