अमृतसर। पंजाब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता प्रो. सरचांद सिंह ख्याला ने सोमवार को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के चुनावों में हो रही देरी पर नाराजगी जताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) से एसजीपीसी चुनावों की समय सीमा तय करने में व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने की अपील की है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में प्रो. ख्याला (Prof. Khyala) ने एसजीपीसी के चुनावों के प्रति सरकारों की उदासीनता का जिक्र करते हुए कहा कि अगर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और यहां तक कि स्थानीय सरकारों के चुनाव समय पर हो जाते हैं, तो एसजीपीसी जिसे सिख समुदाय ने सिखों की संसद होने का दर्जा दिया है, के चुनाव समय पर और निर्धारित समय सीमा के भीतर क्यों नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि सिखों को गुरुद्वारों और तख्त साहिबों के उचित प्रबंधन के लिए सही प्रतिनिधियों को चुनने का संवैधानिक अधिकार है। सिख अपने अधिकारों और गुरुद्वारों के प्रबंधन के प्रति जागरूक हैं, लेकिन सरकारों की उदासीनता के कारण समय पर चुनाव न होने से सिखों में निराशा है।
प्रो. ख्याला ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एसजीपीसी के चुनाव के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) सुरिंदर सिंह सेरों को वर्ष 2023 के लिए गुरुद्वारा चुनाव आयोग का मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। इस चुनाव आयोग का स्टाफ पंजाब सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। जिसने 21 अक्टूबर 2023 से मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया शुरू कर दी, लेकिन आज एक साल चार महीने बाद भी मतदाता सूचियां पूरी नहीं हुई हैं और गैर-सिखों को मतदाता के रूप में शामिल करने की चर्चा हो रही है।
प्रो. ख्याला ने कहा कि एसजीपीसी के पिछले चुनाव अक्तूबर 2011 में हुए थे तथा नये बोर्ड की अधिसूचना 17 दिसंबर 2011 को जारी की गई थी। शिरोमणि कमेटी का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, लेकिन वर्तमान कमेटी अपने 14वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है और वे अभी भी पद पर बने हुए हैं तथा शिरोमणि कमेटी के मामलों को नियंत्रित कर रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि शिरोमणि कमेटी को नियंत्रित करने वाली पार्टी शिरोमणि अकाली दल (बादल) है, जिसके अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल हैं, जिनके बारे में 02 दिसंबर, 2024 को श्री अकाल तख्त साहिब से पांच सिंह साहिबानों ने उनके द्वारा पिछले दिनों सिख पंथ के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए ऐतिहासिक और मजबूत रुख अपनाते हुए आदेश दिया था कि शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व इन अपराधों के कारण सिख पंथ का राजनीतिक रूप से नेतृत्व करने का नैतिक अधिकार खो चुका है। इसलिए इन नेताओं के नेतृत्व और हाथों में एसजीपीसी और सिखों के हित न केवल असुरक्षित हैं, बल्कि उन्हें नुकसान भी पहुंच रहा है।
भाजपा प्रवक्ता ने एसजीपीसी के चुनाव की जटिल प्रक्रिया को सरल बनाने का सुझाव दिया और कहा कि चूंकि पंजाब के विभाजन के समय सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 को अधिनियम 1966 की धारा 72 के अंतर्गत अंतर्राज्यीय अधिनियम घोषित किया गया था तथा राज्य सरकारों को आवश्यक कानून बनाने की शक्ति दी गई थी, इसलिए हरियाणा सरकार ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 पारित कर उसे लागू किया है तथा दिल्ली में दिल्ली सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1971 के अंतर्गत दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक चार वर्ष के पश्चात करवाए जाते हैं। इसी प्रकार, यदि पंजाब सरकार भी इस गुरुद्वारा एक्ट 1925 को उसके मूल स्वरूप में पंजाब सरकार के अधिकार क्षेत्र में लाने में सफल हो जाती है, तो एसजीपीसी के चुनाव हर पांच साल में करवाने के लिए केंद्र की ओर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
प्रो. ख्याला ने कहा कि एसजीपीसी के चुनाव दिसंबर 2016 से होने थे। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा ‘सहजधारी’ सिखों को इन चुनावों के दौरान मतदान के अधिकार से वंचित करने की याचिका को खारिज करने के बाद उच्चतम न्यायालय में यह अपील दायर की गई थी। जिस पर शीर्ष न्यायालय ने पहले से कार्यरत शिरोमणि कमेटी को अपना कार्य जारी रखने का आदेश दिया। इस बीच, संसद ने गुरुद्वारा अधिनियम में संशोधन पारित कर दिया, जिसके तहत केवल सिखों को ही वोट देने का अधिकार दिया गया। जिस पर शीर्ष अदालत ने इस संशोधन के आधार पर सितम्बर 2016 में उक्त मामले का निपटारा कर दिया।
यद्यपि एसजीपीसी ने सर्वोच्च न्यायालय से 2011 के नए सदस्यों को 2016-2021 तक नया पांच वर्ष का कार्यकाल प्रदान करने का आदेश पारित करने का अनुरोध किया था, परन्तु उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार, 17 दिसंबर 2011 की अधिसूचना द्वारा अधिसूचित सदस्यों को नया कार्यकाल प्रदान करने के लिए कोई न्यायिक निर्णय नहीं लिया गया है। इन सदस्यों ने 17 दिसंबर 2016 को अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है। इसलिए उन्हें 2016-2021 तक एसजीपीसी के सदस्य के रूप में बने रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।



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