BJD Protest: बीजद ने किया मसौदा यूजीसी विनियमन 2025 का कड़ा विरोध!

Thu, Feb 06 , 2025, 06:23 PM

Source : Uni India

भुवनेश्वर। बीजू जनता दल (Biju Janata Dal) ने मसौदा यूजीसी विनियमन 2025 (Draft UGC Regulation 2025) पर गंभीर चिंता व्यक्त की है और यूजीसी से विनियमन को अंतिम रूप देने से पहले कठोर प्रावधानों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। बीजद की समन्वय और गतिविधि समिति के अध्यक्ष देवी प्रसाद मिश्रा (Debi Prasad Mishra) ने कहा कि प्रस्तावित विनियमन संघवाद, राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सीधा खतरा है।

श्री मिश्रा ने बताया कि मसौदा विनियमन का सबसे खतरनाक पहलू सत्ता का अनुचित केंद्रीकरण है, जो राज्यपालों को कुलपति और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति में पूर्ण अधिकार देता है - जो केंद्र सरकार के प्रभाव में काम करते हैं। श्री मिश्रा ने कहा कि यह कदम भारतीय संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से कमजोर करता है।

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकारों के पास राज्य विश्वविद्यालयों के वित्तपोषण और रखरखाव की जिम्मेदारी होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया में उन्हें पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है। यूजीसी और केंद्र सरकार की दखलअंदाजी धारा 1.2 में स्पष्ट है, जो राज्य विधानसभाओं द्वारा स्थापित राज्य विश्वविद्यालयों पर यूजीसी के अधिकार को बढ़ाती है।

बीजद नेता के अनुसार ये नियम राज्य कानूनों को दरकिनार करते हैं, जिससे राज्य विधायी शक्तियां कमजोर होती हैं और उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता खत्म होती है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल द्वारा नियुक्त प्रस्तावित खोज-सह-चयन समिति राज्य सरकारों को विश्वविद्यालय प्रशासन में कोई भूमिका निभाने से रोकती है, जिससे सत्ता का अनुचित संकेन्द्रण होता है।

श्री मिश्रा ने जोर देकर कहा कि बीजद अकादमिक नियुक्तियों में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप की कड़ी निंदा करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि मसौदा नियम कुलपति और संकाय सदस्यों के चयन में पक्षपात और पूर्वाग्रह का द्वार खोलते हैं, जिससे योग्यता, अकादमिक स्वतंत्रता और संस्थागत अखंडता से समझौता होता है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा यह दखल शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर करता है और राज्य विश्वविद्यालयों की प्रगति में बाधा डालता है। श्री मिश्रा ने प्रस्तावित नियुक्ति मानदंडों पर भी चिंता जताई, जिसमें अब गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान शामिल है, क्योंकि वे व्यक्तिपरकता और संभावित पूर्वाग्रह का परिचय देते हैं।

इसके अलावा, शोध प्रकाशनों और शैक्षणिक कार्यों पर विवेकाधीन नियम विद्वानों की उत्कृष्टता को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा कि संकाय सदस्यों पर शिक्षण और शोध पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय धन जुटाने का दबाव बढ़ रहा है, जो उच्च शिक्षा की समग्र गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। मिश्रा के अनुसार एक और महत्वपूर्ण मुद्दा शिक्षक-छात्र अनुपात के बिगड़ने के कारण संकाय का बढ़ता कार्यभार है, साथ ही स्थायी पदों के बजाय अल्पकालिक अनुबंधों के लिए दबाव है, जिससे नौकरी की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। उन्होंने कहा कि संकाय पर बढ़ती मांगों के बावजूद, शिक्षा के लिए सार्वजनिक वित्त पोषण को व्यवस्थित रूप से कम किया जा रहा है जिससे एक अस्थिर शैक्षणिक वातावरण बन रहा है।

श्री मिश्रा ने यूजीसी से खोज-सह-चयन समितियों के गठन में राज्य सरकारों की भूमिका को बहाल करने, विश्वविद्यालय नियुक्तियों में राज्य सरकार के अधिकार को बहाल करने तथा नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता के साथ जवाबदेही सुनिश्चित करने का आग्रह किया। बीजद का दृढ़ विश्वास है कि यूजीसी को नियमों को अंतिम रूप देने से पहले इन कठोर प्रावधानों पर पुनर्विचार करना चाहिए। मिश्रा ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण को केंद्रीकृत करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बीजद राज्य संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा करने और भारत की शिक्षा प्रणाली में सहकारी संघवाद की भावना को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

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