UNCCD 16th summit: मानवता,पर्यावरण के भविष्य के लिए खेती, भू उपयोग के तरीके स्वस्थ बनाने की सिफारिश!

Mon, Dec 02 , 2024, 07:24 AM

Source : Uni India

रियाद: धरती पर मरुस्थल फैलने की चुनौतियों से निपटने के लिए यहां सोमवार से शुरू रहे संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) की 16वीं शिखर बैठक की पूर्व संध्या पर जारी एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खेती बाड़ी और भू-उपयोग के प्रचलित तौर तरीकों में तत्काल सुधार की रूपरेखा तैयार की गई है ताकि मानव और पर्यावरण के भरण-पोषण और संरक्षण की पृथ्वी की क्षमता को अपूरणीय क्षति से बचाया जा सके।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रभावी भूमि प्रबंधन के लिए इन सब्सिडी को स्वस्थ विकास के लक्ष्यों के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में एफएओ, यूएनडीपी और यूएनईपी की एक रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है कि 2013 से 2018 के बीच 88 देशों में ऐसी सब्सिडी पर 500 अरब डालर से अधिक खर्च किए गए। वर्ष 2021 की उस रिपोर्ट के अनुसार इस सब्सिडी राशि का लगभग 90 प्रतिशत ऐसी अकुशल, अनुचित प्रथाओं में चला गया जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता हैं। पर्यावरण के प्रभाव पर अनुसंधान करने वाली एक प्रसिद्ध संस्था पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पिक) के प्रो. डॉ. जोहान रॉकस्ट्रॉम के नेतृत्व में यूएनसीसीडी के सहयोग से तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि क्षरण पृथ्वी की मानवता के भरण-पोषण की क्षमता को कम कर रहा है और भूमि क्षरण की प्रवृति को पलटने में विफलता आने वाली पीढ़ियों के लिए समस्याएं उत्पन्न करेगी।

यूएनसीसीडी का 19वां सम्मेलन यहां सोमवार को शुरू हो रहा है। इसमें लगभग 200 सदस्य देशों और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती के नौ में से सात महाद्वीपों में भूमि के अस्वस्थ तरीके से उपयोग के कारण भूमि की गुणवत्ता और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस रिपोर्ट में धरती की सभी प्रणालियों में मिट्टी की भूमिका को धुरी के रूप में उजागर करने का प्रयास किया गया है। इसमें कहा गया है कि ग्रीनहाउस प्रभाव (वातावारण का ताप बढ़ाने वाली) गैसों के उत्सर्जन में 23 प्रतिशत, वनों की कटाई में 80 प्रतिशत, मीठे पानी के उपयोग में 70 प्रतिशत हाथ कृषि कार्य का है। इसमें कहा गया है कि वनों की हानि और भूमि बंजर होने से भुखमरी, पलायन और लड़ाइयां की स्थिति बनती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरणीय संतुलन के साथ मानवता के पालन पोषण के लिए भूमि उपयोग में परिवर्तन महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि भूमि पृथ्वी की स्थिरता का आधार है। यह जलवायु को नियंत्रित करती है, जैव विविधता को संरक्षित करती है, मीठे पानी की प्रणालियों को बनाए रखती है और भोजन, पानी और कच्चे माल सहित जीवन देने वाले संसाधन प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि वनों की कटाई, शहरीकरण और खेती बाड़ी के अस्वस्थ तौर तरीकों से दुनिया में अभूतपूर्व पैमाने पर भू-क्षरण का कारण बन रही है जिससे न केवल पृथ्वी प्रणाली के विभिन्न घटकों बल्कि मानव अस्तित्व को भी खतरा हो रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार कमजोर शासन-प्रशासन और भ्रष्टाचार से ये चुनौतियां और बढ़ रही हैं। भ्रष्टाचार अवैध वनों की कटाई और संसाधनों के दोहन को बढ़ावा देता है जिससे क्षरण और असमानता का चक्र चलता रहता है। विश्व में भूमि एवं सम्पत्ति के अधिकार की अवधारणाओं की मामक रिपोर्ट-प्रिंडेक्स पहल के अनुसार लगभग एक अरब लोगों के पास सुरक्षित भूमि स्वामित्व नहीं है जिनमें सबसे अधिक लोग उत्तरी अफ्रीका (28 प्रतिशत), सहारा मरुस्थल के दक्षिण के अफ्रीकी भू-भाग (26 प्रतिशत) के साथ ही दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के हैं। अपने घर या ज़मीन को खोने का डर स्वस्थ प्रथाओं को बढ़ावा देने के प्रयासों को कमज़ोर करता है। कृषि सब्सिडी अक्सर हानिकारक प्रथाओं को प्रोत्साहित करती है जिससे पानी का अत्यधिक उपयोग और जैव-रासायनिक असंतुलन को बढ़ावा मिलता है।

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