राम का अवतरण अगर गंगा के आगमन जैसा है तो मोदी उसके भगीरथ दिखाई देते हैं. भगीरथ गंगा (Bhagirath Ganga) को पाकर ठहरते नहीं हैं, आगे बढ़ते हैं. लक्ष्य की ओर. मोदी की सोच और तैयारी भी ऐसी ही है. राममंदिर के प्रांगण में बोलते हुए उन्होंने इसके साफ संकेत भी दिए. मोदी अपने भाषण में कहते हैं कि राम विवाद नहीं, समाधान के नायक हैं. आग नहीं, ऊर्जा प्रदान करते हैं. मोदी के भाषण में गिलहरी जैसे मतदाता को कर्तव्यबोध और महत्व बताया गया. जातियों में बंटे देश को बताया गया कि कोई छोटा नहीं है. युवजन भारत से कहा गया कि चांद पर जो झंडा फहराना है उसमें हजारों वर्षों की परंपरा और संस्कृति का बोध और गर्व होना चाहिए. विकास के आंकड़ों और सामाजिक कल्याण की गीतावली सुनते देश को बताया गया है कि ये मंदिर आगे एक विकसित भारत का साक्षी बनने जा रहा है. अपना समय निहारते लोगों को बताया गया कि ये भारत का समय है- यही समय है, सही समय है.
मोदी 22 जनवरी को केवल राम की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करते नजर आते. वो प्रतिष्ठित करते हैं राम को मंदिर और संप्रदाय की परिधि से भी कहीं आगे. संविधान की पहली प्रति के राम से लेकर सबके राम तक ये भाषण जाता है. मोदी कहते हैं कि ये प्रतिष्ठा विजय की ही नहीं, विनय की भी है. ये अवसर परिपक्वता के बोध का क्षण है. राम की प्रतिष्ठा वसुधैव कुटुंबकम और विश्वात्मा की प्रतिस्थापना है. ये प्रतिष्ठा भारतीय संस्कृति, मानवीय मूल्यों, आदर्शों की भी प्रतिष्ठा है और आज विश्व को इसकी जरूरत है.
मोदी के भाषण के इसी सूत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) भी अपने शब्द पिरोते नजर आते हैं. भागवत मोदी को तपस्वी बताते हैं. लेकिन उसके साथ ही ये बोध कराने से नहीं चूकते कि अब देश को भी तप करने की जरूरत है. इस तप के लिए भागवत समन्वय, करुणा और संयम के व्रत को धारण करने का आह्वान करते हैं. ये अकारण ही नहीं हुआ कि उन्होंने अपने भाषण में महात्मा गांधी के संदेश को याद किया. सबके राम की बात कही. समता और समावेशिता पर बल दिया.
मन की बात
मोदी के भाषण और उसके सापेक्ष संघ प्रमुख के संदेश को देखने के लिए थोड़ा पीछे जाना चाहिए. 2014 में मोदी जब प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर भाजपा का प्रचार अभियान चला रहे थे तो नारा था मोदी सरकार का. एक छोटे से राज्य से आए मुख्यमंत्री के पास अपना एक मॉडल था जिसे वो लोगों के सामने रखकर वोट मांग रहा था. इस मॉडल का प्रचार सार्थक रहा और मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने. पांच बरस बाद यानी 2019 के चुनाव में मोदी जब जीतकर आए तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगले पांच साल भारतीय जनमानस की आकांक्षाओं और सपनों का समय है.
10 साल तक सत्ता में रही पार्टी और पीएम ये नहीं कह सकते कि बुनियादी स्तर पर या बड़े स्तर पर उनकी कोशिशें कमतर रहीं. गैस कनेक्शन से लेकर शौचालय तक, पीने का पानी हो, स्वास्थ्यगत सुविधाओं की बात हो, अनाज से अंत्योदय हो, तेज रेलगाड़ी, नए हवाईअड्डे, बड़ी परियोजनाएं हों या वैश्विक मोर्चा, सरकार के पास अपनी उपलब्धियों और दावेदारियों की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट है. देश का हर राज्य, हर कोना, चाहे वहां भाजपा मजबूत हो या कमजोर, मोदी के नाम के पत्थर जड़े हुए हैं.
इस तरह एक राज्य के मॉडल से शुरू हुई कहानी को पहले पांच साल में बुनियादी चीजों और अगले पांच साल में सपनों के विस्तार का कोट पहनाया गया. लेकिन जैसा कि अयोध्या से प्रधानमंत्री ने खुद कहा, राम भव्य मंदिर में स्थापित हो गए हैं, इसके बाद क्या… मोदी और भागवत दरअसल इसी की रूपरेखा को बताते नजर आए.
राम और राज्य का विस्तार
राम काम कर रहे हैं. विपक्ष घिरा हुआ है. बिखरा वो पहले से ही है. सामर्थ्य और सामंंजस्य की कोशिशें रेत के महल जैसी हैं, पता नहीं किस वेला कोई लहर उन्हें चख ले. राम के नाम के आगे कोई और नैरेटिव टिकता नहीं. मोदी इसी नैरेटिव को अब समावेशी बना रहे हैं. भागवत उनका अनुमोदन कर रहे हैं.
मोदी बहुमत को समझाते हैं कि राम भारत का विधान हैं, विचार हैं, चेतना हैं, प्रताप हैं, नियति और नीति हैं. बहुमत इसे रामराज्य की परोक्ष घोषणा के रूप में देख सकता है. लेकिन सपना 272 से बड़ा है. दो बार से बड़ा है. तीसरी बार, और अधिक सीटों की मोदी सरकार- ये एक अंतर्निहित भाव है. इस भाव को पाना आसान नहीं है इसलिए इस भाव में राम से भी बड़े राजा राम हैं.
राजा राम, जो समावेशी हैं, समदृष्टा हैं. समष्टिबोध वाले हैं. राजा राम, जो किसी को छोटा नहीं मानते. जो गांधी में भी हैं और संघ में भी. जो साधु में भी हैं और गृहस्थ में भी. जो जातियों को तोड़ेंगे और रामज्योति से लोगों को बांधकर राजनीति में जीत का एक और उत्तरकांड लिखेंगे. राजा राम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही, विपक्ष के किसी भी आक्षेप को निरस्त करने वाले रामबाण भी हैं.
भाजपा के लिए, मोदी के लिए और इस बरस विजयदशमी को अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे संघ के लिए एक चमत्कारी संख्या वाली जीत बहुत आवश्यक है. राम ने मूड सेट कर दिया है. इस राम में अब राष्ट्र को जोड़ना है और वो राष्ट्र तब जुड़ेगा जब दृष्टि वैश्विक हो. मोदी बहुत दार्शनिक भाव से कहते हैं कि इतिहास की गांठों में उलझे कई देश पिछला सुलझाने में और अधिक उलझ गए हैं. मोदी गांठों को तोड़ना चाहते हैं. भागवत भी. उलझेंगे नहीं, तो जनमत बड़ा होगा, बहुमत बड़ा होगा.



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Mon, Jan 22 , 2024, 08:48 AM