लोकसभा में पेश होगा दिल्ली सेवा बिल, जानें क्या है खास, कितनी कम हो जाएंगी केजरीवाल की शक्तियां

Mon, Jul 31 , 2023, 10:49 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक विधानसभा (bill assembly) में पेश करने वाली है. विपक्षी दल इस बिल की खिलाफत को लेकर एकजुट हो रहे हैं. केंद्र की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी पहले ही साफ कर चुकी थी कि वो मानसून सत्र में इस विधेयक को लाएगी. मंगलवार यानी 25 जुलाई के दिन इस विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी भी मिल चुकी है.

इस बिल का असर दिल्ली पर पड़ेगा और फिलहाल इसको लेकर सबसे ज्यादा चिंतित भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) और उनका दल आम आदमी पार्टी (AAP) है. दिल्ली सेवा बिल से दिल्ली के मुख्यमंत्री और दिल्ली सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी. उनके पास उनके ही क्षेत्र में कार्यरत अधिकारियों के ऊपर से नियंत्रण पूरी तरह हट जाएगा और ये सारी शक्तियां उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार के पास चली जाएंगी.

ये बिल जब अध्यादेश के रूप में लाया गया था, तभी से AAP इसको लेकर सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक खड़ी थी. इसके बाद विपक्षी एकता में शामिल होने के लिए भी AAP ने इसी बिल के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एक होने की शर्त रखी. केजरीवाल और दिल्ली सरकार की शक्तियों पर पड़ने वाले इस बिल के असर से पहले इस बिल को समझने की जरूरत है.

कहां से आया ये विधेयक? 

ये बिल 19 मई 2023 को केंद्र सरकार द्वारा लाए गए उस अध्यादेश की जगह लेगा, जिसके जरिए सरकार ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. इस बिल और उससे पहले अध्यादेश के आने की शुरुआत होती है साल 2015 से. जब केंद्रीय गृह मंत्री ने एक नोटिफिकेशन के जरिए दिल्ली में तैनात सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत उनके खिलाफ कार्यवाही के सभी अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को दे दिए थे.

यहीं से दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच खटपट की शुरुआत भी हुई. जो अधिकारी दिल्ली सरकार के लिए ही काम कर रहे हैं, उनपर ही कोई कार्यवाही करने की शक्ति के आभाव ने आम आदमी पार्टी को इस मसले को कोर्ट में ले जाने के लिए मजबूर कर दिया. मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, छोटी बैंच से बड़ी बैंच तक पहुंचा. आखिरकार 11 मई को देश की सर्वोच्च अदालत की पांच जजों की बैंच ने आदेश दिया कि पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि को छोड़ कर दिल्ली में कार्यरत सभी अधिकारियों पर कार्यवाही करने और उनके ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार दिल्ली सरकार के हैं.

पलट गया SC का फैसला

इस आदेश से उपराज्यपाल के अधिकार कम हो गए और दिल्ली सरकार को वो शक्तियां मिल गईं जो बाकी राज्यों में चुनी हुई सरकारों के पास होती हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को एक सप्ताह ही हुआ था कि केंद्र सरकार एक अध्यादेश ले आई और सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. इस अध्यादेश के मद्देनजर दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण (NCCSA) नाम का एक प्राधिकरण बनाया जाएगा, जो दिल्ली में पदस्थ अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत उनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही से जुड़े फैसले लेंगे.

NCCSA में तीन लोग होंगे- दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी. प्राधिकरण में बहुमत से फैसला लिया जाएगा और वो फैसला दिल्ली के उपराज्यपाल को भेजा जाएगा. उपराज्यपाल को अगर उस फैसले से आपत्ति होती है तो वो उसे वापस भेज सकते हैं. अगर प्राधिकरण और उपराज्यपाल के बीच किसी फैसले को लेकर विवाद की स्थिति बनती है तो उपराज्यपाल का फैसला ही आखिरी फैसला माना जाएगा.

अब सरकार ले आई बिल

इस अध्यादेश के बाद ये तय था कि केंद्र सरकार इस बाबत कानून बनाएगी और लोकसभा में बिल लाएगी. मानसून सत्र के कामकाज को लेकर बनाई गई सूची में इसका जिक्र था. वहीं विपक्षी दल भी इसके विरोध को लेकर जमकर तैयारी कर रहे थे. आम आदमी पार्टी ने तो विपक्षी गुट INDIA में शामिल होने के लिए कांग्रेस के सामने शर्त रख दी कि पहले उसे इस बिल पर अपना रुख साफ करना होगा और सदन में इसके खिलाफ वोट करना होगा.

केंद्र सरकार ने जल्द इस बिल को लोकसभा में पेश करने की तैयारी में है. वहीं विपक्षी दल भी इसके विरोध के लिए तैयार हैं. जनता दल यूनाइटेड ने अपने सभी सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित होने के लिए व्हिप जारी किया है. विपक्ष उन सांसदों को भी सदन में लाने की तैयारी कर रहा है, जिनकी तबीयत ठीक नहीं है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जेएमएम सांसद शिबू सोरेन भी हैं.

केजरीवाल पर असर क्या

इस बिल को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित आम आदमी पार्टी और इसके प्रमुख अरविंद केजरीवाल हैं. दरअसल आम आदमी पार्टी की राजनीति का आगाज और केंद्र दिल्ली ही है. वहीं इस बिल के मूल में भी दिल्ली ही है. इस बिल के आने के बाद दिल्ली की सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शक्तियां कम हो जाएंगी. केजरीवाल और दिल्ली सरकार की शक्तियों पर यूं पड़ेगा असर-

  • NCCSA में भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री भी शामिल हों, लेकिन इसमें मौजूद दो प्रशासनिक अधिकारी- दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी मिलकर उनका फैसला बदल सकते हैं, क्योंकि इस प्राधिकरण में बहुमत से फैसला लिया जाएगा और बहुमत प्रशासनिक अधिकारियों का है.

  • अगर प्राधिकरण में मुख्यमंत्री को प्रशासनिक अधिकारियों का समर्थन मिल भी जाता है तो भी NCCSA को फैसला लेने के लिए सिफारिश उपराज्यपाल को भेजनी होगी. अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होगा. यानी प्राधिकरण की राय का भी कोई मतलब नहीं निकलेगा. उपराज्यपाल के पास ही सारे अधिकार होंगे.

  • दिल्ली सरकार के पास से उसके अधीन काम करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का हक छिन जाएगा और न ही सरकार किसी अधिकारी का ट्रांसफर या पोस्टिंग अपने हिसाब से कर पाएगी.

  • इस विधेयक के बाद दिल्ली सरकार को सर्विसेज से जुड़ा कोई भी कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा.

  • उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार को दिल्ली में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा पर नियम बनाने की शक्ति मिल जाएगी.

  • सरकार के पास अपने ही क्षेत्र में तैनात अधिकारियों को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं होगी तो विधायिका के साथ-साथ जनता के प्रति उसकी जिम्मेदारी भी कम हो जाएगी.

  • अरविंद केजरीवाल का कहना है कि इस बिल के बाद दिल्ली में तानाशाही शुरू हो जाएगी, जिसके सुप्रीम होंगे उपराज्यपाल. लोग चाहे किसी को भी वोट करें, लेकिन दिल्ली को चलाएगी केंद्र सरकार.

Latest Updates

Latest Movie News

Get In Touch

Mahanagar Media Network Pvt.Ltd.

Sudhir Dalvi: +91 99673 72787
Manohar Naik:+91 98922 40773
Neeta Gotad - : +91 91679 69275
Sandip Sabale - : +91 91678 87265

info@hamaramahanagar.net

Follow Us

© Hamara Mahanagar. All Rights Reserved. Design by AMD Groups