Mayawati: कहीं महंगा न पड़ जाए मायावती को INDIA और NDA से दूरी? ले रहीं बड़ा रिस्क!  

Thu, Jul 20 , 2023, 12:16 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) की बढ़ती सियासी सरगर्मी (political fervor) के बीच 26 विपक्षी दलों ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए INDIA यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (National Developmental Inclusive Alliance) का गठन किया तो बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए में 38 दल शामिल हैं. INDIA और NDA दोनों ही गठबंधनों के साथ दूरी बनाकर बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) चल रही हैं. इस साल चार राज्यों में होने वाले विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती ‘एकला चलो(Ekla Chalo)’ की राह पर चलने का फैसला करके राजनीतिक रिस्क तो नहीं ले रही हैं?
बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि बसपा 2024 का लोकसभा चुनाव और इस साल होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ गठबंधन करने के बजाय अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि बसपा ने NDA और INDIA से दूरी बनाए रखेंगी, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने दलित, पिछड़े गरीबों और कमजोर वर्गों के साथ छल किया है. हालांकि, मायावती ने पंजाब और हरियाणा में क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं, लेकिन शर्त रखी है कि बसपा उन्हीं दलों के साथ गठबंधन करेगी, जिनका एनडीए और विपक्ष दलों का गठबंधन INDIA से नहीं होना चाहिए.
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आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की सियासी बिसात बिछाई जा रही हैं, जहां कोई दल NDA के साथ तो कोई विपक्षी गठबंधन के खेमे में खड़े है. ऐसे में बसपा के अकेले चुनावी मैदान में उतरने के फैसला किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि मायावती किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहती हैं. गठबंधन की सियासत में बसपा का अकेले चुनाव लड़ना कहीं राजनीतिक तौर पर मंहगा न पड़ जाए, क्योंकि पार्टी को एक के बाद एक चुनावी मात खानी पड़ रही हैं और सियासी जनाधार भी खिसकता जा रहा है?
एकला चलो की राह पर क्यों मायावती?
बसपा का किसी के साथ गठबंधन न करने और अकेले दम पर चुनाव लड़ने के पीछे की वजह मायावती इसी साल 15 जनवरी को अपने जन्मदिन के मौके पर दे चुकी हैं. उन्होंने कहा था बसपा पहले भी गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी, लेकिन उन चुनावों का अनुभव ठीक नहीं थे. गठबंधन करने पर बसपा का वोटबैंक तो ट्रांसफर हो जाता है, लेकिन अन्य दलों के साथ ऐसा नहीं होता है. इसी मद्देनजर बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय किया है. मायावती यूपी में कांग्रेस से लेकर सपा तक के साथ गठबंधन कर चुकी है. इतना ही नहीं बसपा ने दूसरे राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है.
वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि गठबंधन की राजनीति में यह बात सच है कि बसपा का वोट जिस तरह से सहयोगी दल के प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर होता है, उस तरह से अन्य दल अपना वोट ट्रांसफर नहीं करा पाते हैं. 2019 में बसपा की तरह सपा का कोर वोटर यादव और आरएलडी का जाट वोटर्स ट्रांसफर नहीं हो पाए थे. वोट ट्रांसफर एक बड़ी वजह है, लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि मायावती गठबंधन में अपने लिए अहम भूमिका में रहना चाहती हैं. 2019 में यूपी में जब सपा-आरएलडी के साथ बसपा का गठबंधन हुआ था तो मायावती ही मुख्य रोल में नजर आ रही थी.
कासिम कहते हैं कि बसपा ने जब भी किसी दल के साथ गठबंधन किया तो चेहरा मायावती ही रहीं हैं. 2024 लोकसभा के लिए बन रहे विपक्षी गठबंधन में राहुल से लेकर सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं. ऐसे में मायावती को लग रहा है कि वो गठबंधन का हिस्सा बनेंगी तो एक दर के तौर भी रहेंगी और मुख्य भूमिका में नहीं होंगी. इसी तरह से एनडीए का चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है, जिसके चलते वहां भी उनके लिए कोई राजनीतिक गुंजाइश नहीं दिख रही हैं. इसीलिए NDA और INDIA दोनो ही गठबंधन से दूरी बनाए हुए हैं. इसके अलावा भी एक बड़ी वजह यह है कि विपक्षी गठबंधन को यूपी में लीड अखिलेश यादव कर रहे हैं, जिसके चलते भी मायावती दूरी बनाए हुए हैं.
बसपा के लिए कहीं महंगा न पड़ जाए?
बसपा का सियासी आधार उत्तर प्रदेश से लेकर अलग-अलग राज्य में खिसकता जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को अकेले मैदान में उतरना महंगा पड़ चुका है. 2014 में बसपा अपना खाता नहीं खोल सकी थी और 2022 में पार्टी का एक ही विधायक जीत सका है. बसपा अपने सियासी इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 2019 में गठबंधन करने का फायदा बसपा को मिला था और 10 सांसद जीतने में कामयाब रहे थे. इसके बाद भी बसपा का अकेले चुनावी मैदान में उतरने जा रही है, जो मायावती के लिए सियासी तौर पर मंहगा पड़ सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि देश और उत्तर प्रदेश की सियासत दो धुर्वों में बंटी हुई है और भी मतदाता दो हिस्सों में बंट गए हैं. वोटरों का एक धड़ा वो है, जो पीएम मोदी या बीजेपी को सत्ता में बनाए रखना चाहता है तो दूसरे वोटर वो है, जो हरहाल में बीजेपी को सत्ता से बाहर करना चाहता है. ऐसे में मतदाता किसी तीसरे विकल्प को नहीं चुन रहा है. दिल्ली से लेकर कर्नाटक, पंजाब और यूपी के विधानसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न ऐसे ही दिखें है.

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