नई दिल्ली। राजनीति में रिश्तों के मायने क्या होते हैं, यह वक्त और हालात से तय होते हैं. यहां ना कोई दोस्त, ना कोई दुश्मन सियासत तो ऐसे ही चलती है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर बीजेपी टीपू कह कर तो तंज कसती ही रही है, लेकिन अखिलेश जब अपने पिता मुलायम सिंह यादव को हटाकर सपा अध्यक्ष पद की कुर्सी पर काबिज हुए तो बीजेपी ही नहीं, उनके अपने नेताओं ने भी उन्हें राजनीति का औरंगजेब बता दिया. सियासत की बिसात पर कई ऐसे प्यादे रहे हैं, जिन्होंने वजीर को ही मात देकर राजनीतिक बाजी अपने नाम की है. इस बिसात पर न ही अजित पवार पहले हैं, जिन्होंने अपने चाचा की कुर्सी छीनी है और न ही अखिलेश यादव आखिरी हैं, जिन्होंने अपने पिता को हटाकर पार्टी अपने नाम कर ली बल्कि राजनीति के कई ‘औरंगजेब’ हुए हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे ‘राजनीति के औरंगजेब’ के बारे में बता रहे हैं जिनमें किसी ने पिता-चाचा तो किसी ने ससुर से गद्दी छीनकर कर दिया पैदल कर दिया…
चाचा से भतीजे ने छीन ली गद्दी
देश की सियासत में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार (Ajit Pawar) की हो रही है. महाराष्ट्र के सियासी रण में 2 जुलाई को जो कुछ हुआ उससे चाचा-भतीजे के रिश्ते के दरमियान बड़ी लकीर खिंच गई, जिसके धब्बे अब शायद ही मिटें. सियासी शतरंज में अजित पवार ने जो चाल चली है, उसमें चाचा बुरी तरह फंस गए हैं. NCP (राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी) में बड़ी फूट पड़ चुकी है और पार्टी के दिग्गज नेता अजित पवार के साथ खड़े हैं. नौबत पार्टी सिंबल और कब्जे तक पहुंच चुकी है. हालांकि चाचा भी अपना कोई दांव नहीं छोड़ रहे हैं. बागी भतीजे से मात खाने के बाद चाचा ने नए सिरे पार्टी को संगठित करने की बात कही है. कहा जा रहा है कि वो अपने बड़े भाई के पोते रोहित पवार को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं. अब वो भविष्य की राजनीति में कितने कामयाब होते हैं, ये वक्त बताएगा लेकिन अजित पवार के तगड़े दांव के आगे भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार फिलहाल बैक फुट पर हैं.
एक वक्त कहा जाता था कि शरद पवार के बाद अजित पवार ही NCP को संभालेंगे, लेकिन साल 2019 में अजित पवार देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के पास पहुंच गए और उनकी सरकार में मंत्री पद की शपथ तक ले ली. इसके बाद से ही शरद पवार और अजित पवार के रिश्ते में खटास आ गई थी. भले ही शपथ लेने के ठीक अगले ही दिन अजित पवार ने बीजेपी का दामन छोड़कर एनसीपी में आ गए, लेकिन शरद पवार का भरोसा उनसे उठ चुका था. शायद इस बात का अंदाजा अजित पवार को भी हो गया था. इस बीच जब शरद पवार के सियासी संन्यास की चर्चा तेज हुए थी तो एनसीपी चीफ ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. यहां से जो चाचा-भतीजे में टेंशन शुरू हुई, उसकी तस्वीर दो जुलाई को आखिरकार साफ हो गई. अजित फिर से NDA के साथ चले गए और डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाल ली. सिलसिला यहीं नहीं थाम, अब दोनों के बीच पार्टी सिंबल और कब्जे की लड़ाई तेज हो गई है. मामला चुनाव आयोग के समक्ष है. संख्या बल के हिसाब से फिलहाल शरद पवार पर अजित पवार ही भारी हैं.
अखिलेश यादव Vs मुलायम सिंह
यूपी की राजनीति में अक्सर ‘औरंगजेब’ का जिक्र होता है. बीजेपी कई मौकों पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को ‘औरंगजेब’ बताकर निशाना साधती रहती है. दरअसल, बीजेपी को ‘औरंगजेब’ कहने का मौका तब मिला जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर खुद सपा की कमान संभाल ली थी. अखिलेश यादव जब पहली बार पार्टी अध्यक्ष बने थे, उस वक्त सपा में परिवारवाद के चलते कलह मची हुई थी. चाचा शिवपाल (shivpal) से अखिलेश की ठन चुकी थी. अखिलेश ने कहा था कि पार्टी में नेता जी की भूमिका अहम बनी रहेगी, लेकिन उन्होंने संदेह भी जताया था कि नेताजी के करीबी लोग उन्हें गुमराह कर सकते हैं. अखिलेश यादव के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में शिवपाल यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने और अमर सिंह को पार्टी से निकालने तक का प्रस्ताव पारित किया गया था. वहीं, सपा में मचे घमासान के बाद समाजवादी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने अखिलेश यादव की तुलना औरंगजेब से कर दी थी. उनका कहना था कि अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को हटाकर स्वयं को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर ये साबित कर दिया है कि देश में औरंगजेब अभी जिंदा है. इसके बाद से बीजेपी कई मौकों पर अखिलेश को औरंगजेब बोलकर घेरती है.
ससुर को गच्चा देकर सीएम बने नायडू
दक्षिण की राजनीतिक के चर्चित चेहरे चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) की सियासत भी कुछ ऐसी ही रही है. वो आंध्र प्रदेश प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपना सियासी सफर शुरू किया था. मशहूर फिल्म अभिनेता एनटी रामाराव के दामाद होने के नाते वो बाद में वो टीडीपी में आ गए. एनटीआर के दामाद होने की वजह से सियासत में नायडू का सितारा तेजी से बुलंद हुआ. 1984 में जब भास्कर राव ने एनटीआर के खिलाफ विद्रोह किया तो नायडू ने ससुर के साथ विधायकों को एकजुट रखते हुए सरकार बचा ली थी, लेकिन उनके सियासी सफर का सबसे अहम दिन था एक सितंबर 1995. इसी दिन वो फिल्मी स्टाइल में सीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे. ससुर के भरोसे सियासी पहचान बनाने वाले नायडू ने 1 सितंबर 1995 को सीएम एनटीआर को ऐसा गच्चा दिया, जिसका मलाल उन्हें अंतिम वक्त तक रहा. एनटीआर अपनी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को सियासत में आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन नायडू ने जोड़तोड़ से विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. इस विश्वासघात से एनटीआर इस कदर नाराज थे कि उन्होंने नायडू को औरंगजेब तक कह दिया था.
पारस और चिराग की अदावत
बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी में दरार का कारण भी चाचा-भतीजे बने. पार्टी मुखिया रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन के बाद जो घमासान मचा उससे चाचा-भतीजे के रिश्ते में दरार आ गई. केंद्रीय मंत्री और एलजेपी के सह-संस्थापक पशुपति कुमार पारस बार-बार चिराग पासवान से तंज भरे अंदाज में सवाल करते नजर आते हैं कि वो कौन से गठबंधन में हैं? बता दें कि साल 2021 में लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में टूट चुकी है. इसका एक गुट ‘राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी’ पशुपति कुमार पारस के साथ है, जबकि दूसरा धड़ा उनके बेटे चिराग पासवान के पास. पशुपति कुमार पारस का गुट आज भी केंद्र की एनडीए सरकार का हिस्सा है, लेकिन चाचा-भतीजे के बीच रिश्ते की कड़वाहट ऐसी है कि पारस खुद चिराग को अपना भतीजा मानने को तैयार नहीं हैं. वहीं, चिराग पासवान पीएम मोदी का खुला समर्थन करते हुए चाचा को नसीहत देते रहते हैं.
एकनाथ शिंदे ने उद्धव को किया अकेला
महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे के करीबी रहे एकनाथ शिंदे ने उनके बेटे उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के साथ जो किया, उसे भी ‘दगा’ की राजनीति कहा जाता है. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में ऐसी सेंधमारी की उद्धव ठाकरे अकेले पड़ गए. वहीं, एकनाथ शिंदे को बीजेपी की ओर से ऐसा इनाम मिला जिसकी उम्मीद नहीं लगाई जा रही थी. उद्धव को हटाने पर वो सूबे के सीएम बनाए गए. सीएम की कुर्सी पाने के बाद एकनाथ शिंद ने पार्टी में भी तोड़फोड़ कर दी. शिवसेना के दिग्गज नेता शिंदे के साथ चले गए और उद्धव अकेले पड़ गए. पार्टी और सिंबल पर भी दोनों के जमकर घमासान मचा. हालांकि चुनाव आयोग का फैसला भी लगभग शिंदे के पक्ष में रहा. कहा जा रहा है कि वर्तमान में उद्धव ठाकरे की जो सिसासी स्थिति है वही शरद पवार की हो गई है.
बेटी से अलग हो गईं कृष्णा पटेल
मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) भी बागी नेता के तौर पर गिनी जाती हैं. उन्होंने अपनी मां और बहन से अलग होकर अपना सियासी सफर बढ़ाया है. पिता सोनेलाल पटेल के निधन के बाद वो पार्टी का मुख्य चेहरा हैं. 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल राष्ट्रीय अध्यक्ष और अनुप्रिया को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था, लेकिन धीरे-धीरे अनुप्रिया पर मां की अनदेखी करने और खुद को पार्टी का असली हकदार बताने का आरोप लगने लगा. मां-बेटी के बीच पार्टी के अधिकार को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि मां कृष्णा पटेल अपना गुट लेकर अलग हो गई थीं. वहीं अनुप्रिया पटेल ने भी 2016 में अपनी अलग पार्टी अपना दल (सोनेलाल) बनाई ली.



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Thu, Jul 06 , 2023, 04:57 AM