लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष एक मंच पर आने की तमाम कोशिशें कर रहा है और बैठकों के तौर पर इसे बड़ा रूप देने में भी जुटा है. भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के विजयरथ को रोकने को लिए विपक्ष की इस महाएकता के सबसे बड़े सूत्रधार में से एक शरद पवार (Sharad Pawar) इन दिनों खुद मुश्किल में घिरते नज़र आ रहे हैं. एक तरफ शरद पवार देशभर में विपक्षी पार्टियों को एक कर रहे हैं, तो दूसरी ओर उनकी पार्टी ही टूटती दिख रही है.
शरद पवार के भतीजे अजित पवार के दर्जनों विधायकों के साथ बीजेपी-शिवसेना सरकार में शामिल होने के साथ ही राज्य में महागठबंधन का अंत होता दिख रहा है, लेकिन क्या ये सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित है या फिर इसकी आंच राष्ट्रीय स्तर तक जाएगी. इसपर अब हर किसी की नज़रें टिकी हैं, क्योंकि शरद पवार कई बार इस तरह की परिस्थिति का सामना कर चुके हैं.
महाराष्ट्र में भाजपा ने एक नहीं दो पार्टी तोड़ी
साल 2019 में जब राज्य में चुनाव हुए थे, तब भाजपा और शिवसेना की जोड़ी थी. लेकिन चुनाव नतीजों के बाद हालात बदल गए और शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ा. तब महाविकास अघाड़ी बना, जिसमें एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना शामिल थी और उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री बने. लेकिन ये गठबंधन डेढ़ साल तक ही चल पाया, क्योंकि भाजपा ने तब शिवसेना में सेंधमारी की थी. शिवसेना में एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की अगुवाई में बड़ी संख्या में विधायक भाजपा के साथ आए और शिवसेना पूरी तरह से दोफाड़ हो गई.
राज्य में एक बार फिर वैसी ही कहानी दोहराई गई है, अब शिवसेना की जगह एनसीपी है. अब अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी के विधायक बीजेपी के साथ आ गए हैं और पार्टी दोफाड़ हो गई है. यानी बीजेपी ने महाराष्ट्र में उसके खिलाफ खड़े हुए गठबंधन को ही नहीं तोड़ा बल्कि उसमें शामिल दो राजनीतिक दलों को ही तोड़ दिया. जिसका असर सिर्फ राज्य ही नहीं बल्कि राष्ट्र्रीय परिपेक्ष में भी दिख रहा है.
2023 के एक्शन का 2024 में असर
राजनीतिक हल्कों में अभी जो कुछ भी गुजर रहा है, उसका काफी हदतक असर लोकसभा चुनाव 2024 पर पड़ने वाला है. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाला राज्य हैं, जहां कुल 48 सीटें हैं. ऐसे में अगर भाजपा को सत्ता में लौटने की हैट्रिक जमानी है, तो यहां पर प्रदर्शन को बरकरार रखना होगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना साथ थीं, तब बीजेपी के खाते में 23 और शिवसेना के पास 18 सीटें थीं लेकिन अब चीज़ें बदल गई हैं यही वजह है कि भाजपा 2024 की रणनीति साधने में जुटी है.
महाराष्ट्र का मौजूदा समीकरण देखें तो बीजेपी पहले से मज़बूत हुई है, लेकिन शिवसेना और एनसीपी दो हिस्से में बंट चुकी है. इन दोनों पार्टियों का एक-एक हिस्सा भाजपा के साथ ही है, ऐसे में भाजपा की नज़र फिर से महाराष्ट्र में गठबंधन स्तर पर 40 पार सीटों पर होगी. यहां वह खुद गठबंधन का बड़ा भाई बन रही है, जिसको लेकर अक्सर उसकी लड़ाई शिवसेना के साथ होती थी. मोदी मैजिक के नाम पर भाजपा यहां एकनाथ शिंदे गुट, अजित पवार गुट की नैया पार लगाने की कोशिश करेगी तो दूसरी ओर कांग्रेस, उद्धव और शरद पवार गुट इस तूफान को रोकने में जुटेंगे.
महाराष्ट्र में लोकसभा सीटों का हाल-
कुल सीटें: 48 भाजपा- 23 शिवसेना- 18 एनसीपी- 4 कांग्रेस- 1 AIMIM- 1 अन्य- 1
एक तीर से विपक्षी एकता को किया नेस्तनाबूद!
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सिर्फ भाजपा ही नहीं विपक्ष भी कमर कस रहा था, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) लगातार नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे जिसके बाद पटना में विपक्ष का एक महाजुटान भी हुआ था. नीतीश कुमार भले ही इस एकता का चेहरा बनते दिख रहे थे, लेकिन शरद पवार इस एकता के सूत्रधार में से एक रहे हैं. शरद पवार ही विपक्ष की दूसरी बैठक की रूपरेखा भी तैयार कर रहे थे, जो जुलाई में ही होने वाली थी लेकिन दूसरे महाजुटान से पहले ही विपक्षी एकता के साथ खेल हो गया.
जिन शरद पवार के जिम्मे विपक्षी एकता का जिम्मा था, वही अब अपनी पार्टी को समेटने में जुट गए हैं. ये दूसरी बार है जब एनसीपी में टूट दिख रही है, लेकिन पार्टी की इस हलचल का असर विपक्ष की पूरी एकता पर दिख रहा है. अजित पवार की ‘बगावत’ के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने शरद पवार से फोन पर बात भी की और हालात समझने की कोशिश की. बीजेपी ने महागठबंधन के सबसे मजबूत किले को ही कमजोर किया है, ऐसे में अब विपक्ष का मनोबल नीचा है. इस घटनाक्रम के बीच विपक्ष ने अपनी दूसरी बैठक को भी टाल दिया है, जो अब संसद के सत्र के बाद हो सकती है.
अब क्या करेंगे शरद पवार?
एनसीपी प्रमुख शरद पवार को सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का भी अहम रणनीतिकार माना जाता है, उनके हर दांव पर लोगों की नज़र होती है. अब जब उनका घर ही उजड़ता दिख रहा है, तब उनका अगला कदम क्या होगा ये भी एक सवाल है. क्योंकि एक तरफ अजित पवार के कदम को बगावत बताया जा रहा है तो दूसरी ओर अजित पवार गुट बोल रहा है कि उन्हें शरद पवार का आशीर्वाद हासिल है.
सीनियर पवार ने पांच जुलाई को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है, जिसमें आगे की रणनीति तय की जा सकती है. क्या शरद पवार फिर अपने भतीजे को माफ करेंगे, या अब कुछ कड़ा एक्शन लेंगे. क्योंकि शरद पवार के सामने सिर्फ पार्टी ही नहीं अपने परिवार को साथ रखने की भी चुनौती है.



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Mon, Jul 03 , 2023, 04:53 AM