द कश्मीर फाइल्स : हकीकत बेपर्दा होने से दर्द होता है अजेंडा जीवियों को : गिरिराज सिंह

Mon, Mar 14 , 2022, 10:41 AM

Source : Uni India

बेगूसराय, 14 मार्च (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर के कई तरह की कहानियां पर्दे पर उतर चुकी है, जिसमें आतंकवाद की जमी जड़ों पर फोकस रहा है लेकिन ''द कश्मीर फाइल्स'' (The Kashmir Files) अब एक ऐसी फिल्म आई है, जिसमें 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के बेघर कर दिए जाने की कहानी दिखाया गया है। कश्मीरी पंडितों के इस दर्द को निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ में समेट कर लाए हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने भी इस फिल्म को लेकर जोरदार प्रहार किया है तथा सभी लोगों से भूतकाल देखकर भविष्य पर चिंतन करने का आग्रह किया है। गिरिराज सिंह ने कहा है कि हकीकत बेपर्दा होने से अजेंडा जीवियों को बहुत दर्द होता है। द कश्मीर फाइल्स देखिए, जोर-शोर से देखिए और अपने दर्दनाक इतिहास को देखकर अपने भविष्य के बारे में सोचिए। इस फिल्म को मोबाइल के माध्यम से बड़ी संख्या में लोग इसे देख रहे हैं, दूसरों को देखने के लिए भी लिंक सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर किए जा रहे हैं। इसके साथ ही राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों ने देश के तमाम शहरों में स्थित सिनेमाघरों में इस फिल्म को लगाने की मांग तेज कर दी है। इतिहास गवाह है कि इस देश के लोगों को झूठ, सच बताकर परोसा गया है। केवल वही बताया गया है जो वो चाहते कि हमें पता चले, वह नहीं जो हमें वाकई जानना था, जो सच था और सच को तोड़-मरोड़ कर पेश कर देने से झूठ सच नहीं बन जाता। फिल्में लोगों तक पहुंचने का सुलभ माध्यम रही है और इस माध्यम पर भी दशकों से एक टोल बैरियर लगा दिया गया, जहां सच को फिल्टर कर दिया जाता था और आमजन तक जो पहुंचता था वह मनोरंजन (Entertainment) की मलाई में लपेट कर पेश किया गया। निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने जानकारियां इकट्ठा कर करके, पीड़ितों के साक्षात्कार लेकर द कश्मीर फाइल्स के द्वारा सच पहुंचाने का साहस दिखाया है। कश्मीर में घटित कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार, त्रासदी, बेघर करने सहित अनेक विचलित करने वाले वास्तविक दृश्य और घटना सिनेमा के माध्मम से पहली बार लोगों तक पहुंची है। रियल लाइफ में कश्मीर से विस्थापित होने का दर्द झेल चुके अनुपम खेर ने रील लाइफ में पुष्कर नाथ के दर्द को बखूबी बयां किया है, दर्शन एक दिग्भ्रमित युवा के रूप में अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से दिखाया। विलेन फारूख मल्लिक बिट्टा के रूप में चिन्मय मांडलेकर का किरदार फिल्म का बेहतरीन हिस्सा है। प्रोफेसर के रोल में पल्लवी जोशी काफी प्रभावशाली दिखी तो मिथुन चक्रवर्ती और पुनीत इस्सर भी दर्शकों को मायूस नहीं करते हैं। ''द कश्मीर फाइल्स'' एक टाइम ट्रैवल के तौर पर काम करती है, जिसमें 1990 के समय को मौजूदा पीढ़ी के साथ जोड़ने का काम किया गया है। दिल्ली में पढ़ने वाला छात्र अपने दादा की अस्थियों को विसर्जित करने कश्मीर जाता है। जहां उसकी मुलाकात दादा के दोस्तों से होती है और फिर पुरानी कहानियां निकलकर आती हैं कि किस तरह कश्मीरी पंडितों को उनके घर से खदेड़ा गया था। यहां से ही कहानी को रिवाइंड में मोड़ दिया गया है, जिसमें 90 के दशक में किस तरह चीजें फैली और कश्मीरी पंडितों को भगाया गया। इसी दलदल में दोस्ती, सरकारी मशीनरी के एक पहलू को दिखाते हुए उसपर तंज कसे गए हैं। इस फिल्म के माध्यम से अपना हिंदुस्तान वह देख रहा है जो उसे वर्षों पहले देखना चाहिए था। फिल्म को देखकर हर भारतीय के मन में एक अफसोस है कि हम उनके लिए खड़े क्यों नहीं हुए, क्यों हमने उन्हें अकेला छोड़ दिया, क्यों ऐसा विभत्स नरसंहार किया गया था। जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर को जहन्नुम बनाया जा रहा था और सब मौन क्यों थे।

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