मुंबई हाई कोर्ट (High Court) ने लोकल (Local) के दरवाज़े (doors) पर खड़े होने पर अहम फ़ैसला सुनाया है: मुंबई हाई कोर्ट (Mumbai High Court) ने एक अहम फ़ैसला सुनाया है कि लोकल के दरवाज़े पर खड़ा होना ‘लापरवाही’ नहीं है। ट्रेन हादसे में यात्री (Train accident) के रिश्तेदारों को मुआवज़ा देने का निर्देश देते हुए, उसने पिछले फ़ैसले को बरकरार रखा। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है कि मुंबई सबअर्बन लोकल की भयानक भीड़ वाली स्थिति में दरवाज़े पर खड़े होने को लापरवाही नहीं माना जा सकता। इस मामले में, कोर्ट ने रेलवे प्रशासन के कान खड़े कर दिए हैं।
कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
काम पर जाने वाले यात्री के लिए पिक-अप आवर में लोकल में घुसना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में, उनके पास अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। इसलिए, कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है कि रश आवर में फुटबोर्ड पर खड़े होकर यात्रा करने का मतलब लापरवाही नहीं है। कोर्ट ने ट्रेन एक्सीडेंट में मारे गए एक पैसेंजर के परिवार को दिया गया मुआवज़ा बनाए रखने का निर्देश दिया है और मुआवज़े से छूट के लिए रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन के दावे को खारिज कर दिया है। रेलवे का तर्क था कि मरने वाला पैसेंजर लोकल के दरवाज़े पर खड़ा था और लापरवाही से सफ़र कर रहा था, इसलिए वह एक्सीडेंट के लिए ज़िम्मेदार है। हालांकि, जस्टिस जितेंद्र जैन की सिंगल बेंच ने इस दावे को खारिज कर दिया।
क्या है मामला?
28 अक्टूबर, 2005 को वेस्टर्न रेलवे पर भायदर से मरीन लाइन्स जाते समय एक पैसेंजर लोकल ट्रेन से गिर गया था। परिजनों ने मुआवज़े के लिए रेलवे अथॉरिटी से संपर्क किया था। रेलवे अथॉरिटी ने एक्सीडेंट में मारे गए पैसेंजर के परिजनों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने अथॉरिटी के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट का क्या फैसला है?
मुंबई लोकल में सुबह और शाम को भारी भीड़ होने के कारण, पैसेंजर के पास दरवाज़े पर खड़े होने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं होता है। यह काम 'लापरवाही' नहीं है। अगर भीड़ की वजह से कोई अपना बैलेंस खो देता है और ट्रेन से गिर जाता है, तो इस घटना को ‘गलत घटना’ नहीं माना जाएगा।
एक्सीडेंट के शिकार के परिवार ने जो डॉक्यूमेंट्स जमा किए थे, उनमें मृतक का पास और पहचान पत्र शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि एक्सीडेंट के दिन पास भूल जाना मुमकिन है और इसलिए मुआवज़ा देने से मना करना सही नहीं है। हाई कोर्ट ने यह बड़ी बात कही, “रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है, भीड़ में दरवाज़े पर खड़ा होना एक सच्चाई है। यह लापरवाही नहीं है।”



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Thu, Dec 11 , 2025, 12:21 PM