जिन्ना को देशभक्त बताने के बाद संभल गये अखिलेश

Thu, Feb 10 , 2022, 12:07 PM

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-अब तक भाजपा सुशासन बनाम सपा शासन काल में दंगा के मुद्दे को उठाती रही
-वहीं समाजवादी पार्टी किसानों के मुद्दे पर बढ़ती रही आगे
-सपा व कांग्रेस की सक्रियता रही शिथिल
लखनऊ, 10 फरवरी (हि.स.)।
पहले चरण की मतदान प्रक्रिया चल रही है। सभी दल के नेता दूसरे चरण के लिए प्रचार में जुट गये हैं। पश्चिम में अभी तक भाजपा जहां राष्ट्रवाद की अस्मिता बचाने के नाम पर आगे बढ़ती रही। वहीं विपक्ष विशेषकर समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी रालोद जातिगत आधार पर बांटने व भाजपा को समाज को बांटने वाली पार्टी साबित करने में जुटी रही। दोनों पार्टियां एक-दूसरे को अपनी पिच पर लाने के प्रयास में जुटी रही, लेकिन कोई भी अब तक एक पिच पर नहीं आये। दोनों ही अपनी-अपनी पिच पर बैटिंग करते रहे।
एक सभा में जिन्ना का एक बार नाम लेकर फंस चुके अखिलेश यादव फुंक-फुंक कर कदम रख रहे हैं। उन्होंने अपने सहयोगी दल को भी कह दिया है कि किसी भी बयान को सोच-समझकर दिया जाय। हमें किसी के बयान पर बयान देने से बचने की जरूरत है। अब तक भाजपा जहां हमेशा समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगे और भाजपा के शासन काल में सुशासन का मुद्दा जोर-शोर से उठाई। वहीं समाजवादी पार्टी सिर्फ किसानों के साथ अन्याय का राग अलापते हुए चलती रही।
भाजपा जब समाजवादी पार्टी के शासन काल में कैराना में हिन्दुओं का पलायन का मुद्दा उठाती तो समाजवादी पार्टी चुप्प हो जाती। यहां तक कि जनवरी माह में पत्रकार वार्ता के दौरान दो बार मीडिया ने भी अखिलेश यादव से कैराना मुद्दे को उठाया लेकिन वे एक शब्द भी बिना बोले दूसरे मुद्दे की ओर टाल गये। वे यही कहते रहे, उस मुद्दे की जगह आप लखीमपुर में हुए किसानों की मौत का मुद्दे पर बात क्यों नहीं करते। उन्नाव व हाथरस में बेटियों के साथ हुए अन्याय का मुद्दा भी विपक्ष के लिए मुख्य मुद्दा बना रहा।
वहीं भाजपा बार-बार समाजवादी पार्टी की सरकार में हुए दंगों बनाम भाजपा के सुशासन का मुद्दा उठाती रही। भाजपा के इन मुद्दों का असर मतदाताओं पर कितना हुआ, इसका पता तो 10 मार्च को ही चल पाएगा लेकिन पश्चिम में बहुत हद तक वह अपने मकसद में कामयाब होती दिख रही है। बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की सक्रियता तो एक तरह से शिथिल ही रही। बसपा ने तो अपना घोषणा पत्र भी जारी नहीं किया।
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन सिंह का कहना है कि अखिलेश यादव जिन्ना को देशभक्त बताकर फंस गये। उस समय ऐसा लगा कि अब भाजपा अपने पिच पर लाकर अखिलेश यादव को खड़ी देगी लेकिन उसके बाद से ही वे संभल गये और फिर कभी वे इस तरह के विवादास्पद बयान से बचने लगे। पश्चिमी यूपी में सभी अपने-अपने हिसाब से अपने-अपने पिच पर ही खेलते नजर आये। कोई भी अब तक एक-दूसरे के पिच पर जाने को तैयार नहीं दिखा।

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