जालंधर, 09 फरवरी (वार्ता) कांग्रेस प्रवक्ता एवं पूर्व सांसद संजय निरुपम ने बुधवार को कहा कि अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ईर्ष्या, झूठ, नफरत और जुमलों की दोशाला ओढ़ कांग्रेस पर आक्रामक हो रहे हैं। श्री निरुपम ने आज यहां प्रेसवार्ता में कहा,“ लॉक डाउन के दौरान कांग्रेस का प्रवासी मजदूर भाइयों की सेवा करना मोदी जी को हद लगती है। ”
उन्होंने कहा कि मार्च 2020 में श्री मोदी के बिना किसी पूर्व सूचना के लॉकडाउन घोषित होने कारण पूरे देश की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी। खास कर प्रवासी मजदूर भाइयों के लिए यह एक अत्यंत ही कठिन समय रहा। उन्होंने कहा कि अचानक थोपे गये लॉकडाउन के कारण व्यापार ठप पड़ गया। देश के लाखों दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। मोदी सरकार की इस नासमझी के कारण लाखों प्रवासी कामगारों को उनके गांव वापस जाना पड़ा। बड़े पैमाने पर प्रवासी कामगार बिना भोजन या आश्रय के देश भर में फंसे हुए थे, वे जीवित रहने और अपने गाँव लौटने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उस समय मोदी सरकार, भाजपा शासित राज्य सरकारें और भारतीय रेलवे का एक भयानक असंवेदनशील चेहरा लोगों के सामने आया था।
श्री निरुपम ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में सात फ़रवरी 2022 को अपने में भाषण में इसकी चर्चा करके ये बात कहने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने कहा कि श्री मोदी को अपनी बातों को वापस लेना चाहिये और देश के मुद्दों पर बहस करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 14 करोड़ प्रवासी श्रमिक हैं जो निर्माण, आतिथ्य, वस्त्र, घरेलू काम और उद्योग में काम करने के लिए हर साल अपने गांवों से शहरों में जाते हैं। प्रवासी मजदूर भाइयों के पलायन का दृश्य देश के विभाजन (1947) की तरह ही भयावह था।
श्री निरुपम ने कहा कि ऐसा नहीं है कि भारत में आपदा पहली बार आयी थी। 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने भारत के भीतर लगभग 6,50,000 लोगों को विस्थापित किया था। 2004 में सुनामी और 2020 में कोविड-19 महामारी के बीच समानता यह है कि दोनों ही मामलों में, लोग अपनी सुरक्षा के लिए देश के भीतर इच्छा के विपरीत एक जगह से दूसरे जगह जाने को मजबूर हुए। 2004 की सुनामी जैसी भीषण आपदा में ड़ॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने सुनामी से पलायन करने वाले लोगों की सहायता की थी जबकि जो लोग कोविड-19 से पलायन को मजबूर हुए तो उन्हें मोदी सरकार,भाजपा शासित राज्य सरकारों ने प्रवासी श्रमिकों के रूप में उन्हें बेग़ाना/पराया समझा और उन्हें उनकी भाग्य की दया पर अनाथ छोड़ दिया। सरकार चाहती तो ट्रेन, बसों की व्यवस्था कर सकती थी।



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Wed, Feb 09 , 2022, 07:37 AM