Bihar Politics: उनकी कथनी और करनी में एकरूपता थी, बिहार के अजेय योद्धा रहे कर्पूरी ठाकुर पहली बार 1984 में समस्तीपुर लोकसभा चुनाव हारे 

Sat, May 11 , 2024, 01:41 AM

Source : Uni India

पटना। बिहार की सियासत (Bihar politics) के अजेय योद्धा रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) को वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव (1984 Lok Sabha elections) में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या से कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर में पहली बार हार का सामना करना पड़ा था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिले के पितौनझियां गांव (Pitunjhian village of Samastipur district) में हुआ था। उन्हें विरासत में अभाव और गरीबी मिली, उन्हें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता था। कर्पूरी ठाकुर ने 1942 के आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। वह आजाद दस्ते में शामिल हो गए और परिवार की आर्थिक कठिनाइयों को देखते हुए शिक्षक की नौकरी भी कर ली। वह मिडिल स्कूल की हेडमास्टर बने और आजाद दस्ते का कामकाज भी करते रहे।

एक बार समस्तीपुर के कृष्ण टॉकीज हॉल (Krishna Talkies Hall) में एक सभा चल रही थी। इस सभा में जब कर्पूरी ठाकुर को बोलने का मौका मिला तो उन्होंने कहा कि ‘हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक देने भर से अंग्रेजी राज्य बह जाएगा।’ इस भाषण के जरिए युवा कर्पूरी ने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी। उनको एक दिन का कारावास और 50 रुपये जमा कराने की सजा सुनाई गयी। इस तरह कर्पूरी ठाकुर ने आजादी के आंदोलन में दस्तक दी। आजादी के बाद कर्पूरी ठाकुर ने वर्ष 1952 में समस्तीपुर जिले के ताजपुर से सोशलिस्ट पार्टी (Socialist Party) के टिकट पर जीत हासिल की। उन्‍हीं दिनों की बात है कि ऑस्‍ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में उनका चयन हुआ था। तब उनके पास पहनने के लिए कोट नहीं था। इस पर उन्‍होंने दोस्‍त से कोट उधार लिया। दुर्भाग्‍य से यह फटा हुआ निकला। वही कोट पहनकर कर्पूरी विदेश चले गए। यूगोस्‍लाविया के प्रमुख मार्शल टीटो (Yugoslavia's Chief Marshal Tito) ने जब उनका फटा कोट देखा तो उन्‍हें गिफ्ट में नया कोट दिया।

ठाकुर इसके बाद लगातार वर्ष 1957, 1962, 1967, 1969, 1971 तक ताजपुर से विधायक बनें। वर्ष 1977 में ठाकुर ने पहली बार समस्तीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और इस बार भी उन्हे जीत मिली। मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर को छह महीने के अंदर विधानसभा (Legislative Assembly) या विधान परिषद (Legislative Council) का सदस्य बनना अनिवार्य था। देवेंद्र प्रसाद यादव पहली बार विधायक बने थे। उन्होंने अपनी जीती सीट फुलपरास, कर्पूरी ठाकुर के लिए छोड़ने का फैसला किया। उपचुनाव में जनता पार्टी उम्मीदवार कर्पूरी ठाकुर ने कांग्रेस के राम जयपाल सिंह यादव को पराजित किया और विधायक बन गये। उन दिनों को याद करते हुए अब्दुल बारी सिद्दीकी ने एक बार बताया था कि उन्होंने कर्पूरी ठाकुर जैसा नेता नहीं देखा। उनकी कथनी और करनी में एकरूपता थी। वे जो कहते उसे पूरा जरूर करते। बात 1977 की है। मैं बहेरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहा था। कर्पूरी जी ने सहयोग के रूप में मुझे दो सौ रुपये दिए। इसके बाद 1980 में जब चुनाव हो रहे थे तो उन्होंने मुझे पांच सौ रुपये दिए। हाथों में पांच सौ रुपये देखकर मैंने सवाल किया, पांच सौ? कर्पूरी जी मुस्कुराए और बोले बाकियों को ढ़ाई सौ या तीन सौ रुपये दिए हैं, तुमको दो सौ रुपये बढ़ाकर दे रहा हूं

वर्ष 1980 में कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर के विधायक बने। वर्ष 1984 में उन्होंने समस्तीपुर लोकसभा से फिर चुनाव लड़ा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर कांग्रेस के लिए लाभकारी साबित हुई! इसी लहर में अबतक किसी भी चुनाव में पराजय का स्वाद नहीं चखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर समस्तीहपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के रामेदव राय से पराजित हो गये। हालांकि वर्ष 1985 में सोनबरसा विधानसभा क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर ने जीत हासिल की। बिहार के राजनीतिक आसमान में सबसे ज्यादा चमकने वाले सितारे कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनका निधन 17 फरवरी 1988 को हो गया। उनको मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

प्राचीनकाल में समस्तीपुर का नाम सोमवती था, जो बाद में सोम वस्तीपुर, समवस्तीपुर और फिर समस्तीपुर हो गया। 14 नवंबर 1972 को समस्तीपुर को अलग जिला का दर्जा मिला। इससे पहले यह दरभंगा जिले का हिस्सा हुआ करता था। समस्तीपुर के कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री, एक बार उप मुख्यमंत्री, दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। समस्तीपुर के सीने पर पर एक गहरा घाव भी है जो आज तक नहीं भरा है। तीन जनवरी 1975 को समस्तीपुर में तत्कालीन रेल मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता ललित नारायण मिश्रा की हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1990 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे लाल कृष्ण आडवाणी की समस्तीपुर में रथ यात्रा में गिरफ्तारी भी सुर्खियों में रही थी।

वर्ष 1957 में समस्तीपुर सीट पर हुये पहले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सत्य नारायण सिन्हा ने जीत हासिल की थी। इससे पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण सिन्हा ने वर्ष 1952 में समस्तीपुर पूर्व से जीत हासिल की। वर्ष 1962 में काग्रेस प्रत्याशी सत्य नारायण सिन्हा ने फिर समस्तीपुर से जीत हासिल की । वह जवाहर लाल नेहरू ,लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे।उन्हें 1971 में मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। सत्य नारायण सिन्हा 'प्रिंस ऑफ पार्लियामेंट' के नाम से मशहूर थे।वर्ष 1967 और वर्ष 1971 के चुनाव में समस्तीपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी यमुना प्रसाद मंडल निर्वाचित हुये। वर्ष 1977 में समस्तीपुर से कर्पूरी ठाकुर पहली बार सांसद बनें। भारतीय लोक दल (बीएलडी) प्रत्याशी कर्पूरी ठाकुर ने कांग्रेस प्रत्याशी यमुना प्रसाद मंडल का विजय रथ रोक दिया। वर्ष 1977 में कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके समस्तीपुर संसदीय सीट से इस्ताफा देने के बाद समस्तीपुर में हुये उपचुनाव में जनता पार्टी के अजीत कुमार मेहता ने इंदिरा कांग्रेस की तारकेश्वरी सिन्हा को पराजित कर जीत हासिल की।बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत अजीत कुमार मेहता के प्रचार की कमान कर्पूरी ठाकुर और जार्ज फर्नाडीस ने संभाली थी। कर्पूरी ठाकुर गांव-गांव घूमकर मतदाताओं से खुलकर मिल रहे थे। जनता पार्टी की बैठकों में, जब जॉर्ज फर्नांडीस ने लोगों से अजीत कुमार के लिए वोट करने को कहा तो मेहता दर्शकों का अभिवादन करने के लिए खड़े हो गए। एक सभा में जब लोगों ने उनसे बोलने की बार-बार मांग की तो उन्होंने कुछ लड़खड़ाते हुए शब्द बोले। अजीत कुमार मेहता की तुलना में, इंदिरा कांग्रेस तारकेश्वरी सिन्हा एक अनुभवी प्रचारक थीं। तारकेश्वरी सिन्हा उर्दू दोहों के साथ भाषण दिया करती थी। वर्ष 1980 में जनता पार्टी (सेक्यूलर) प्रत्याशी अजीत कुमार मेहता फिर सांसद बनें। वर्ष 1984 में कांग्रेस के रामदेव राय ने लोकदल प्रत्याशी कर्पूरी ठाकुर को मात दी।

वर्ष 1989 और वर्ष 1991 में लगातार दो बार जनता दल के मंजय लाल समस्तीपुर के सांसद बने। वर्ष 1996 में जनता दल के टिकट पर अजीत कुमार मेहता फिर सांसद बनें। वर्ष 1999 में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के मंजय लाल फिर सांसद बनें। वर्ष 2004 में पूर्व मंत्री तुलसी दास मेहता के पुत्र राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के आलोक कुमार मेहता पहली बार समस्तीपुर के सांसद बनें। वर्ष 2009 में जदयू के महेश्वर हजारी ने जीत हासिल की। वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में लगातार दो बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री राम विलास पासवान के छोटे भाई रामचंद्र पासवान ने समस्तीपुर से जीत हासिल की। वर्ष 2019 में ही रामचंद्र पासवान के निधन के बाद हुये उपचुनाव में उनके पुत्र प्रिंस राज ने जीत हासिल की।

जननायक कर्पूरी ठाकुर की जन्मभूमि और कर्मभूमि समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र पर मुकाबला कई मायनों में द‍िलचस्‍प हो गया है। यहां से नीतीश सरकार के दो मंत्री अशोक चौधरी और महेश्वर हजारी के बच्चे चुनाव मैदान में हैं। एक तरफ जहां नीतीश सरकार के ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं, वहीं सूचना जनसंपर्क मंत्री महेश्वर हजारी के पुत्र सन्नी हजारी इंडिया गठबंधन के घटक कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

नीतीश सरकार के दो मंत्री के संतान के बीच चुनावी जंग पर लोगों की नजर है।देश में शायद ही ऐसा चुनाव हुआ होगा जहां एक ही पार्टी और सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों की संतान एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग में गुत्थमगुत्थी किए हों। समस्तीपुर लोकसभा का चुनाव इस चरण का सबसे लोकप्रिय चुनाव होने जा रहा है। वैसे तो चुनावी हार जीत की जंग में नीतीश मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों के औलाद शामिल होंगे पर इस चरण में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और लोजपा

रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी है। इस चुनाव में लिटमस टेस्ट नीतीश कुमार और चिराग पासवान का होना तय है।अपनों के बीच लड़ाई कैबिनेट से निकलकर परिवार के बीच भी है।लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी शांभवी चूंकि राजग उम्मीदवार हैं, इसलिए जदयू और पिता अशोक चौधरी का खुलकर समर्थन मिल रहा है।वहीं, दूसरी ओर सन्नी हजारी इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी हैं, इसलिए जदयू के समर्थन का सवाल ही नहीं। पिता महेश्वर हजारी भी खुलकर सामने नहीं आ रहे। इसमें बाजी कौन मारेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

सन्नी हजारी एनआईटी पटना से बी.टेक हैं। सन्नी का अभियान उनकी स्थानीय व्यक्ति की छवि पर फोकस करता है। वह अपने दादा, दिग्गज नेता रहे रामसेवक हजारी की याद दिलाते हुए कहते हैं, हमेशा याद रखें कि मेरी तीन पीढ़ियों ने आपकी सेवा की है।वहीं शांभवी चौधरी बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री और महावीर मंदिर न्यास के सचिव और पूर्व आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल की बहू और सायण कुणाल की पत्नी हैं। शांभवी चौधरी के दादा स्वर्गीय महावीर चौधरी भी बिहार सरकार में मंत्री और कई बार विधायक थे।शांभवी चौधरी ने स्नातक की पढ़ाई देश के जाने-माने कॉलेज लेडी श्री राम कॉलेज और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से की है। शांभवी फिलहाल मगध यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी कर रही हैं।

हाल ही में दरभंगा में एक सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने शांभवी का विशेष उल्लेख करते हुए कहा था कि देश की इस बेटी को अवश्य जीतना चाहिए। शांभवी भी अपने अभियान के दौरान इसका उल्लेख करती हैं। रोड शो, सार्वजनिक संवाद और घर-घर जाकर प्रचार करते समय शांभवी कहती हैं मैं सांसद बनने के लिए नहीं बल्कि समस्तीपुर की बेटी बनने के लिए चुनाव लड़ रही हूं। उनके प्रचार के दौरान लगाया जाने वाला नारा ‘शांभवी है तो संभव है’, “मोदी है तो मुमकिन है” से बहुत अलग नहीं है। शांभवी के पक्ष में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की रैली भी हो चुकी है, इसके अलावा उनके ससुर किशोर कुणाल भी उनके लिए कैंपेन कर रहे हैं।महेश्वर हजारी का समस्तीपुर की राजनीति पर मजबूत पकड़ है तो अशोक चौधरी भी बिहार की राजनीति के एक स्थापित चेहरे हैं। अशोक चौधरी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता महावीर चौधरी की पहचान कांग्रेस के बड़े दलित चेहरे के रूप में रही है। वह कई बार बिहार विधानसभा के लिए चुने गए, कई बार राज्य सरकार में मंत्री भी रहे हैं।सन्नी के पिता महेश्वर हजारी कल्याणपुर और चचेरे भाई अमन हजारी कुशेश्वरस्थान से विधायक हैं। ये दोनों सीटें समस्तीपुर लोकसभा में आती हैं।लोजपा में टूट का असर 2024 के चुनाव में हो सकता है और इसका इंडिया गठबंधन को फायदा हो सकता है।

समस्‍तीपुर जिले में दो लोकसभा सीट समस्तीपुर और रोसड़ा (सु) आती थी। परिसीमन के बाद रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र विलोपित हो गया।समस्‍तीपुर लोकसभा सीट से लोजपा (रामविलास) भले मैदान में है, लेकिन रामविलास पासवान का परिवार बाहर है। 33 साल बाद समस्तीपुर जिले में रामविलास पासवान का परिवार बाहर है। वर्ष 1991 में लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान स्वयं रोसड़ा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और सफल भी हुए।वर्ष 1998 में रामविलास पासवान के छोटे भाई रामचंद्र पासवान ने रोसड़ा से जनता दल के टिकट पर भाग्य आजमाया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 1999 में रामचंद्र पासवान जदयू के टिकट पर रोसड़ा से दूसरी बार लड़े। इस चुनाव में उन्हें जीत मिली। वर्ष 2004 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी प्रत्याशी रामचंद्र पासवान ने फिर रोसड़ा से जीत हासिल की।वर्ष 2009 के चुनाव में लोजपा प्रत्याशी रामचंद्र पासवान ,जदयू के महेश्वर हजारी से समस्तपुर में पराजित हो गए, लेकिन 2014 में उन्हें जीत मिली। लोजपा के रामचंद्र पासवान ने कांग्रेस के अशोक कुमार को पराजित किया। जदयू के महेश्वर हजारी तीसरे नंबर पर रहे।

वर्ष 2019 के चुनाव में रामचंद्र पासवान को फिर जीत मिली। लोजपा के रामचंद्र पासवान ने कांग्रेस के अशोक कुमार को फिर मात दी।लेकिन 21 जुलाई, 2019 को उनका निधन हो गया। उसी वर्ष उपचुनाव कराना पड़ा। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने उनके बेटे प्रिंस राज को प्रत्याशी बनाया। प्रिंस ने परिवार की परंपरा कायम रखी और जीत हासिल की।वर्ष 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी विरासत के उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी दो खेमों में बंट गई। रामविलास के दूसरे भाई पशुपति कुमार पारस ने प्रिंस को लेकर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बना ली।वहीं, उनके पुत्र चिराग पासवान लोजपा (रामविलास) नाम से अलग पार्टी बनाई। इस चुनाव में वह राजग का हिस्सा हैं। समस्तीपुर सीट उनकी पार्टी के खाते में आई है। यहां से उन्होंने परिवार से बाहर शांभवी को प्रत्याशी बनाया है। इस तरह 33 वर्ष के बाद समस्तीपुर में रामविलास पासवान का कोई सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है।

समस्तीपुर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। इसमें समस्तीपुर जिले की चार कल्याणपुर, वारिसनगर, समस्तीपुर, रोसड़ा और दरभंगा जिले की दो कुशेश्वर स्थान और हायाघाट विधानसभा सीट शामिल है। समस्तीपुर पहले सामान्य सीट थी। वर्ष 2009 में नए परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया। हायाघाट और रोसड़ा (सु) में भाजपा, कुश्वेसर स्थान,कल्याणपुर और वारिसनगर में जदयू जबकि समस्तीपुर में राजद का कब्जा है।

समस्तीपुर संसदीय सीट (Samastipur Parliamentary Seat) से लोजपा (रामविलास), कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 18 हजार 530 है।इनमें 09 लाख 55 हजार 215 पुरूष, आठ लाख 63 हजार 287 महिला और 28 थर्ड जेंडर हैं, जो चौथे चरण में 13 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।समस्तीपुर के सियासी शह-मात में कौन सफल होगा? यह तो 04 जून को परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा,लेकिन इतना तो तय है कि नीतीश सरकार के दो मंत्रियों की लड़ाई में जीत किसी एक ही होगी। इस मुकाबले में यह भी तय है कि दोनों में से कोई भी जीते, अपने पिता की राजनीतिक विरासत को ही आगे बढ़ाएंगे।

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