Vote For Note Case: वोट के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों-विधायकों पर होगी कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट ने बदला 26 साल पुराना फैसला

Mon, Mar 04 , 2024, 02:58 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज ऐतिहासिक फैसला (historic verdict) सुनाया है. विधानसभा में बोलने और वोट देने के लिए रिश्वत लेने (take bribe to speak and vote) वाले विधायकों, खासदारों को सुरक्षा देने वाला कानून रद्द कर दिया गया है (Vote For Note Case). इसलिए अब सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेकर वोट देना या हॉल में भाषण देना महंगा पड़ेगा.

रिश्वत लेने वाले नेताओं पर कार्रवाई होगी. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने आज सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के फैसले को पलट दिया और स्पष्ट किया कि रिश्वत के बदले वोट लेने पर सांसदों और विधायकों को कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं दी जाएगी.

<blockquote class="twitter-tweet" data-media-max-width="560"><p lang="en" dir="ltr"><a href="https://twitter.com/hashtag/WATCH?src=hash&amp;ref_src=twsrc%5Etfw">#WATCH</a> | On the Supreme Court&#39;s verdict that MP, MLA can&#39;t claim immunity from the prosecution on the charges of bribery, advocate &amp; former Union Minister Ashwani Kumar says, &quot;It&#39;s a historic judgement. I am glad that the Supreme Court has removed the earlier anomaly in the law.… <a href="https://t.co/jp2g0lSkzQ">pic.twitter.com/jp2g0lSkzQ</a></p>&mdash; ANI (@ANI) <a href="https://twitter.com/ANI/status/1764559491066892515?ref_src=twsrc%5Etfw">March 4, 2024</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>

सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों और विधायकों पर कार्रवाई हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के फैसले को रद्द कर दिया है. सीजेआई ने कहा, 'नरसिम्हा राव के फैसले का मतलब अनुच्छेद 105/194 के खिलाफ है. हमारा मानना ​​है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है.'

1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि सीजेआई ने कहा था कि सांसदों, विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र के कामकाज को नष्ट कर देती है. 26 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 1998 के फैसले की समीक्षा की है. आज (सोमवार) मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया.

पीठ ने पिछले साल अक्टूबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रिश्वतखोरी कभी भी अच्छी बात नहीं हो सकती. सरकार ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार का मतलब यह नहीं है कि सांसद और विधायक कानून से ऊपर हैं.

जेएमएम रिश्वत मामले में पांच जजों की बेंच के फैसले पर सात जजों की संविधान पीठ ने पुनर्विचार किया. 1998 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों को विधायिका में बोलने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में अभियोजन से छूट दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे वक्त आ रहा है जब देश में चुनावी माहौल बन रहा है. कुछ ही दिनों में चुनाव आयोग 2024 लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा करेगा.

 ये भी पढ़ें - रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकार के रूप में संरक्षित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

क्या है 1998 का ​​फैसला?
1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में फैसला सुनाया. बहुमत के फैसले में, SC ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) के तहत, सांसदों को सदन में दिए गए किसी भी भाषण या वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्राप्त है.

क्या है झामुमो रिश्वत घोटाला?
पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ सीबीआई का मामला 1993 के जेएमएम रिश्वत मामले से सामने आया. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के शिबू सोरेन और कुछ अन्य सांसदों पर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था. SC ने 105(2) के तहत छूट का हवाला देते हुए मामले को खारिज कर दिया.

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