हमीरपुर, 24 जनवरी (हि.स.)। जिले में विधानसभा की दो सीटों पर अबकी बार भी कांग्रेस को अपनी जमानत बचाने के लाले पड़ेंगे क्योंकि पार्टी अन्तर्कलह के कारण अपना जमीन भी खो चुकी है। कमोवेश स्थिति बुन्देलखंड के अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी दिखाई दे रही है। हालांकि अबकी बार कांग्रेस ने नौजवानों और महिलाओं के लिए बड़े-बड़े चुनावी वादे किए है लेकिन इनका मतदाताओं पर कितना प्रभाव पड़ेगा ये कहना अभी मुश्किल है।
जिले में विधानसभा की दो सीटें है। जिसमें सदर सीट से कांग्रेस पार्टी पिछले करीब 32 सालों से बाहर है। संगठन में बड़े और जमीनी कार्यकर्ताओं की कमी के कारण पार्टी अपना मजबूत गढ़ भी खो चुकी है। जनाधार को साधने के लिए पिछले चुनाव में कांग्रेस के दिग्गजों ने यहां चुनावी महासमर में पसीना बहाया था लेकिन पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे।
क्षेत्रीय दलों की वजह से पार्टी के जातीय समीकरण ही पूरी तरह से बिगड़ गए है। अब जातीय और परम्परागत मतों को फिर से साधने के लिए कांग्रेस यहां ऐसे दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारने को मंथन कर रही है जो पार्टी को एक सीट जिताकर दे सके। इसके लिए कांग्रेस अब नये चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी में है।
विधानसभा की सदर सीट से बादशाह सिंह, कांग्रेस की पूर्व जिलाध्यक्ष नीलम निषाद, देवेन्द्र मोहन चौबे सहित अन्य लोग भी चुनाव लड़ने के लिए आवेदन कर चुके है। उधर जिले की राठ विधानसभा की सुरक्षित सीट में कांग्रेस को जनाधार रखने वाले प्रत्याशी नहीं मिल रहे है। यहां की सीट से चुनाव लड़ने के लिए पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी कुछ माह पहले ही अखिलेश यादव की साइकल पकड़ ली है।
32 वर्ष से सदर सीट पाने को छटपटा रही कांग्रेस
हमीरपुर विधानसभा की सदर सीट लम्बे समय तक कांग्रेस के कब्जे में रही है। लेकिन अब पिछले बत्तीस सालों से कांग्रेस सीट पर कब्जा करने के लिए छटपटा रही है। वर्ष 1985 में यहां की सीट कांग्रेस के कब्जे में रही है लेकिन वर्ष 1989 के चुनाव में यह सीट से कांग्रेस की विदाई हो गई थी जबकि पार्टी तीसरे खाने में चली गई थी। वर्ष 1991 के चुनाव से कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए। सदर सीट से चुनाव में पार्टी चौथे स्थान पर हो गई। वर्ष 1993 से पिछले चुनाव तक चुनाव में कांग्रेस से मजबूत जनाधार भी छिन गया।
साढ़े छह दशक में कांग्रेस का नीचे आया 8 फीसदी वोट
वर्ष 1952 में सदर सीट के चुनाव में कांग्रेस 32.7 फीसदी मतों से जीत का परचम फहराया था लेकिन अब 67 सालों में ही पार्टी के हाथ से पच्चीस फीसदी से अधिक वोट निकल गया है। वर्ष 1989 के चुनाव में कांग्रेस को न सिर्फ अपनी सीट गवानी पड़ी बल्कि वह क्षेत्र बदर हो गई। वर्ष 2002 के चुनाव में कांग्रेस को 4.4 फीसदी मत मिले थे जबकि 2007 में ये चौथे खाने में सिमट गई। वर्ष 2012 व 2014 के चुनाव में पार्टी की थोड़ी स्थिति बदली पर 2019 के उपचुनाव में पार्टी के पास 8.34 फीसदी मत रह गया।
लोकसभा चुनाव में भी जोर का झटका खा चुकी है कांग्रेस
तीन दशकों से संसदीय क्षेत्र की सीट के लिए भी कांग्रेस आम चुनावों में पसीना बहा रही है पर पार्टी अपने खोई जमीन को भी वापस नहीं ले पा रही है। वर्ष 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस का 52.6 से 28.3 फीसदी मत रह गया जबकि 1991 में 18.4, 1996 में 7.12, 1998 में 5.9 व 1999 में कांग्रेस के खाते में 1.47 फीसदी मत ही आए। वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। 2009 में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2014 में कांग्रेस को सिर्फ 8.11 फीसदी ही वोट मिले। पिछले चुनाव में जमानत जब्त हो गई।



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Mon, Jan 24 , 2022, 06:52 AM