पटना। टूटी स्लेट और आधी पेंसिल से ‘ककहरा’ सीखने वाले जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) ने बंधुआ मजदूर, डाक-तार विभाग में लिपिक, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री और अब देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में पहुंचने का स्वर्णिम सफर तय किया और अपने बुलंदा हौसलों से राजनीति ( Bihar Politics) के क्षेत्र में सफलता की नयी इबारत लिखी। बंधुआ मजदूरी से जिंदगी के सफर की शुरुआत कर डाक-तार विभाग (post-telegraph department) में लिपिक बने और राजनीति के मैदान में उतरकर सूबे की सत्ता के सिंहासन पर काबिज रहे। जीतन राम मांझी का जन्म 06 अक्तूबर 1944 को गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार गांव में हुआ। उनके पिता रामजीत राम मांझी खेतिहर मजदूर थे। मांझी बचपन में मां सुकरी देवी और पिता रामजीत मांझी के साथ गांव के ही एक जमींदार के घर में चाकरी करते थे। वर्ष 1946 में, जब श्री जीतन राम मांझी लगभग डेढ़ साल के थे, तब गया जिले में, जहां उनका गांव स्थित था, भारी बाढ़ आई थी। उनका परिवार बरगद के पेड़ पर चढ़कर मौत से बच गया था।जीतनराम मांझी जब सात वर्ष के हुये तो जमींदार के घर बंधुआ मजदूरी करने लगे। उनका काम था, 17 बैल, एक-दो भैस और दो-तीन गाय को चारा खिलाना। जीतनराम मांझी जब 11 साल के हो गए,तो उनके पिता को अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने की चिंता हुई, लेकिन मांझी के पिता के मालिक इसके सख्त खिलाफ थे।मांझी के पिता ने मालिक को सुझाव दिया कि वह चाहते हैं कि उनका बेटा पढ़ाई करे। यदि वह स्कूल जा सके तो उसकी स्थिति में सुधार होगा।
मालिक सहमत नहीं था।उन्होंने गुस्से में आकर मांझी के पिता की पिटाई कर दी। मालिक ने कहा,पढ़ा के अपन बेटवा के का कलेक्टर बनैएभीं। पढ़ावे के का जरूरत है। लेकिन जीतन के पिता जी के दिमाग में ये बात थी कि बेटा को पढ़ाना है।फिर एक कम्परमाइज का फॉर्मूला निकाला। वह ये था कि मालिक के बच्चों को पढ़ाने के लिए मास्टर आता ही है, जीतन काम काज करने के बाद सात बजे उन्हीं लोगों के साथ बैठ जाएगा।टीचर जीतन राम मांझी को पढ़ाने के लिए राजी हो गये। एक गुरुजी जब जमींदार के बच्चे को पढ़ाने आते थे तो वह भी उत्सुक्तावश उन चीजों को ध्यान से सुनते थे, जो बच्चों को बताया जाता था। एक बार, जब जमींदार के बेटे ने होमवर्क पूरा नहीं किया तो शिक्षक क्रोधित हो गए लेकिन मांझी ने सौंपे गए कार्य और उत्तर को दोहराया।पढ़ाई में रुचि देखकर उन्हें जमींदार के बच्चों ने फूटी स्लैट दे दी, जिससे वह लिख पढ़ सकें।मांझी स्लेट के टूटे हिस्से पर पहाड़े लिखकर याद करते थे। मांझी के मन में पढ़ने की ललक थी और अपने पिता तथा जमींदार के बच्चों को पढ़ाने वाले एक शिक्षक से प्रोत्साहन मिलने पर उन्होंने बिना स्कूल जाए सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त कर ली।
महकार गांव से सात किलोमीटर दूर हाई स्कूल में जब जीतन राम मांझी दसवीं क्लास की पढ़ाई कर रहे थे, तब किस्मत ने उन्हें एक बार फिर झटका दिया था। मांझी ने बीमारी के कारण परीक्षा नहीं देने का फैसला किया था। लेकिन जीतन राम मांझी स्कूल के अपने शिक्षक चंद्रदेव बाबू के कहने पर अपना फैसला बदल दिया। जीतन राम मांझी के इस फैसले ने उसके लिए कामयाबी का एक नया दरवाजा खोल दिया।वर्ष 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद श्री मांझी ने वर्ष 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की।जीतन राम मांझी को कॉलेज में 25 रुपये महीने का वजीफा मिला करता था, जिसे वह अपने पिता को भेज दिया करते थे। वह अपना खर्च चलाने के लिए अपनी ही क्लास की लड़कियों को ट्यूशन दिया करते थे।लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाकर उस जमाने में मांझी 75 रुपये महीना कमाने लगे थे।
मांझी तब तक चुनाव को समझने लगे थे।इलाके के नेता उन्हें अपनी प्रचार गाड़ी में ले जाते। इस तरह राजनीति से उनका राब्ता हुआ। तब मांझी कांग्रेस के लिए वोट मांगते थे। इस तरह एक दो चुनाव गुजर गए। मांझी को लगने लगा जब वह दूसरे के लिए वोट मांग सकता हूं तो फिर अपने लिए क्यों नहीं?। मांझी ने राजनीति में शामिल होने की योजना बनाई। वर्ष 1968 में अकाल पड़ा। मांझी के पिता के पास खेतों में कोई काम नहीं था। चूंकि मांझी नहीं चाहते थे कि उनके माता-पिता भूखे मरें, इसलिए उन्होंने नौकरी करने का फैसला किया। ऐसा लग रहा था कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ख़त्म हो गई है। मांझी को 1968 में डाक एवं तार विभाग में लिपिक की नौकरी मिली। वर्ष 1980 के समय की बात है।बताया जाता है कि मांझी गया शहर स्थित राजेंद्र आश्रम जाते थे जो कांग्रेस का कार्यालय था। यहां उनकी मुलाकात गया जिला कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष अनंतदेव मिश्रा से हुई। अनंतदेव मिश्र जीतन राम मांझी को जगन्नाथ मिश्रा के पास ले गए। जगन्नाथ मिश्रा ने जीतन राम मांझी की काबिलियत को परखा और उन्हें इंदिरा कांग्रेस पार्टी से गया के फतेहपुर सुरक्षित विधानसभा के चुनाव के लिए टिकट दिया।
मांझी ने इंदिरा कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया और आंदोलन का हिस्सा बन गए वह 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे' के नारे बुलंद करने लगे।इस बीच उनके भाई की भी सब इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी लग गई थी। घर का खर्चा चलाने में थोड़ी सहूलियत हो गई।मांझी ने लिपिक की नौकरी छोड़ दी और राजनीति में उतर आये।राजनीति की एबीसीडी से अनजान जीतन राम मांझी के लिए यह एकदम नया कदम था। वर्ष 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में फतेहपुर सुरक्षित सीट से मांझी ने जीत दर्ज कर ली। इसके बाद मांझी का राजनीतिक सफरनामा लगातार बढ़ता चला गया। श्री मांझी 1983 में बिहार में चंद्रशेखर सिंह सरकार में राज्य मंत्री बने।इसके बाद श्री मांझी 1985 में फिर विधायक बनें।इसी दौरान एक बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी रहे। 1990 में फतेहपुर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पराजय झेलनी पड़ी थी। कांग्रेस उम्मीदवार श्री मांझी वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी रामनरेश पासवान से महज 182 वोट



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Fri, Jun 07 , 2024, 12:58 PM