लोकसभा चुनाव का उत्तर प्रदेश में आखिरी पड़ाव पूर्वांचल के रण में होना है. पूर्वांचल की सियासत की दशा और दिशा एक समय ब्राह्मण और ठाकुर तय किया करते थे, लेकिन मंडल कमीशन और दलित राजनीतिक चेतना के बाद सियासी हालात बदल गए हैं. अब पूर्वी यूपी की राजनीति में ओबीसी-दलित की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. ओबीसी जाति की राजनीति करने वाले सियासी दलों का आधार पूर्वांचल के इलाकों में ही है. ऐसे में बीजेपी ने निषाद पार्टी से लेकर सुभासपा और अपना दल जैसे दलों को मिला रखा है, जिनकी अग्निपरीक्षा इसी इलाके में होनी है. उधर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का असल इम्तिहान भी पूर्वांचल में ही होना है.
पूर्वांचल क्षेत्र में कुल 27 लोकसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 14 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं और अब 13 सीटों पर एक जून को वोटिंग है. यूपी की जिन 13 सीटों पर सातवें चरण में चुनाव है, उसमें वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, बलिया, गाजीपुर, घोसी, राबर्ट्सगंज, सलेमपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज और बांसगांव शामिल हैं. 2019 में इन 13 सीटों में से बीजेपी 11 और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) दो सीटें और बसपा दो सीटें जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस और सपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन इस बार सियासी हालात बदले हुए हैं. विपक्षी इंडिया गठबंधन ने बीजेपी के लिए राह आसान करती रहीं पिछड़ी जातियों में जबरदस्त सेंधमारी के लिए मजबूत सियासी चक्रव्यूह रच रखा है.
पूर्वांचल में कभी ठाकुर-ब्राह्मण का दबदबा था
पूर्वांचल में कभी ठाकुरों और ब्राह्मणों का पूरी तरह से दबदबा था. कमला पति त्रिपाठी से लेकर कल्पनाथ राय, हरिशंकर तिवारी, अमरमणि त्रिपाठी, रमापति राम त्रिपाठी, कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा, मोहन सिंह, शिव प्रताप शुक्ला, माता प्रसाद पांडेय, हर्ष वर्धन सिंह, पूर्व पीएम चंद्रशेखर, शिव प्रताप शाही, वीर बहादुर सिंह, ब्रह्माशंकर त्रिपाठी, वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे सवर्ण नेताओं के इर्द-गिर्द पूर्वांचल की सियासत सिमटी हुई थी. पूर्वांचल का कोई जिला नहीं था, जहां पर किसी ठाकुर, ब्राह्मण या फिर भूमिहार नेता का दबदबा न रहा हो, लेकिन नब्बे के बाद दलित और ओबीसी का उभार हुआ और पूरी तरह से अपना दबदबा जमाने में कामयाब रहे.
ओबीसी-दलित राजनीति ने अपने पैर जमाए
मंडल कमीशन और कांशीराम की दलित राजनीति चेतना के बाद पूर्वांचल की सियासत में तमाम ओबीसी और अति पिछड़ी जाति के नेता उभरे. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह के दौर में यादव नेता उभरे और उन्होंने ठाकुर व मुस्लिम के साथ समीकरण बनाया. बसपा ने पूर्वांचल में कुर्मी, राजभर, नोनिया और मल्लाह समुदाय के नेताओं को आगे बढ़ाया. बसपा के ज्यादातर नेताओं ने पूर्वांचल में सवर्ण सियासत के खिलाफ खड़े हुए और अपनी राजनीतिक जमीन बनाने में कामयाब रहे.
वहीं, सपा के समाजवादी नेता ठाकुर और ब्राह्मण के साथ संतुलन बनाकर सियासी जगह बनाने में कामयाब रहे, लेकिन कुछ यादव नेता जरूर सवर्ण राजनीति के खिलाफ खड़े हुए. सपा व बसपा के सत्ता में रहते हुए पूर्वांचल में दलित और ओबीसी सियासत काफी मजबूत हुई. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता कांशीराम की सियासी प्रयोग से निकले हैं और बसपा से अलग होकर ही अपनी पार्टी बनाई है. इतना ही नहीं, कुर्मी समुदाय के बीच सियासी आधार रखने वाले अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल ने भी बसपा से निकलकर अपनी पार्टी बनाई थी.
पूर्वांचल की मौजूदा राजनीति में कुर्मी, मल्लाह और यादव वोटर अहम हैं, जिसमें से दो जातियां अगर एक साथ आ जाती हैं तो फिर उनकी ताकत काफी बढ़ जाती है. बीजेपी अपने सवर्ण वोट बैंक के साथ कुर्मी और मल्लाह समुदाय को जोड़ने में कामयाब रही, तो सपा का मुस्लिम-यादव दांव फेल हो गया और बसपा का दलित-मुस्लिम फॉर्मूला भी नहीं चला. इसीलिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस बार पीडीए का फॉर्मूला आजमाया है, जिससे बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त जातीय चक्रव्यूह रचा है.
पूर्वांचल में ओबीसी का फैक्टर
सातवें चरण में लगभग 13 सीटों पर पिछड़े और दलित वोटर निर्णायक हैं. इनमें राबर्ट्सगंज की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए तो बांसगांव अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. चंदौली, बलिया, गाजीपुर और देवरिया सीटों पर पिछड़ों में यादव मतदाता सर्वाधिक हैं, तो सलेमपुर व कुशीनगर में कोइरी बिरादरी के खासे वोट हैं, जबकि मिर्जापुर व महराजगंज में कुर्मी व निषाद मतदाताओं की अच्छी संख्या है. पूर्वांचल में पिछड़ी जाति सैंथवार की भी अच्छी खासी संख्या कुशीनगर, देवरिया और सलेमपुर और बांसगांव में है. देवरिया, गोरखपुर और बलिया में ब्राह्मण वोटर निर्णायक हैं, तो ठाकुर वोटरों का भी रोल अहम है. गाजीपुर और मऊ जैसी सीट पर भूमिहार समुदाय अपना सियासी असर रखते हैं. चंदौली और मऊ सीट पर नोनिया जाति का भी प्रभाव है.



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Thu, May 30 , 2024, 05:43 AM