क्या है बीजेपी का मिशन- 80, मायावती कैसे बीजेपी की राह का रोड़ा? क्या कहते हैं आंकड़े!

Wed, Nov 08 , 2023, 01:02 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Loksabha Election 2024: क्या यूपी में बीजेपी के मिशन- 80 (Mission-80) का सपना पूरा हो पायेगा? बीजेपी के खिलाफ बन रहे INDIA गठबंधन (INDIA alliance) में यदि मायावती (Mayawati) शामिल नहीं होती हैं तो फिर पार्टी का ये दावा लगभग हकीकत बनता दिख रहा है. पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के मायावती के एलान से लोकसभा की ज्यादातर सीटों (Lok Sabha seats) पर त्रिकोणीय मुकाबला (triangular contest) होगा. सपा और बसपा के वोट बंटने के कारण बीजेपी की राह आसान होती जायेगी. 2014 में इसी गणित ने बीजेपी को 73 सीटों पर विजय दिलाई थी. इसमें दो सीटें उसकी सहयोगी अपना दल (एस) की थीं.
आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं कि इस दावे में कितनी सच्चाई है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों पर हार मिली थी लेकिन, 2019 में सपा और बसपा के साथ लड़ने से बीजेपी 16 सीटों पर हार गयी. अब उसके लिए बड़ी चुनौती हारी हुई इन सीटों पर इस बार पताका फहराना है. बसपा के अलग लड़ने से उसकी ये राह आसान दिख रही है. आजमगढ़ और रामपुर पार्टी उपचुनाव में जीत ही चुकी है.
नजीर के तौर पर पिछले साल आजमगढ़ में हुए उपचुनाव के नतीजों को ही देख लें. आजमगढ़ में बीजेपी के दिनेश लाल यादव “निरहुआ” को 3 लाख 12 हजार  768 वोट मिले थे. सपा के धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार 89 वोट मिले लेकिन, बसपा के गुड्डू जमाली को मिले 2 लाख 60 हजार वोटों ने बीजेपी को जीता दिया. निरहुआ साढ़े 8 हजार वोटों से जीत गये.
दूसरी नजीर गाजीपुर सीट है. 2014 में बीजेपी के मनोज सिन्हा ने इसे 32 हजार वोटों से जीता था. तब बसपा को 2 लाख 41 हजार और सपा को 2 लाख 74 हजार वोट मिले थे. यानी त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी को फायदा मिला. सिन्हा 32 हजार से जीते. 2019 में हालात बदल गये. मनोज सिन्हा 1 लाख 20 हजार वोटों के बड़े मार्जिन से हार गये क्योंकि बसपा और सपा के वोट बंटे नहीं. ऐसी ही गणित अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, घोसी, लालगंज, जौनपुर, अम्बेडकरनगर, श्रावस्ती, सहारनपुर, रामपुर और नगीना में भी रहा है.
पश्चिमी यूपी की एक सीट बिजनौर बेहतरीन नज़ीर है. 2014 में जब सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था तब बीजेपी के कुंवर भतेन्द्र सिंह ने ये सीट 2 लाख से ज्यादा मार्जिन से जीता था. तब उन्हें 4 लाख 86 हजार, सपा के शाहनवाज राणा को 2 लाख 81 हजार और बसपा के मलूक नागर को 2 लाख 30 हजार वोट मिले थे. 2019 में कुंवर भतेन्द्र सिंह 70 हजार वोटों से बसपा के मलूक नागर से हार गये. ये हाल तब रहा जब उन्हें 2019 में 2014 से ज्यादा वोट मिले थे. संभल की सीट भी ऐसी ही है. 2014 में बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने 5 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी लेकिन, 2019 में सपा-बसपा के साथ लड़ने से बीजेपी को यहां पौने दो लाख वोटों से शिकस्त मिली. इसीलिए इस बार भाजपा की खुशी साफ दिख रही है. उसे पता है कि त्रिकोणीय मुकाबले में उसकी पौ बारह रहेगी. हालांकि पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोक दल और सपा का गठबंधन उसके लिए थोड़ी चिन्ता का विषय जरूर बना हुआ है.

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