मध्य प्रदेश. चुनावी बाजी जीतने के लिए सियासत (politics) में उम्मीदवार हर एक दांव चलते हैं, जिनके सहारे वो अपने विरोधी प्रत्याशी ज्यादा से ज्यादा नुकसान (maximum damage) पहुंचा सकें. वोट के लिए दोनों ही पार्टियों को मशक्कत करनी पड़ रही है. अगर गफलत में कुछ वोट उन्हें कर देते हैं तो इससे चुनावी गणित पूरी (electoral mathematics) तरह से गड़बड़ाने का खतरा बन जाता है. यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस (BJP and Congress) के जिन उम्मीदवारों के खिलाफ हमनाम वाले निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं, उससे उनकी चिंता बढ़ गई है. कांग्रेस और बीजेपी के लिए कई सीटों पर जहां, उसके अपने बागी चुनौती बने हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ कई जगहों पर ‘डुप्लिकेट कैंडिडेट्स(duplicate candidates)’ के उतरने से चिंता बढ़ गई है. प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के कैंडिडेट से मिलते-जुलते नाम के प्रत्याशी भी ताल ठोक रहे हैं. इस तरह से ‘डुप्लिकेट कैंडिडेट’ कहीं कांग्रेस और बीजेपी के सियासी समीकरण को ही न बिगाड़ दें? राजनीति में एक वोट कटवा’ दांव भी है, जिसे अमलीजामा पहनाने के लिए अपने विरोधी के हमनाम प्रत्याशी को उसके सामने निर्दलीय उतार दिया जाता है.
कांग्रेस प्रत्याशी के ‘डुप्लिकेट कैंडिडेट’
मध्य प्रदेश की करीब 60 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर एक ही नाम के दो प्रत्याशी मैदान में है. कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवारों के हमनाम से उतरे ज्यादातर प्रत्याशी निर्दलीय हैं. इंदौर-1 विधानसभा सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक संजय शुक्ला एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिनके खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में संजय शुक्ला ने भी मैदान में ताल ठोंक रखी है. इस सीट पर बीजेपी से कैलाश विजयवर्गीय भी चुनाव मैदान में हैं, जिसके चलते कांग्रेस को पहले से ही कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है और अब हमनाम निर्दलीय संजय शुक्ला के उतरने से पार्टी की चुनौती बढ़ गई है.
इंदौर-3 विधानसभा सीट से कांग्रेस के दीपक पिंटू जोशी मैदान में है, जिनके नाम से मिलते-जुलते महेश पिंटू जोशी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे हैं. इसी तरह से नरेला विधानसभा सीट पर कांग्रेस से मनोज शुक्ला चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ मनोज शुक्ला बतौर निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं. बांधवगढ़ सीट पर कांग्रेस की प्रत्याशी सावित्री सिंह धुर्वे मैदान में हैं, जहां उनके खिलाफ सावित्री कोल चुनाव लड़ रही हैं. ऐसी ही तराना विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी महेश परमार के नाम से मिलते-जुलते महेश परमार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में ताल ठोंक रखी है.
बीजेपी प्रत्याशी के हमनाम कैंडिडेट
कांग्रेस की तरह बीजेपी प्रत्याशी को भी हमनाम कैंडिडेट की वजह से दो-दो हाथ करना पड़ा रहा है. राऊ विधानसभा सीट पर बीजेपी की मधु वर्मा प्रत्याशी हैं, जिनके खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी एक अन्य मधु वर्मा चुनाव लड़ रही हैं. ऐसे ही बैतूल सीट पर बीजेपी के टिकट पर हेमंत खंडेलवाल चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ उनके नाम से मिलते हुए हेमंत सरियामा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतर गए हैं. बंडा विधानसीट पर बीजेपी से वीरेंद्र सिंह लोधी चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ उनके हमनाम उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह लोधी बतौर निर्दलीय ही चुनाव में ताल ठोंक रखी है.
भिंड विधानसभा सीट पर बीजेपी से नरेंद्र सिंह कुशवाहा चुनावी मैदान हैं, जिनके खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नरेंद्र सिंह किस्मत आजमा रहे हैं. दोपालपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के टिकट पर मनोज पटेल मैदान में हैं, जिनके खिलाफ निर्दलीय के रूप में भी मनोज पटेल नाम से एक अन्य कैंडिडेट भी चुनाव लड़ रहे हैं. ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट पर बीजेपी से नारायण कुशवाहा उतरे हैं, जिनके खिलाफ बतौर निर्दलीय नारायण कुशवाहा मैदान में हैं.
यही हाल तेंदुखेड़ा सीट का भी है, जहां पर बीजेपी के विश्वनाथ सिंह चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ भी निर्दलीय तौर पर विश्वनाथ सिंह नाम से एक अन्य प्रत्याशी हैं. इसी तरह महिदपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी और विधायक बहादुर सिंह के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बहादुर सिंह भी मैदान में हैं.
‘डुप्लिकेट कैंडिडेट’ से बिगड़ न जाए खेल
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जिस तरह कांटे का मुकाबला माना जा रहा है. ऐसे में एक-एक वोट के लिए दोनों ही पार्टियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसे में हमनाम नेताओं ने बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए चिंता बढ़ी दी है, क्योंकि अगर वो कुछ वोट भी पाने में सफल हो गए तो उससे सारा राजनीतिक गणित ही गड़बड़ा जाएगा. मध्य प्रदेश में पिछली बार कई सीटों पर बहुत की कम अंतर से जीत हार हुई थी.
2018 के चुनाव में देखें तो ग्वालियर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक महज 121 वोट से जीत दर्ज करने में सफल रहे थे. इसी तरह सुवासरा सीट पर कांग्रेस के हरदीप सिंह डंग महज 350 वोट के अंतर से चुनाव जीत सके थे. इसी तरह जावरा सीट पर बीजेपी के राजेंद्र पांडेय राजू भैया 511 वोट से जीतने में कामयाब रहे. ऐसे में अन्य सीटों पर अगर ‘हमनाम कैंडिडेट’ अगर 200 से 500 वोट भी महज गफलत में पाने में सफल रहते हैं तो राजनीतिक खेल पूरी तरह से बदल जाएगा. यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों की चिंताएं बढ़ गई हैं?



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Mon, Nov 06 , 2023, 04:10 AM