लखनऊ. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) को दहलीज पर खड़ा देख सभी पार्टियों ने जीत का एजेण्डा सेट (setting the agenda) करना शुरु कर दिया है. इस लोकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा जातीय जनगणना का उछालकर भाजपा के खिलाफ खड़ी पार्टियों ने लीड हासिल करने की कोशिश की है. लेकिन, इस एजेण्डे को जीत के फॉर्मूले (winning formula) के रूप में क्यों देखा जा रहा है ? विपक्षी पार्टियों ने जातीय जनगणना (issue of caste census) का मुद्दा उठाया तो भाजपा ने इसकी काट खोजनी शुरु कर दी. आखिर क्यों ?
इसका जवाब छिपा है इतिहास में. लंबे समय से पिछड़े समाज के नेता इसकी मांग करते रहे हैं. उन्हें मालूम है कि उनकी जितनी संख्या है उस हिसाब से उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. इसीलिए सभी विपक्षी पार्टियां वायदा कर रही हैं कि उनकी सरकार बनी तो जातीय जनगणना करायी जायेगी. पार्टियां भी ओबीसी समाज की ताकत को जानती हैं. खासकर यूपी जहां सबसे ज्यादा ओबीसी की संख्या है. पार्टियां जानती हैं कि अपने बेस वोटबैंक के साथ अति पिछड़ी जातियों को जोड़े बिना जीत का कारगर फॉर्मूला तैयार नहीं हो सकता.
यही वजह है कि सभी पार्टियां इन्हें अपने पालें में करने को बेतात हैं. उनका फोकस गैर यादव अति पिछड़ी जातियों पर है जो अभी तक किसी खास पार्टी के वोटबैंक नहीं रहे हैं. ये चुनाव दर चुनाव अपनी भूमिका बदलते रहते हैं. यही वजह है कि सपा, भाजपा और कांग्रेस इन्हें जोड़ने में जी-जान से जुटी हैं. अखिलेश यादव ने कुछ ही दिन पहले इन्हीं अति पिछड़ी जातियों का सम्मेलन किया था तो कांग्रेस ने भी पूरे प्रदेश में कर डाला.
भाजपा गुरुवार को ओबीसी नेताओं के साथ बड़ी मीटिंग कर रही है.अब कयास लगाये जा रहे हैं कि यदि हाल-फिलहाल योगी मंत्रिमण्डल का विस्तार हुआ तो उसमें ओबीसी समाज को ही सबसे ज्यादा कैबिनेट बर्थ मिलेगी. भाजपा ने पहले से ही इस समाज को भरपूर प्रतिनिधित्व दे रखा है. योगी आदित्यनाथ का मौजूदा मंत्रिमण्डल इसकी गवाही भी देता है. योगी सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री ओबीसी समाज से ही हैं. आंकड़े देखिये.
मौजूदा समय में सीएम और दोनों डिप्टी सीएम को जोड़ दिया जाये तो मंत्रियों की कुल संख्या 52 है. इसमें सबसे ज्यादा ओबीसी समाज के मंत्री हैं. कुल 22. अलग-अलग देखें तो कुल 18 कैबिनेट मंत्रियों (सीएम और डिप्टी सीएम को मिलाकर) में 8 ओबीसी से हैं जबकि 14 स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्रियों में 5 ओबीसी से हैं. 20 राज्यमंत्रियों में 9 ओबीसी समाज से हैं. अब मंत्रिमण्डल विस्तार में भी इस समाज का पलड़ा भारी रहने की संभावना है.
ऐसा नहीं है कि इनकी ताकत को सिर्फ भाजपा ने आंका है. इससे पहले मुलायम सिंह यादव और कांशीराम इनकी ताकत के बल पर सत्ता में आ चुके हैं. इन दोनों ही नेताओं ने अपने बेस वोट के साथ अति पिछड़ी जातियों पर बहुत फोकस रखा था. निषादों के वोट के लिए मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी पर कार्ड खेला था. पटेलों को लामबन्द करने के लिए ददुआ के घरवालों को अपने झण्डे के नीचे लाया था. दूसरी तरफ कांशीराम ने स्वामी प्रसाद मौर्या, लाल जी वर्मा और रामअचल राजभर को हमेशा आगे रखा.
मायावती और अखिलेश यादव के नेतृत्व में ये जातियां धीरे धीरे सपा और बसपा से दूर होती गयीं. ज्यादातर पर भाजपा ने कब्जा कर लिया है. भाजपा ने अति पिछड़ी जातियों के नेताओं को आगे बढ़ाकर, उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देकर अपने पाले में कर लिया. उसे इसका फल भी मिला. भाजपा ने ऐसा करके न सिर्फ लोकसभा में सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया बल्कि लगातार दूसरी बार प्रदेश में पूर्ण और प्रचण्ड बहुमत की सरकार भी बनायी.
इन जातियों की वैल्यू को ही समझते हुए भाजपा ने अपने भीतर भी ऐसी जातियों के नेताओं को पैदा किये. इसके पीछे बड़ी वजह यही रही कि यदि इन जातियों के दूसरी पार्टी के नेता समय – समय पर पाला बदल लें तो भी उसे कोई खास फिक्र न हो. फिर भी भाजपा अच्छी तरह ये जानती है इसमें बहुत समय लगने वाला है. यही वजह है कि अति पिछड़ी जाति के नेताओं को न सिर्फ पार्टी बल्कि पार्टी की शीर्ष नेतृत्व भी हाथों हाथ लेता रहा है. संयज निषाद, ओम प्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल की कीमत भाजपा जानती है. इसीलिए इन्हें अपने साथ रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती.



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Thu, Nov 02 , 2023, 02:21 AM