इंडिया गठबंधन बचाने आगे आए सूत्रधार नीतीश, जेडीयू का एमपी चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए क्यों है गुड न्यूज?

Wed, Oct 25 , 2023, 05:18 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

पटना। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) में नामांकन के चौथे दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने भी पांच कैंडिडेट उतार दिए। जेडीयू के उतरने के साथ ही एमपी असेंबली चुनाव में इंडिया गठबंधन के चार घटक दल कांग्रेस, आप, सपा और जेडीयू लड़ गए हैं। कांग्रेस का लड़ना स्वाभाविक है। लेकिन अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) का लड़ना कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है क्योंकि दोनों बीजेपी विरोधी वोट काट सकते हैं। कुछ लोग तो दावा कर रहे हैं कि यूपी से सटे इलाकों में अखिलेश की सपा और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का लड़ना बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है। ऐसे में नीतीश कुमार की जेडीयू का सांकेतिक तौर पर एमपी में लड़ना कांग्रेस के लिए गुड न्यूज है। कैसे, आगे समझते हैं।
पहले ये समझिए कि कांग्रेस एमपी में लंबे समय तक सरकार में रही है। 2018 के चुनाव में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी और कमलनाथ ने लगभग डेढ़ साल तक सरकार भी चलाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया की 2022 में बगावत के बाद सरकार गिर गई। समर्थक विधायकों के साथ सिंधिया बीजेपी में गए और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में वापसी हो गई। इंडिया गठबंधन बनने से पहले और बाद में भी केजरीवाल देशव्यापी विस्तार में लगे हैं। आप ने कांग्रेस को हराकर ही पहले दिल्ली और बाद में पंजाब में सरकार बनाई। गुजरात में भी उसे 13 परसेंट वोट और 5 सीट मिले हैं। ऐसे में वो मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक लड़ रही है तो अचरज की बात नहीं है। वो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के गढ़ में तीसरा ध्रुव बनकर अलग-अलग राज्यों की राजनीति में प्रासंगिक बनने के मिशन में जुटी है।
उत्तर प्रदेश से सटा इलाका होने के कारण यूपी के प्रमुख दलों का एमपी में भी थोड़ा असर रहा है। 1984 में कांशीराम की बनाई बीएसपी ने पहली बार 1990 में एमपी चुनाव लड़ा ओर 2 सीट जीती। बसपा ने एमपी में 1993 के चुनाव में 11, 1998 के चुनाव में 11, 2003 के चुनाव में 3, 2008 के चुनाव में 7, 2013 के चुनाव में 4 और 2018 के चुनाव में 2 सीट जीती है। इस बार बसपा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने सपा बनाई और पहली बार 1998 का चुनाव लड़े तो 4 सीट जीते। सपा 2003 के चुनाव में 7, 2008 में 1, 2013 में 0 और 2018 में 1 सीट जीती। सपा ने इस बार 42 कैंडिडेट उतार दिए हैं और 50 सीट तक लड़ने का इरादा जताया है। आप भी लगभग 70 सीट पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है।
जनता दल यूनाइटेड 2003 में बना और बनते ही 2003 का एमपी चुनाव लड़ गया। लड़ी 36 पर लेकिन एक सीट बड़वारा में जीत मिली जहां से जीते बच्चन नायक पहले इसी सीट से जनता दल के टिकट पर जीत चुके थे। जेडीयू 2008 में 49 सीट और 2013 में 22 सीट लड़ी लेकिन एक भी जीत नहीं सकी। 2018 में नीतीश ने एनडीए में रहते कैंडिडेट नहीं उतारे। लेकिन 2023 के चुनाव में नीतीश की पार्टी ने 5 सीट पर कैंडिडेट दिए हैं। यह सांकेतिक कदम है। जेडीयू का एमपी में कोई प्रभाव नहीं है। 2008 के चुनाव में 49 में 48 सीट और 2013 में 22 की 22 सीट पर जमानत जब्त हो गई थी। फिर भी नीतीश की पार्टी का एमपी चुनाव लड़ना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह खास तौर पर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए गुड न्यूज है। 
एमपी में सीट बंटवारे पर बातचीत के बाद भी कांग्रेस और सपा के बीच विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं सका। अखिलेश ने कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें नहीं पता था कि इंडिया गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है। अगर ऐसा है तो यूपी में सपा भी कांग्रेस को जवाब देगी। बाद में राहुल गांधी के मैसेज और बड़े कांग्रेस नेताओं के फोन के बाद सपा अध्यक्ष थोड़े नरम पड़े और कहा कि जब लोकसभा चुनाव आएगा तब विचार करेंगे। कांग्रेस को जरूरत होगी तो साथ देंगे क्योंकि मुलायम सिंह यादव और राम मनोहर लोहिया कहकर गए हैं कि कांग्रेस कमजोर होगी तो समाजवादियों से मदद मांगेगी तो मना मत करना। आप भी हर जगह लड़ रही है लेकिन उसने राज्यों में गठबंधन को मुद्दा नहीं बनाया है। 
इंडिया गठबंधन में एक-एक दल और एक-एक नेता को बड़े जतन से मनाकर लाने वाले नीतीश को हालांकि गठबंधन की तीन बैठकों के बाद भी कोई अहम पद नहीं मिला है। बार-बार नाम उछलने के बाद भी नीतीश को संयोजक बनाने से कांग्रेस बचती रही है। मुंबई में गठबंधन की तीसरी मीटिंग में जल्द सीट बंटवारा करने की बात तय होने के बाद भी कांग्रेस द्वारा रणनीति के तहत सीट शेयरिंग को विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद तक के लिए ठंडे बस्ते में डाल देने से गठबंधन के दल वैसे ही नाराज हैं। कांग्रेस को लगता है कि पांच में वो तीन-चार राज्य जीतकर वो सीट बंटवारे के दौरान मोल-भाव करने में ज्यादा मजबूत हो जाएगी। 
सीट बंटवारा टालने में कांग्रेस के एकतरफा रवैए को लेकर गठबंधन में असहजता के माहौल में जब एमपी में अखिलेश और कांग्रेस के बीच झगड़ा चल रहा था तो नीतीश मौन थे, जेडीयू भी चुप रही। अखिलेश ने इंडिया गठबंधन के औचित्य पर सवाल उठाया कि ये क्या बात हुई कि लोकसभा में गठबंधन होगा और विधानसभा में नहीं होगा। ऐसे में गठबंधन के सूत्रधार नीतीश का एमपी चुनाव में जेडीयू के कैंडिडेट देने से अखिलेश को सांकेतिक तौर पर जवाब मिल गया है कि राज्यों में गठबंधन के दल आपस में लड़ सकते हैं। कांग्रेस के स्टैंड को नीतीश का समर्थन मिल गया है कि इंडिया गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है। 
नीतीश ने कांग्रेस की कठिनाई कम कर दी है और अब वो अखिलेश या दूसरे क्षेत्रीय दलों को गठबंधन के सूत्रधार की पार्टी जेडीयू का उदाहरण देकर राज्यों में गठबंधन से मना कर सकती है। इंडिया गठबंधन के फोरम पर इसको लेकर नेताओं के बीच कटुता ना हो, इसकी व्यवस्था नीतीश ने कर दी है जिसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को होगा।

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