राजस्थान. राजस्थान की सियासत (politics of Rajasthan) में सचिन पायलट को घेरने में सिर्फ बीजेपी ही नहीं जुटी है बल्कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) से लेकर चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) तक सियासी चक्रव्यूह (political maze) रच रहे हैं. बीजेपी ने एक तरफ पायलट के जिला प्रभारी गुर्जर नेता रमेश बिधूड़ी को बना रखा है तो दूसरे गुर्जर नेता विजय बैंसला को बगल की सीट उनियारा से टिकट देकर उतार दिया है. वहीं, अब दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने टोंक सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट शोएब खान को प्रत्याशी बनाया है तो असदुद्दीन ओवैसी पहले ही कैंडिडेट उतारने का ऐलान कर रखा है. ऐसे में सवाल उठता है कि ओवैसी-चंद्रशेखर के मुस्लिम और बीजेपी के गुर्जर दांव को पायलट कैसे भेद पाएंगे?
सचिन पायलट 2018 में टोंक विधानसभा सीट से भारी मतों से जीतकर विधायक चुने गए थे और एक बार फिर से इसी सीट से उनके उतरने की संभावना है. पायलट के चलते यह सीट राजस्थान की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक हो चुकी है. इस सीट पर बीजेपी अपना कब्जा जमाने के लिए हरसंभव कोशिश में है. 2018 के चुनाव में बीजेपी ने पायलट के खिलाफ भारी भरकम मुस्लिम प्रत्याशी दांव चला था. वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे युनूस खान को उतारा था, लेकिन सत्ता विरोधी लहर के चलते जीत में वो तब्दील नहीं कर सके. इस बार बीजेपी पूरी रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरी है और पायलट को उनके घर में ही घेरने की रणनीति बनाई है.
बीजेपी का गुर्जर वाला दांव
बीजेपी ने टोंक सीट पर अभी तक कैंडिडेट घोषित नहीं किया है, लेकिन जिस तरह सांसद रमेश बिधूड़ी को प्रभारी बनाया है, उससे साफ है कि गुर्जर दांव चलने की तैयारी है. इतना ही नहीं बीजेपी ने गुर्जर समुदाय से आने वाले विजय बैंसला को देवली-उनियारा विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है, जो टोंक से सटी सीट है. ऐसे में सियासी गलियारों में बीजेपी के इस कदम को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की समीकरणों को प्रभावित करना माना जा रहा है.
सचिन पायलट के बाद राजस्थान में गुर्जरों के दूसरे सबसे बड़े नेता विजय बैसला को माना जाता है, जिन्हें मौका देकर बीजेपी टोंक विधानसभा सीटों की समीकरणों से जोड़कर देख रही है. इसके पीछे बीजेपी की बड़ी रणनीति यह है कि बैंसला के जरिए सिर्फ देवली उनियारा विधानसभा सीट ही नहीं बल्कि टोंक जिले की सभी चारों विधानसभा सीट पर कमल खिलाने की स्टैटेजी है. इस तरह बीजेपी बिधूड़ी और बैंसला के जरिए गुर्जर वोटों को साधने के फिराक में है, क्योंकि पार्टी के दोनों ही नेता गुर्जर समुदाय से आते हैं. इस तरह एक तरफ गुर्जर वोटरों को सियासी संदेश दे रही है तो दूसरी तरफ पायलट के किले में सेंध लगाने की कोशिश है.
टोंक जिले का गणित समझिए
टोंक जिले की सियासत गुर्जर मतदाताओं के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. टोंक जिले में गुर्जर समुदाय के बाद मीणा और मुस्लिम मतदाता आते हैं. बीजेपी ने जिस तरह से पायलट के खिलाफ गुर्जर बिसात बिछाने का काम किया है तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद मुस्लिम दांव चल दिए हैं. दलित नेता चंद्रशेखर ने टोंक सीट पर शोएब खान को प्रत्याशी बनाया है तो ओवैसी भी टोंक सीट पर अपना उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं. माना जा रहा है कि ओवैसी राजस्थान में एआईएमआईएम के महासचिव काशिफ जुबेरी टोंक से चुनाव लड़ सकते हैं.
पायलट की क्या है पॉलिटिक्स ?
सचिन पायलट की टोंक सीट मुस्लिम बहुल्य मानी जाती है. यहां पर सबसे ज्यादा 80 हजार मुस्लिमों के वोट हैं, उसके बाद 50 हजार गुर्जर समुदाय के हैं. 2018 के चुनाव में पायलट को टोंक विधानसभा सीट से 1 लाख 9 हजार वोट मिले थे और बीजेपी के प्रत्याशी यूनूस खान को सिर्फ 54 हजार 841 वोट ही मिल सके थे. ऐसे में पायलट भले ही गुर्जर समुदाय से आते हों, लेकिन मुस्लिम वोटरों ने भी जमकर उनके पक्ष में वोट किया और यही वजह रही थी कि मुस्लिम बहुल सीट पर बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान को हार मिली थी. पायलट ने करीबी यूनुस खान को 54 हजार वोटों से पराजित किया था, लेकिन इस बार उनका दावा पिछले आंकड़े से भी अधिक मतों से जीत हासिल करने की है.
ओवैसी और चंद्रशेखर ने भी खेला दांव
हालांकि, इस बार बीजेपी टोंक सीट पर जिस तरह से रमेश बिधूड़ी को प्रभारी है, उससे एक बात तो साफ है कि मुस्लिम प्रत्याशी के बजाय हिंदू कैंडिडेट उतारने की की रणनीति है. इसके पीछे एक वजह यह भी है कि युनुस खान इस बार टोंक सीट से चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं बल्कि वो अपनी पुरानी डोडवानी सीट से ही उतरना चाहते हैं. ऐसे में टोंक सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार पर सभी की निगाहें लगी हुई है. वहीं, ओवैसी और चंद्रशेखर ने मुस्लिम समुदाय से कैंडिडेट उतारकर यह दांव चला है, जिससे मुस्लिम वोटबैंक में बिखराव तय है.ऐसे में सचिन पायलट के लिए टोंक सीट पर जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा?



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Wed, Oct 18 , 2023, 12:57 PM