Vote Bank Politics: आतंकी हमले पर वोट बैंक की राजनीति

Sat, Oct 14 , 2023, 02:06 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

नई दिल्ली. इजरायल और फिलिस्तीन (Israel and Palestine) के मामले में भारत की दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में मतभेद हमेशा से रहे हैं। जनसंघ शुरू से ही इजरायल के पक्ष में था, और कांग्रेस शुरू से फिलिस्तीन के पक्ष में थी। इसकी जड़ में कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम था, जैसे गांधीजी (Gandhiji) ने भारतीय मुसलमानों (Indian Muslims) के इस्लामिक खलीफा के समर्थन में चलाए गए खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया था, वैसे ही कांग्रेस हमेशा फिलिस्तीन के साथ खड़ी रही है।क्योंकि दुनिया के हर मुसलमान की तरह भारत का हर मुसलमान खुद को फिलिस्तीन के साथ जोड़ता है।
जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक ने इजरायल के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। भले ही 1953 से मुम्बई में इजरायल का एक काऊन्सलेट दफ्तर चल रहा था।भारत और इजरायल के कूटनीतिक संबंध 1991 में नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू हुए और 30 जनवरी 1992 को इजरायल का दूतावास नयी दिल्ली में शुरू हुआ। भारत इजरायल में कूटनीतिक संबंध शुरू करवाने में सुब्रहमन्यम स्वामी की अहम भूमिका थी। स्वामी का एक साढू इजरायली यहूदी है। सुब्रह्मण्यन स्वामी ने नरसिंह राव को तैयार किया और उनकी सहमति से इजरायल जाकर बातचीत शुरू की थी।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 2000 में भारत का कोई मंत्री आधिकारिक यात्रा पर इजरायल गया। पहले गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवानी और बाद में उसी साल विदेशमंत्री जसवंत सिंह आधिकारिक यात्रा पर इजरायल गए। इन्हीं यात्राओं के दौरान भारत-इजरायल का आतंकवाद विरोधी साझा आयोग गठित हुआ। 2017 में मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने इजरायल की आधिकारिक यात्रा की।
आठ अक्टूबर को जब हमास के दर्जनों आतंकियों ने समुद्र, जमीन और आसमान के रास्ते इजरायल में घुस कर आतंकी हमला किया, तो स्वाभाविक है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले की निंदा की।यह आतंकी हमला कुछ वैसा ही था, जैसे अमेरिका में 11 सितंबर 2001 में हुआ या 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान के आतंकियों ने समुद्र के रास्ते मुम्बई में घुसकर किया था।
भारत और इजरायल में सन 2000 में आतंकवाद के खिलाफ एक दूसरे की मदद का समझौता हुआ था। दुनिया के जिस किसी देश ने आतंकवाद को झेला है, उसने आतंकवाद की इस वारदात की निंदा की है।भारत आतंकवाद को सबसे लंबे समय से झेल रहा है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद हमास के हमले की निंदा की, तो लगा कि कांग्रेस ने एक ठीक स्टैंड लिया है, लेकिन एक आशंका बनी हुई थी कि कांग्रेस इस स्टैंड पर कायम रह पाएगी या नहीं। ठीक 24 घंटे बाद 9 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में जयराम रमेश अकेले पड़ गए, जहां मुस्लिम वोट बैंक खोने के डर से कांग्रेस ने फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पास किया। कांग्रेस ने अपने प्रस्ताव में हमास और आतंकवादी वारदात का जिक्र तक नहीं किया। हालांकि बैठक में मौजूद कुछ सदस्यों ने संतुलित स्टैंड लेने के लिए हमास के आतंकी हमले की निंदा करने की बात लिखने की वकालत की थी। कांग्रेस हमास और फिलिस्तीन में अंतर कर सकती थी, क्योंकि हमास फिलिस्तीन नहीं है। वह फिलिस्तीन का एक इस्लामिक आतंकी सगठन है। लेकिन भारत के मुस्लिम वोट बैंक को समझने वाले कांग्रेस के नेताओं का मत था कि हमास की निंदा से मुस्लिम वोटर कांग्रेस से नाराज हो जाएगा। कांग्रेस ने अपने केरल और उत्तरप्रदेश के मुस्लिम नेताओं से फीडबैक लेकर ही प्रस्ताव में हमास और उसकी आतंकवादी वारदात का जिक्र नहीं किया। कांग्रेस को डर है कि अगर उन्होंने हमास की निंदा की तो कर्नाटक के चुनाव में जो मुस्लिम उससे जुड़ना शुरू हुआ है, वह फिर उससे दूर चला जाएगा। कांग्रेस ने आतंकवाद की निंदा नहीं करके इजरायल पर हुए आतंकी हमले को भी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर लिया। आतंकवाद की इस वारदात का फिलीस्तीन इजरायल समस्या से कोई संबंध नहीं है। फिलिस्तीन की तरफ से फिलिस्तीन लिबरेशन ओर्गेनाईजेशन (पीएलओ) आधिकारिक संगठन है, जिसमें यासर अराफात की फतेह पार्टी समेत फिलिस्तीन के कई राजनीतिक दल शामिल हैं, लेकिन हमास उसमें शामिल नहीं है। 1993 के ओस्लो समझौते में पीएलओ ने इजरायल को, और इजरायल ने पीएलओ को मान्यता दे दी थी। हालांकि 2018 में पीएलओ ने एकतरफा इजरायल की मान्यता निलंबित कर दी थी। ओस्लो समझौते के बाद यासर अराफात ने इजरायल के खिलाफ आतंकवाद और हिंसा की निंदा की थी। इस्लामी संगठन हमास (हरकाह अल मुकवाम्हा अल इस्लामिया) 1987 में मुस्लिम ब्रदरहुड से अलग हो कर बना था। फिलिस्तीन की गाजा पट्टी पर हमास की हुकूमत है। इसके अलावा फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर भी हमास का प्रभाव है। हमास और फतेह में टकराव चल रहा है। अब समझने वाली बात यह है कि इजरायल के साथ वार्ता के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से पीएलओ अधिकृत है, और पीएलओ हमास को मान्यता नहीं देता।पीएलओ की प्रमुख पार्टी फतेह और हमास में टकराव खत्म करने के सारे प्रयास विफल रहे हैं, तो हमास की आतंकवादी वारदात की निंदा नहीं करके भारत की कांग्रेस पार्टी क्या हासिल करना चाहती है। आश्चर्य यह है कि कांग्रेस की आशंका सही साबित हो गई। भारत की लेफ्ट बुद्धिजीवी जमात और मुस्लिम हमास के समर्थन में खड़े हो गए हैं, जो भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ भी एकजुट होकर खड़े थे। इजरायल में हुए आतंकी हमले के तीन दिन बाद 11 अक्टूबर को जॉन दयाल, रवि नायर, हन्नानमोल्लाह, हर्ष मंदर, अपूर्वानन्द, एन्नी राजा, एन. साई बालाजी और कई अन्य ने फिलिस्तीन के राजदूत से मुलाक़ात करके भारतीयों की ओर से फिलिस्तीन के लोगों के साथ एकजुटता प्रकट की, हालांकि उनमें से कोई भी भारत के नागरिकों का प्रतिनिधित्व नहीं करता, इनमें से कोई भी जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि नहीं था। 

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