Assembly Election 2023. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव (assembly elections) का बिगुल बज चुका है. पांचों राज्यों में सत्ता की चाबी अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के मतदाताओं के हाथों में है. 2018 में दलित-आदिवासी (Scheduled Caste) का विश्वास नहीं जीत पाने के चलते बीजेपी को तीन राज्यों में सत्ता गंवानी पड़ गई थी. इस बार के चुनावी रण (election battle) में बीजेपी और कांग्रेस का फोकस एससी-एसटी सीटों (SC-ST seats) पर है, क्योंकि इसे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने की सीढ़ी माना जाता है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना सहित पांच राज्यों में कुल 669 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 250 सीटें एसी-एसटी के लिए सुरक्षित है, जो 37.36 फीसदी सीटें होती हैं. कांग्रेस ने पांच साल पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में दो तिहाई एससी-एसटी सुरक्षित सीटों पर जीत का परचम फहराकर बीजेपी के सत्ता में बने रखने के उम्मीदों पारी फेर दिया था. इसी तरह तेलंगाना में केसीआर और मिजोरम में एमएनएफ ने करिश्मा दिखाया था. यही वजह है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता का तिलिस्म इन्हीं सुरक्षित सीटों में छिपा है.
राजस्थान में 59 सीटें सुरक्षित
राजस्थान की सियासत में दलित और आदिवासी वोटर काफी निर्णायक है. राज्य की सत्ता का फैसला इन्हीं दोनों समुदाय के वोटों से तय होता है, क्योंकि 17 फीसदी दलित और 13 फीसदी आदिवासी वोटर हैं. राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 30 फीसगी यानि 59 सीटें सुरक्षित हैं, जिनमें से 34 सीटें एससी और 25 सीटें एसटी के लिए हैं. 2013 के चुनाव में बीजेपी ने 45 सुरक्षित सीटें जीतकर राज्य की सत्ता को सुनिश्चित किया आई थी, लेकिन 2018 में घटकर 21 पर आ गई थी. बीजेपी 11 एसटी और 10 एससी सीटें जीती थी.
वहीं, 2013 में कांग्रेस सिर्फ सात सुरक्षित सीटें ही जीती थी,जो 2018 में बढ़ाकर 34 सीटों पर पहुंच गई थी. कांग्रेस 21 एसटी और 13 एससी सीटें जीतने में सफल रही थी और सत्ता में वापसी किया था. ऐसे में साफ तौर पर समझा जा सकता है कि कैसे राजस्थान में सत्ता का तिलिस्म एससी-एसटी सुरक्षित सीटों में छिपा है. इसीलिए बीजेपी और कांग्रेस पूरा दमखम इन्हीं सीटों पर लगा रखा है.
एमपी की एससी-एसटी सीट का समीकरण
मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी वोटर किसी भी रा दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते है. एमपी में 16 फीसदी एससी और 21 फीसदी एसटी मतदाता हैं. राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें एससी-एसटी के लिए सुरक्षित हैं, जिनमें 47 सीट एसटी और 35 सीटें एससी के लिए हैं. 2013 के चुनाव में बीजेपी सुरक्षित 82 सीटों में से 53 सीटें जीतने में सफल रही थी जबकि 2018 में घटकर 25 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस 2013 में सिर्फ 12 सुरक्षित सीटें ही जीती थी, लेकिन 2018 के चुनाव में बढ़कर 40 सीटों पर पहुंच गई और सरकार बनाने में सफल रही. इसीलिए बीजेपी और कांग्रेस ने एससी और एसटी समुदाय के वोटों को हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी सीट का दांव
छत्तीसगढ़ की सियासत आदिवासी और दलित समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. राज्य में 34 फीसदी आदिवासी वोटर्स हैं और उनके लिए 29 सीटें सुरक्षित हैं. दलित 11 फीसदी के करीब है और उनके लिए 10 सीटें सुरक्षित हैं. इस तरह से राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 39 सीटें एससी-एसटी के लिए सुरक्षित है, जो करीब 40 फीसदी से ज्यादा होता है. 2018 के चुनाव में बीजेपी ने 39 सुरक्षित सीटों में से महज 6 सीटें ही जीत सकी थी जबकि कांग्रेस ने एसटी की 29 में से 28 सीटें जीती थी और छह एससी सुरक्षित सीटें जीतने में सफल रही. इसके दम पर कांग्रेस ने बहुमत हासिल कर सत्ता में वापसी की थी और बीजेपी को 15 साल के बाद विदा होना पड़ा. ऐसे में अब दोनों की पार्टियां पूरे दमखम के साथ एससी-एसटी के लिए सुरक्षित सीटों पर मशक्कत कर रहे हैं.
तेलंगाना-मिजोरम एससी-एसटी सियासत
तेलंगाना में दलित और आदिवासी मतदाता को साधे बिना सत्ता पर काबिज होना नामुमकिन है, क्योंकि 18 फीसदी एससी तो 12 फीसदी एसटी मतदाता हैं. राज्य में तीस फीसदी के करीब दोनों समुदाय के वोटर है, जिसके चलते तेलंगाना की कुल 119 विधानसभा सीटों में से 31 सीटें सुरक्षित हैं, जिनमें से 12 सीटें एसटी और 19 सीटें एससी के लिए रिजर्व हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्यादातर रिजर्व सीटें केसीआर की पार्टी जीतने में सफल रही थी, लेकिन इस बार सियासी हालत बदले हुए नजर आ रहे हैं. कांग्रेस ने पूरे दमखम के साथ जुटी हुई है तो बीजेपी का भी फोकस इन्हीं सुरक्षित सीटों पर है.
वहीं, मिजोरम की सियासत तो आदिवासी समुदाय के हाथों में है, क्योंकि पूरा इलाका पहाड़ी है. राज्य की कुल 40 सीटों में से 39 सीटें एसटी समुदाय के लिए रिजर्व हैं और एक सीट सामान्य वर्ग के लिए हैं. मिजोरम में एससी समुदाय के लिए कोई सीट नहीं है. 2018 के चुनाव में एमएनएफ का प्रदर्शन बेहतर रहा था और सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुई थी, लेकिन इस बार उसे चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है.



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Wed, Oct 11 , 2023, 03:43 AM