Indian Womens: चुनावी साल में महिलाओं के लिए आरक्षण (reservation for women) को लेकर 2 बड़ी खबरें सामने आईं। पहली, संसद में ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल (Women's Reservation Bill) को मंजूरी मिल गई। दूसरी मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी (government jobs) में महिलाओं को 35% आरक्षण मिल गया, लेकिन इन 2 बड़े फैसलों ने 2 बड़े सवालों को भी जन्म दिया है। पहला- क्या वाकई महिलाओं को आरक्षण की ज़रूरत है? दूसरा- क्या उन्हें वाकई आरक्षण का लाभ पूरी ईमानदारी से दिया जाएगा?
आरक्षण की शुरुआत इसलिए की गई थी, ताकि कमजोर और शोषित वर्ग को कोई उसके अधिकारों से महरूम न रख सके। हमारे देश में महिलाओं को लंबे समय तक हाशिये पर रखा गया है। उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता रहा। हालांकि, बीते कुछ सालों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला। महिलाओं की स्थिति में सुधार भी आया, लेकिन इस सुधार को और बेहतर बनाने की ज़रूरत है। इसमें आरक्षण सहायक हो सकता है, लेकिन तब जब उनका यह हक उन्हें बेहद ईमानदारी के साथ दिया जाए।
बॉस की कुर्सी तक पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी
आगे बढ़ने की दौड़ में महिलाएं आज पुरुषों के साथ कदमताल मिला रही हैं। खासतौर पर प्राइवेट सेक्टर में महिलाएं सफलता के नित नए आयाम स्थापित कर रही हैं। दुनिया के मुकाबले भारत में वरिष्ठ पदों पर काम करने वाली महिलाओं की संख्या पिछले 5 सालों में काफी बढ़ी है। पिछले साल आई ग्रांट थॉर्नटन की इंटरनेशनल बिजनेस रिपोर्ट बताती है कि देश में 2017 से 2022 के बीच कंपनियों में बॉस की कुर्सी तक पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या में इजाफा हुआ है।
2017 में वरिष्ठ पदों पर काम करने वाली महिलाएं 17% थीं, जो 2022 में बढ़कर 38% हो गईं। वहीं वैश्विक स्तर पर बात करें तो 2017 में दुनियाभर में महिला बॉस 25% थीं, जो 2022 में 32% हो गईं, यानी भारत के आंकड़े ज्यादा संतोषजनक हैं। ऐसे में अब चुनावी आरक्षण के बाद देश-प्रदेश या समाज की व्यवस्था बदलने में भी महिलाएं सहायक हो सकेंगी।
सरपंच पति, पार्षद बयां करते महिलाओं की असली स्थिति
यदि आरक्षण की व्यवस्था को पूरी ईमानदारी से अमल में लाया जाता है तो यह महिलाओं के लिए बूस्टर डोज की तरह काम कर सकता है। अब तक अलग-अलग स्तर पर आरक्षण की जो व्यवस्था है, उसमें ईमानदारी की कमी नजर साफ दिखाई देती है। जरा नजरें घुमाकर देखिये, विधानसभा से लेकर नगर पालिका तक, चुनावों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं। इन सीटों पर महिलाएं लड़तीं और जीतती भी हैं, लेकिन इस जीत में उनकी जीत कितनी होती है? सरपंच पति, पार्षद पति जैसी उपाधियां हकीकत बताने के लिए काफी हैं।
‘पंचायत’ वेब सीरीज में भी तो यही दिखाया गया है। इस वेब सीरीज में नीना गुप्ता सरपंच की भूमिका में हैं और रघुवीर यादव ने सरपंच पति का किरदार निभाया है। इसकी कहानी वही दर्शाती है, जिसका सामना आरक्षण वाली कुर्सी पर बैठी महिलाओं को करना पड़ता है। ‘पंचायत’ में जरूर सरपंच अपने अधिकारों के लिए मुखर होती हैं, लेकिन असल जिंदगी में ऐसा मुश्किल ही हो पाता है। इसलिए इस व्यवस्था का ईमानदारी से अमल सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है।
महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए आज आरक्षण के साथ आमजन से लेकर खास वर्ग तक के सहयोग और समर्थन की भी ज़रूरत है, ताकि आरक्षण सिर्फ झुनझना बनकर न रह जाए। आज महिलाएं इसरो की वैज्ञानिक के रूप में मिशन मून को सफल बना रही हैं। राष्ट्रपति के रूप में देश को नई राह दिखा रही हैं, ऐसे में उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था के साथ-साथ उनका सम्मान और उनका हक उन्हें पूर्ण तौर पर मिलना ही चाहिए।



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Tue, Oct 10 , 2023, 11:15 AM