Assembly Elections: राजस्थान में बरकरार रहेगा सत्ता परिवर्तन का रिवाज या फिर चलेगा गहलोत का सियासी जादू?

Mon, Oct 09 , 2023, 02:01 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

राजस्थान. राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly elections) की औपचारिक घोषणा (formally announced) हो गई है. राज्य की 230 सीटों पर एक चरण में 23 नवंबर को चुनाव होंगे. वहीं नतीजे 3 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे. सवाल है कि सूबे में साढ़े तीन दशकों से हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड (trend of change of power) इस बार बरकरार रहेगा या फिर अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का जादू चलेगा. कांग्रेस और बीजेपी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में है, लेकिन दोनों के बीच जिस तरह कांटे का मुकाबला है, उसके चलते बसपा और हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) की पार्टी आरएलपी किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए है. ऐसे में देखना है कि राजस्थान की राजनीतिक बाजी किसके हाथ लगती है?
राजस्थान की सियासत में पिछले पांच सालों से कांग्रेस अंदरूनी कलह से संघर्ष करती रही है. सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच वर्चस्व की जंग जारी रही, लेकिन हाईकमान के हस्ताक्षेप के बाद फिलहाल शांति है. बीजेपी भी कई गुटों में बंटी हुई है और इस बार पार्टी ने मुख्यमंत्री के चेहरे को घोषित न करके सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की रणनीति अपनाई है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा इस पर सहमत नहीं है. इस तरह से बीजेपी में भी अंतर्कलह कम नहीं है. इस तरह दोनों ही मुख्य पार्टियां राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रही हैं.
राजस्थान का सियासी समीकरण
राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं, जिसमें 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. राज्य के 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 100 सीटें जीती तो बीजेपी को 73 सीटें मिली थी. बसपा 6, आरएलपी 3, बीटीपी 2, सीपीआई 2, आरएलडी 1 और निर्दलीय 13 सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने थे. मौजूदा समय में कांग्रेस के 108 और बीजेपी के 70 विधायक हैं, क्योंकि बसपा के टिकट पर जीतने वाले विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
2018 के चुनाव में वोटिंग परसेंट के लिहाज से देंखें तो कांग्रेस को 39.30 फीसदी और बीजेपी को 38.77 फीसदी वोट मिले थे. इस तरह से दोनों के वोट प्रतिशत में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था, लेकिन 2013 की तुलना में 2018 में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में 6.23 फीसदी का इजाफा हुआ था और बीजेपी को 6.40 फीसदी वोटों का नुकसान. इसी का नतीजा था कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीटों में बड़ा फर्क था.
राजस्थान में सत्ता परिवर्तन का टेंड्र
राजस्थान में साढ़े तीन दशक के सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है यानि हर पांच साल पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सत्ता बदलती रही है. एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस. इस तरह से दोनों ही दलों के बीच सत्ता की अदला-बदली का खेल चला आ रहा है. मौजूदा समय में अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार है. इसके चलते ही बीजेपी को अपनी वापसी की पूरी उम्मीदें दिख रही हैं, लेकिन गहलोत अपनी योजनाओं के दम पर सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को बदलना चाहते हैं. बीजेपी इस रिवाज को बनाए रखने की कवायद में है, जिसके लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक मोर्चा संभाले हुए हैं.
राजस्थान में कौन से मुद्दे पर बिछी बिसात
कांग्रेस के सामने सत्ता विरोधी लहर को कम कर सरकार बचाने की चुनौती है तो बीजेपी एक बार फिर से राज्य की सत्ता में वापसी में जुटी है. राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस सरकार के सामने अपराध और पेपर लीक जैसे बड़े मुद्दे हैं, जिन्हें विपक्ष लगातार उठा रहा है. बीजेपी लगातार हिंदुत्व के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने में जुटी है. पिछले कुछ समय में विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं, जो एक बड़ा मुद्दा इस बार के चुनाव में है. यही वजह है कि पेपर लीक की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए गहलोत सरकार को नकल विरोधी कानून बनाना पड़ा है. बीजेपी के तमाम छोटे बड़े नेता इसे लगातार उठा रहे हैं. चित्तौड़गढ़ की रैली में पीएम मोदी ने राजस्थान के युवाओं से वादा करते हुए कहा था एक-एक पेपर लीक माफिया का पता लगाकर पाताल में भेजने का काम करेंगे.
कांग्रेस गहलोत सरकार के विकास मॉडल को लेकर जनता के बीच में उतरी है. 500 रुपये में गैस सिलेंडर, चिरंजीवी परिवारों की महिला मुखियाओं को निःशुल्क स्मार्टफोन, बिजली मुफ्त, इलाज मुफ्त जैसी योजनाओं को लेकर कांग्रेस वापसी में अपनी उम्मीदें लगाए हुए हैं. राइट टू हेल्थ बिल, 10 लाख तक का बीमा कवर, इसके अलावा जातिगत जनगणना कराना और ओबीसी के आरक्षण दायरे को बढ़ाने का भी वादा कर रखा है. इसके अलावा क्षेत्रीय दल गहलोत सरकार की नाकामियों को लेकर चुनावी मैदान में उतरे हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार सत्ता में किसकी वापसी होती है?

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