क्या ‘INDIA’ गठबंधन में कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं कपिल सिब्बल?

Mon, Sep 04 , 2023, 04:28 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की तीसरी बैठक मुंबई में हुई, जिसकी मेजबानी उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी (एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना यूबीटी) ने की थी. इस बैठक में राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने भी शिरकत की थी. सिब्बल की उपस्थिति ने कई नेताओं को भले ही असहज कर दिया हो, लेकिन विपक्षी गठबंधन INDIA में कांग्रेस के लिए वह तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं. कपिल सिब्बल के INDIA गठबंधन के तमाम घटक दल के नेताओं से बेहतर संबंध हैं, जिसके जरिए कांग्रेस को गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच सर्वस्वीकार्य बनाने और सीट शेयरिंग फॉर्मूले में कपिल सिब्बल एक अहम कड़ी बन सकते हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी (PM Modi) और बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी दलों ने अभी से चक्रव्यू रचना शुरू कर दिया है. विपक्षी गठबंधन INDIA की 31 अगस्त-एक सितंबर को दो दिवसीय बैठक मुंबई में हुई, जिसमें अचानक कपिल सिब्बल की एंट्री होते ही INDIA गठबंधन के सभी नेता बेचैन हो गए. सिब्बल को ‘INDIA’ की बैठक में शामिल होने का न्योता जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुक अब्दुल्ला ने दिया था, जिसके बाद ही वो बैठक में शरीक हुए थे.

पहली पंक्ति में खड़े नजर आए सिब्बल
हालांकि सिब्बल के बैठक में शिरकत करने की उम्मीद किसी को भी नहीं थी. इसीलिए संजय राउत (Sanjay Raut) के साथ बातचीत करते हुए सिब्बल ने जब बैठक में एंट्री की तो सभी आश्रर्यचकित रह गए. इसकी वजह यह थी कि सिब्बल पूर्व कांग्रेसी नेता हैं और पिछले साल उन्होंने राहुल गांधी की अलोचना करते हुए पार्टी छोड़ दी थी और सपा के समर्थन से राज्यसभा सदस्य बन गए थे. यही वजह रही कि जब मुंबई की बैठक में शामिल होने के लिए वह पहुंचे तो सियासी चर्चा के केंद्र में आ गए. इतना ही नहीं विपक्षी नेताओं के फोटो सेशन में पहली पंक्ति में खड़े नजर आए.

वक्त के साथ पिघलने लगी रिश्तों पर जमी बर्फ
कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) एक सधे हुए राजनेता और पेश से वकील हैं. कांग्रेस छोड़ने से पहले भले ही राहुल गांधी पर हमलावर रहे हों, लेकिन जब उन्होंने पार्टी को अलविदा कहा तो शब्दों की मर्यादा को नहीं खोया. सिब्बल ने यही कहा था कि कांग्रेस और मेरे रिश्तों में कोई खटास नहीं है. मेरे आज भी उनसे अच्छे संबंध हैं. कांग्रेस से 30 सालों से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब लगा कि वक्त आ गया है कि पार्टी छोड़ दूं. वहीं, कांग्रेस में बने गुट जी-23 में रहते हुए कपिल सिब्बल ने खुलेआम कहा था कि गांधी परिवार को कांग्रेस का नेतृत्व छोड़ देना चाहिए, लेकिन जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो गांधी परिवार और कांग्रेस पर कुछ नहीं बोले. वक्त के साथ रिश्तों पर जमी बर्फ भी पिघलने लगी है.

सिब्बल ने विपक्षी रणनीति पर किया मंथन
कपिल सिब्बल भले ही कांग्रेस के साथ न हो, लेकिन किसी दूसरी पार्टी में शामिल नहीं हुए. राज्यसभा में वह भले ही सपा के समर्थन से पहुंचें, लेकिन एक निर्दलीय सदस्य के तौर पर हैं. इस तरह सिब्बल ने राजनीति में अपने लिए एक दरवाजा खुला रखा और अब उसी रास्ते से प्रवेश करना चाहते हैं. मुंबई की बैठक में शिरकत करके उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए हैं, जहां पर सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे तक उपस्थित थे. सिब्बल ने मुंबई की INDIA बैठक में विपक्षी रणनीति पर मंथन किया, जहां पर सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर भी चर्चा हुई.

राज्य स्तर पर सीटों के बंटवारे के लिए कमेटी बनाने का फैसला
ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) तक चाहते हैं कि 30 सितंबर तक हर हाल में सीट बंटवारा तय हो जाए. कमोबेश यही राय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की भी है. नीतीश कुमार ने भी सीट शेयरिंग फॉर्मूले को जल्द से जल्द सुलझाने पर जोर दिया था, लेकिन कांग्रेस की मंशा विधानसभा चुनाव के बाद की है. इस तरह से छत्रप चाहते हैं कि अभी सीट शेयरिंग होने से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी कुछ सीटें मिल जाएंगी. पंजाब और दिल्ली में लोकसभा सीटें छोड़ने के बदले केजरीवाल एमपी और राजस्थान में अपनी पार्टी के लिए कुछ सीटें चाहते हैं तो सपा यूपी के बदले एमपी में सीटों की उम्मीद लगाए हुए है. राज्य स्तर पर सीटों के बंटवारे के लिए कमेटी बनाने का फैसला हुआ है.

सिब्बल के विपक्षी दलों के साथ मजबूत संबंध
वहीं, अब कांग्रेस का वह समय नहीं है, जब पूरे देश में उसकी तूती बोलती थी. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया है तो कुछ जगह पर जनाधार सीमित है. गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, गोवा और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पहले जैसी मजबूत नहीं रह गई. राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं. कांग्रेस की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर दबाव बनाने में जुटे हैं. कपिल सिब्बल INDIA गठबंधन में कांग्रेस और छत्रप के बीच सीट शेयरिंग का कोई सर्वमान्य फार्मूला और रास्ता निकाल सकते हैं, क्योंकि उनके तमाम विपक्षी दलों के साथ मजबूत संबंध हैं.

सिब्बल ने दिया सभी विपक्षी दलों का साथ
दरअसल, कपिल सिब्बल सियासत ही नहीं करते बल्कि देश के जाने-माने वकील भी हैं. कांग्रेस और विपक्ष के ज्यादातर नेताओं ने सिब्बल से कभी न कभी कानूनी लड़ाई में मदद ली है. इसलिए उनके सब नेताओं से बेहद प्रगाढ़ निजी संबंध भी हैं. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के ज्यादातर मुकदमों में कपिल सिब्बल ने ही बतौर वकील पैरवी की और आरजेडी की मदद से वह एक बार बिहार से राज्यसभा में भी गए. इसी तरह सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ भी उनके संबंध बेहतर हैं, शिवपाल-अखिलेश के बीच सपा की दावेदारी पर घमासान मचा था तो सिब्बल ने कानूनी लड़ाई लड़कर ही अखिलेश यादव के पक्ष में फैसला कराया था. उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना की कानूनी लड़ाई भी सिब्बल ही लड़ रहे हैं.
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के साथ भी कपिल सिब्बल के रिश्ते ठीक-ठाक हैं. टीएमसी की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के मामले भी सिब्बल देखते हैं. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, बीजेडी नेता पिनाकी मिश्रा, अकाली नेता नरेश गुजराल के कपिल सिब्बल से बेहद करीबी निजी रिश्ते हैं. ऐसे में कांग्रेस कपिल सिब्बल को छत्रपों के साथ तालमेल बैठाने के लिए एक ट्रंपकार्ड के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. अन्ना आंदोलन के दौरान यूपीए के वरिष्ठ मंत्री के रूप में उस आंदोलन को समाप्त कराने में कपिल सिब्बल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.

दूरी पाटने में अहम साबित हो सकते हैं सिब्बल
अन्ना आंदोलन के प्रथम चरण की सारी वार्ताएं कपिल सिब्बल के घर पर ही होती थीं. इस लिहाज से सिब्बल आम आदमी पार्टी के साथ भी समन्वय बनाने और दूरी पाटने में अहम साबित हो सकते हैं. बीजू जनता दल और अकाली दल अभी भी विपक्षी गठबंधन INDIA से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में कपिल सिब्बल को अगर उन्हें साथ लाने की जिम्मेदारी दी जाती है तो उसे भी वह बाखूबी निभा सकते हैं. कपिल सिब्बल लगातार यह कहते रहे हैं कि समान विचार और मुद्दों के लिए संघर्ष करने वाले दलों और उनके नेताओं के साथ निरंतर संवाद होता रहे. इस तरह के संवाद से ही परस्पर सहमति और समझदारी बनेगीय वैचारिक स्तर पर भी हम एक दूसरे के नजदीक आएंगे और व्यक्तिगत स्तर पर भी रिश्ते बनेंगे. इसके बाद ही जाकर 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर कोई कारगर रणनीति बन पाएगी.

कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच सेतु का काम कर सकते हैं सिब्बल
सिब्बल ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में भी कहा था कि 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी सरकार के खिलाफ सिर्फ फौरी गठबंधन या सीटों के तालमेल भर से काम चलने वाला नहीं है. इसके लिए सभी दलों के बीच जो दूरियां हैं, टकराव के बिंदु और मुद्दे हैं, उन पर मिल बैठकर बात करना जरूरी है. तभी ऐसा रास्ता निकलेगा जो सबको स्वीकार हो और सबके राजनीतिक हित भी सुरक्षित रहें. सिब्बल की बातों से एक बात साफ है कि 2024 में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन को वो मजबूत करना चाहते हैं. सिब्बल अब विपक्षी खेमे के साथ आकर खड़े हो गए हैं तो कांग्रेस उनका कैसे इस्तेमाल करती यह देखने वाली बात होगी, लेकिन एक बात साफ है कि वह कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच सेतु का काम कर सकते हैं.

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