महानगर संवाददाता
मुंबई। राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति में राज्यपाल के अधिकार कम नहीं किए गए हैं। हालांकि इसके साथ उन्होंने राज्यपाल को कटघरे में खड़ा कर दिया। अजित पवार ने कहा कि मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को विधानपरिषद के लिए 12 नामों की लिस्ट भेजी थी। इसे भेजे हुए एक साल बीत चुका है, ये नाम 170 विधायकों की समर्थन वाली सरकार ने भेजे हैं, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। यह कहां फिट बैठता है ? क्या यह सही है ? क्या ऐसा लोकतंत्र चलता है ?
बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने फैसला लिया था कि राज्यपाल को सरकार की तरफ से सुझाए गए नामों में से वाइस चांसलर की नियुक्ति करनी होगी। जब अजित पवार से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि राज्यपाल के अधिकारों में कोई कटौती नहीं की गई है। वाइस चांसलर के चयन के लिए बनी कमेटी पांच या सात नामों का चयन करेगी। इसके बाद सरकार की तरफ से दो नाम भेजे जाएंगे। इनमें से राज्यपाल एक नाम फाइनल करेंगे। इसका अर्थ यह है कि सरकार पांच-सात तय नहीं करेगी। जो समिति है, वह तय करेगी। यह समिति सरकार के पास आएगी। इनमें से दो नाम सरकार राज्यपाल को भेजेगी। इसमें कौन सी राजनीति, सरकार का हस्तक्षेप कैसा है? जो लोग आरोप लगा रहे हैं वे बेबुनियाद हैं। कुछ लोगों के पास आरोप लगाने के अलावा कोई काम नहीं बचा है।
अजित पवार ने कहा कि मुख्यमंत्री ने 12 विधायकों की सूची भेजी थी, इसे भेजे एक साल हो गए। इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ। ऐसा लोकतंत्र में चलता है क्या? लोकतांत्रिक तरीके से नाम आने के बाद जो नाम नियम में बैठते हैं, उन्हें चेक कर उन्हें विधायक बनने का अवसर दिया जाना चाहिए।



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Thu, Dec 16 , 2021, 08:53 AM