हरिद्वार: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Draupadi Murmu) ने रविवार को कहा कि हिमालय के इस अंचल से अनेक पवित्र नदियां तो निकलती ही हैं, यहां से ज्ञान-गंगा की अनेक धाराएं भी प्रवाहित होती हैं। यह महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाले विकसित भारत का अग्रिम स्वरूप है। श्रीमती मुर्मु यहां पतंजलि विश्वविद्यालय (auditorium of Patanjali University) के सभागार में आयोजित द्वितीय दीक्षांत समारोह में 10 विद्यार्थियों को उनकी उत्कृष्ट अंकों के साथ स्नातक और परास्नातक परीक्षाओं में उत्तीर्ण (undergraduate and postgraduate examinations) होने पर स्वर्ण पदक से विभूषित किया। इनमें अधिकांशत: छात्राएं थी। समारोह में कुल 1424 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई। जिसमें 744 विद्यार्थी स्नातक और 615 परास्नातक उत्तीर्ण हैं। इनके अतिरिक्त, 54 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक, तीन को विद्या वाचस्पति और, 62 शोधार्थियों को उनकी शोध उपाधि विद्या वारिधि प्रदान की गई।
श्रीमती मुर्मु ने अपने उद्बोधन में उपाधि प्राप्त करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को हार्दिक बधाई और आशीर्वाद देते हुए पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों के जीवन-निर्माण में सहभागी अध्यापकों और अभिभावकों को भी मैं बधाई देती हूं। छात्राओं के अभिभावकों की मैं विशेष सराहना करती हूं।”राष्ट्रपति ने कहा,“मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई है कि आज उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों में 64 प्रतिशत संख्या बेटियों की है। पदक प्राप्त करने वाली बेटियों की संख्या छात्रों की तुलना में चौगुनी है। यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे कुल विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या 62 प्रतिशत है। यह केवल संख्या नहीं है, यह महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाले विकसित भारत का अग्रिम स्वरूप है।”
उन्होंने कहा कि साथ ही, यह भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का विस्तार है जिसमें गार्गी, मैत्रेयी, अपाला और लोपामुद्रा जैसी विदुषी महिलाएं समाज को बौद्धिक और आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करती थीं। श्रीमती मुर्मु ने विश्वास व्यक्त किया कि हमारी शिक्षित बेटियां अपनी आंतरिक शक्ति और प्रतिभा से भारत-माता का गौरव बढ़ाएंगी। उन्होंने कहा, "लोक-परंपरा में ‘हरि’-द्वार का यह परम पावन क्षेत्र ‘हर’-द्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस परंपरा के अनुसार, यह पवित्र स्थान ‘हरि’ यानी विष्णु के दर्शन का द्वार भी है तथा ‘हर’ यानी शिव के दर्शन का भी द्वार है। ऐसे पवित्र भूखंड में देवी सरस्वती की आराधना करने वाले विद्यार्थी और आचार्य बहुत सौभाग्यशाली हैं।
राष्ट्रपति ने कहा, “हिमालय के इस अंचल से अनेक पवित्र नदियां तो निकलती ही हैं, यहां से ज्ञान-गंगा की अनेक धाराएं भी प्रवाहित होती हैं। उनमें इस विश्व-विद्यालय की एक अविरल धारा भी जुड़ गई है।" उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुसार आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने वाले इस विश्व-विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय आप सबने लिया। इससे, आप सब एक महान सांस्कृतिक परंपरा के संवाहक बने हैं। उन्होंने कहा कि भारत की महान विभूतियों ने मानव-संस्कृति के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया है। मुनियों में श्रेष्ठ, महर्षि पतंजलि ने योग के द्वारा चित्त की, व्याकरण के द्वारा वाणी की तथा आयुर्वेद के द्वारा शरीर की अशुद्धियों को दूर किया। उनको विनीत होकर, करबद्ध प्रणाम करने की हमारी परंपरा है। उनके पवित्र नाम पर स्थापित इस विश्व-विद्यालय के परिसर से मैं महर्षि पतंजलि को सादर प्रणाम करती हूं।” श्रीमती मुर्मु ने कहा कि इस विश्व-विद्यालय द्वारा महर्षि पतंजलि की महती परंपरा को आज के समाज के लिए सुलभ कराया जा रहा है। योग एवं आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में इस योगदान की मैं सराहना करती हूं। उन्होंने कहा, "मुझे बताया गया है कि इस विश्व-विद्यालय द्वारा योग-पद्धति, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्रों में शिक्षा एवं अनुसंधान को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह प्रयास स्वस्थ भारत के निर्माण में सहायक है।
इसके लिए मैं आप सबकी सराहना करती हूं। श्रीमती मुर्मू ने विद्यार्थियो से कहा,“आपके विश्व-विद्यालय की भारत-केन्द्रित शिक्षा-दृष्टि के प्रमुख आयामों पर मेरा ध्यान गया जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुई हूं। ये आयाम हैं: विश्व बंधुत्व की भावना, प्राचीन वैदिक ज्ञान एवं नूतन वैज्ञानिक अनुसंधान का समन्वय, तथा वैश्विक चुनौतियों का समाधान।” उन्होंने कहा,“आपका विश्व-विद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक संदर्भों में आगे बढ़ा रहा है। आप सब इस ज्ञान-यज्ञ के गौरवशाली सहयोगी हैं। वसुधैव कुटुंबकम् का हमारा सांस्कृतिक आदर्श पृथ्वी एवं मानवता के समग्र कल्याण से अनुप्राणित है। आप सबने, इस मनोरम स्थान पर, इस विश्व-विद्यालय के आदर्शों के अनुरूप शिक्षा प्राप्त की है।
राष्ट्रपति ने कहा,“आप सबने यह अनुभव किया होगा कि पर्यावरण का संरक्षण करना तथा जीवनशैली को प्रकृति के अनुरूप ढालना मानव समुदाय के भविष्य के लिए अनिवार्य है। मुझे विश्वास है कि आप सब जलवायु-परिवर्तन सहित अन्य वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सदैव तत्पर रहेंगे। इस विश्व-विद्यालय की ध्येय-दृष्टि की अभिव्यक्ति में सभी लोगों के सुखी रहने की कामना की गई है। सर्वमंगल की यह कामना हमारी संस्कृति की पहचान है। इस मंगल कामना से ही समरसता एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। मुझे विश्वास है कि आप सभी विद्यार्थी समरसता के जीवन-मूल्य को कार्यरूप देंगे। श्रीमती मुर्मू ने कहा,“इस विश्व-विद्यालय द्वारा योग एवं आयुर्वेद के शिक्षण को प्रमुखता दी जाती है। साथ ही, विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय से शांतिपूर्ण जीवनशैली को अपनाने का मार्गदर्शन दिया जाता है। शिक्षा का यह मार्ग आपके जीवन-निर्माण में सहायक है तथा हमारे पूरे समाज के लिए कल्याणकारी है।
राष्ट्रपति ने श्रीमद्भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि उसके एक अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने, दैवी सद्गुणों और समृद्धियों के विषय में भी बताया है। उन्होंने दैवी सद्गुणों में ‘स्वाध्याय: तप आर्जवम्’ को शामिल किया है। स्वाध्याय का अर्थ है – निष्ठापूर्वक अध्ययन एवं मनन। तप का अर्थ है – कष्ट सहते हुए भी अपने कर्तव्य का पालन करना। आर्जवम् का अर्थ है – अन्तःकरण एवं आचरण की सरलता।” उन्होंने कहा कि दीक्षांत के बाद भी, स्वाध्याय की प्रक्रिया में आपको आजीवन संलग्न रहना है। तपस्या और सरलता, जीवन को शक्ति देने वाले मूल्य हैं। समारोह में राज्यपाल सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पतंजलि के प्रमुख स्वामी रामदेव, महामंत्री आचार्य बालकृष्ण प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।



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