One Country One Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 'एक देश, एक चुनाव' (one country, one election) के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (Union Minister Ashwini Vaishnav) ने बुधवार को यह जानकारी दी.
देशभर में एक साथ चुनाव कराने की मांग वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट बुधवार को मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट के सामने रखी गई. पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (Former President Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता वाली एक समिति ने एक साथ चुनाव की अनुमति देने के लिए संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है. संभावना है कि आगामी शीतकालीन सत्र में इस संबंध में एक विधेयक संसद में पेश किया जाएगा.
हालांकि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक देश, एक चुनाव की अवधारणा को मंजूरी दे दी है, लेकिन इस अवधारणा को लागू करने में कई कठिनाइयां हैं. उस संबंध में अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं. इस विषय पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर निम्नलिखित हैं...
एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है?
एक देश, एक चुनाव की अवधारणा में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय स्वशासी निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की उम्मीद की जाती है.
क्या पहले भी एक साथ हुए हैं चुनाव?
भारत में पहले चार आम चुनाव लोकसभा और विधानसभाओं (Lok Sabha and Legislative Assembly) के चुनाव एक साथ हुए थे. उस समय, कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सत्ता में थी. इससे 1967 के चौथे आम चुनाव तक यह संभव हो सका. उसके बाद चूंकि कांग्रेस ने अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही लोकसभा चुनाव करा लिए थे, इसलिए चुनाव अलग से कराए गए. फिलहाल देश में हर साल किसी न किसी राज्य में पांच से छह चुनाव होते हैं. अगर नगर निगम और पंचायत चुनावों को शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा बहुत बड़ा है. वर्तमान में, केवल चार राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में लोकसभा चुनावों के साथ-साथ विधानसभा चुनाव होते हैं.
एक देश, एक चुनाव' किसलिए?
राजनीतिक दल पिछले कुछ समय से एक देश, एक चुनाव की अवधारणा पर चर्चा कर रहे हैं. कुछ पार्टियां इसका समर्थन कर रही हैं तो कुछ इसका विरोध कर रही हैं. बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है. इसके अलावा, एक देश, एक चुनाव के समर्थकों का तर्क है कि लगातार चुनाव सरकारी व्यवस्था को बाधित करते हैं और नागरिकों को पीड़ित करते हैं.
सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों द्वारा बार-बार उपयोग से उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. बार-बार आचार संहिता लागू होने से निर्णय लेने की प्रक्रिया में गतिरोध पैदा होता है.इस अवधारणा के समर्थक यह भी कहते हैं कि विकास कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है.
एक देश एक चुनाव के लिए संविधान और अन्य कानूनी प्रावधानों में बदलाव की आवश्यकता होगी. एक साथ चुनाव कराने और फिर इसे राज्य विधानसभाओं में ले जाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है. अगर एक साथ चुनाव होंगे तो सारा ध्यान केंद्रीय स्तर पर दिया जाएगा. राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों को किनारे कर देंगे। इस अवधारणा के विरोधियों को डर है कि इसका असर राज्य स्तर पर चुनाव नतीजों पर पड़ेगा.
शीर्ष पैनल
सितंबर 2023 में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन. के. सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे शामिल थे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपने से पहले समिति ने कुल 65 बैठकें कीं. यह रिपोर्ट 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मार्च में सौंपी गई थी. रिपोर्ट को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट के सामने रखा गया और मंजूरी दे दी गई.
समिति की मुख्य सिफारिशें क्या हैं?
समिति ने संविधान में संशोधन करने की सिफारिश की है ताकि एक साथ दो चरणों में चुनाव कराये जा सकें. इसके मुताबिक पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव (Lok Sabha and Assembly elections) एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे चरण में, आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगर निगम और पंचायत चुनाव होंगे. समिति ने चुनाव आयोग को और अधिक सशक्त बनाने के लिए संविधान में संशोधन करने की भी सिफारिश की है. राज्य निर्वाचन आयोग के परामर्श से एकल मतदाता सूची और ईपीआईसी तैयार की जानी चाहिए.यह भी सुझाव दिया गया है कि इन संशोधनों को कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए.
अगर किसी को बहुमत नहीं मिला तो क्या होगा?
यदि चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है, यदि विपक्षी दल अविश्वास प्रस्ताव लाता है या ऐसी कोई अन्य स्थिति आती है, तो शेष अवधि के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए.
केंद्रीय चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पूर्व-योजना बनाएगा कि एक साथ चुनाव की तैयारी कैसे की जाए, मशीनरी कैसे स्थापित की जाए और जनशक्ति, मतदान कर्मचारियों, सुरक्षा बलों और ईवीएम / वीवीपीएटी को तैनात करने के लिए कदम उठाए जाएं ताकि चुनाव एक साथ हो सकें. समिति ने सरकार के तीनों स्तरों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से यह सुझाव दिया है.
विधानसभा और लोकसभा चुनावों के साथ स्थानीय चुनावों का समन्वय कैसे होगा?
समिति की सिफारिश के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों (local self-government bodies) के चुनाव होंगे. इस तरह ये चुनाव लोकसभा और विधानसभा के कार्यक्रम के अनुरूप होंगे. इसके लिए कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी की आवश्यकता होगी.
क्या होगा फायदा?
एक साथ चुनाव होने से मतदाताओं को सुविधा होगी, परेशानी से मुक्ति मिलेगी और मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा. साथ ही एक साथ चुनाव होने पर प्रवासी मजदूर वोट देने के लिए छुट्टी ले सकेंगे. इससे आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन चक्र बाधित नहीं होगा और सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ भी कम होगा.
दुनिया के किस देश में ऐसा चुनाव होता है?
दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलीपींस में एक साथ चुनाव होते हैं. केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने भी इन तरीकों का अध्ययन किया.



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Wed, Sep 18 , 2024, 07:18 PM