CG- Pola Festival : पाेला पर्व दाे सितम्बर काे, मिट्टी के बैल और खिलाैनाें से सजे बाजार! 

Sun, Sep 01 , 2024, 10:47 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

रायपुर। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पोला का त्याैहार किसान और बच्चों (Festival of farmers and children) द्वारा 2 सितंबर को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा (celebrated)। पर्व को लेकर बच्चों के लिए व पूजा अर्चना के लिए मिट्टी से बने बैल व खिलौनों (Bulls and toys) के बाजार सज कर तैयार हो चुके हैं (Markets decorated and ready)। इस पर्व काे लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुरवासियाें में भी खासा उत्साह देखने काे मिल रहा है, परिजन अपने बच्चाें के साथ मिट्टी के खिलाैनाें सेे सजे बाजार में खरीद करने पहुंच रहे हैं। पोला पर्व में छत्तीसगढ़ी पकवान ठेठरी, खुरमी जैसे पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं। पोला का पर्व किसानों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। पोला पर्व किसानों और खेतीहर मजदूर के लिए विशेष महत्व रखता है।

राजधानी रायपुर शहर के गाेलबाजार(Golbazar), शास्त्री चौक, टिकरापारा, गुढि़यारी , तेलीबांधा, संताेषी नगर बाजार समेत ग्रामीण अंचलों में नादिया बैल व पोला जाता बिक्री के लिए फुटपाथ पर दुकानें सजी हुई है। पूछपरख करने के साथ बाजार में खरीदी भी शुरू हो गई है। पोला पर्व के दिन इन मिट्टी के बैल और खिलौनों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की जाएगी।

क्यों पड़ा त्यौहार का नाम पोला

विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है. तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहाँ रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था।एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा। यह दिन बच्चों का दिन कहा जाता है, इस दिन बच्चों को विशेष प्यार, लाढ देते है.

पोला त्यौहार का महत्व

भारत, जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते है। पोला दो तरह से मनाया जाता है, बड़ा पोला एवं छोटा पोला। बड़ा पोला में बैल को सजाकर उसकी पूजा की जाती है, जबकि छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल या घोड़े को मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले जाते है और फिर कुछ पैसे या गिफ्ट उन्हें दिए जाते है। पोला पर्व में छत्तीसगढ़ी पकवान ठेठरी, खुरमी जैसे पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं।

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