नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार यानि आज एससी-एसटी वर्ग (SC-ST category) के उप-वर्गीकरण की वैधता पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (Castes and Scheduled Tribes) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया.
राज्य सरकार को दी जाने वाली शक्तियाँ
मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ (Chief Justice Dhananjay Chandrachud) की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने एससी, एसटी यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उप-वर्गीकरण को लेकर अहम फैसला सुनाया। इसके चलते अब राज्य सरकार का इस संबंध में वर्गीकरण किया जा सकेगा. क्या राज्यों को एससी-एसटी आरक्षण (SC-ST reservation) के भीतर उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है? इस पर सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ के सामने सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया.
इन जजों को संविधान पीठ में शामिल किया गया
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बी. आर. संविधान पीठ में जस्टिस गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे. न्यायमूर्ति त्रिवेदी को छोड़कर छह न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया।
आख़िर मामला क्या है?
पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में से 50 प्रतिशत सीटें 'वाल्मीकि' और 'मजहबी सिखों' को देने का प्रावधान किया था. 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर पंजाब (Punjab) और हरियाणा उच्च न्यायालय (Haryana High Court) ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि वंचितों को लाभ देना जरूरी है. दो बेंचों के अलग-अलग फैसलों के बाद मामला 7 जजों की बेंच को भेजा गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जाति कोई एकात्मक समूह नहीं है. 15% आरक्षण को अधिक महत्व देने के लिए सरकार द्वारा इसे उप-वर्गीकृत किया जा सकता है। अनुसूचित जातियों में भेदभाव अधिक प्रचलित है. सुप्रीम कोर्ट ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था. राज्य सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए अनुभवजन्य डेटा एकत्र कर सकते हैं. यह सरकार की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता.
संविधान में क्या है प्रावधान?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को विशेष दर्जा देते समय संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि कौन सी जातियाँ उनके अंतर्गत आएंगी. यह अधिकार केंद्र सरकार के पास है. अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित जातियों को एससी और एसटी कहा जाता है. एक राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित जाति दूसरे राज्य में अनुसूचित जाति नहीं हो सकती है. सामाजिक न्याय मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018-19 में देश में 1,263 एससी जातियां थीं. लेकिन अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप जैसे राज्यों में एससी में कोई जाति नहीं है.
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Thu, Aug 01, 2024, 11:08