Burden of Studies on Children: पढ़ाई का बोझ बच्चों में मानसिक समस्याओं का कारण बन रहा है? क्या है शिक्षा विशेषज्ञों का कहना? 'ऐसे' मदद करें

Thu, May 23, 2024, 02:11

Source : Hamara Mahanagar Desk

Child Care : आजकल बदलते समय (changing times) के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदल रहा है। डिजिटल पढ़ाई (digital learning) जैसी विभिन्न चीजों के उभरने के साथ, कई माता-पिता अपने बच्चों को कम उम्र में ही बहुत सारी ट्यूशन, ग्रूमिंग कक्षाओं (tuitions, grooming classes) में भेज देते हैं, जिससे कुछ बच्चे तनावग्रस्त हो जाते हैं। इसी तरह माता-पिता को भी अपने बच्चों को लेकर कई तरह की टेंशन रहती है। इसमें उन्हें अच्छी शिक्षा (good education) देने से लेकर अच्छी आदतें विकसित (developing good habits) करने तक कई चीजें शामिल हैं, लेकिन कई बार इस प्रक्रिया में कुछ माता-पिता ध्यान नहीं देते, बल्कि दे ही नहीं पाते। इससे बच्चों पर एक अलग दबाव बनता है, जिससे वे कई तरह के मानसिक विकारों (mental disorders) का शिकार हो सकते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि बच्चों में मानसिक समस्याओं का असली कारण क्या हो सकता है।

बदलते समय के साथ शिक्षा व्यवस्था में बदलाव
बदलते समय के साथ-साथ लोगों की सोच, जीवनशैली और खान-पान में भी बदलाव आ रहा है। हालाँकि, इस बदलाव में कई अन्य चीज़ें भी शामिल हैं, जिनमें से एक है शिक्षा प्रणाली। पढ़ने-लिखने का सीधा संबंध बेहतर भविष्य से है। लेकिन इससे बच्चों पर शुरू से ही एक अलग तरह का दबाव पड़ता है, इसलिए छात्रों को कई तरह की मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कम उम्र में बच्चों में मानसिक समस्याएं बढ़ना चिंता का विषय है। बाहर चल रही प्रतिस्पर्धा को देखते हुए छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन करने का एक अलग ही दबाव रहता है। इससे वे क्रोधित, आक्रामक और कम आत्मविश्वासी महसूस कर सकते हैं। इसके कारण सिरदर्द, पेट दर्द, अनिद्रा जैसे लक्षण भी अनुभव हो सकते हैं। कुछ मामलों में, ये मनोवैज्ञानिक समस्याएं आत्म-नुकसान का कारण बन सकती हैं। 

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षणों को पहचानें

अगर आपका बच्चा हमेशा गुस्से में रहता है, लोगों से पहले की तुलना में कम बातचीत करता है, अपने खान-पान पर ध्यान नहीं देता है और अपनी नींद के पैटर्न में बदलाव करता है, तो ये तनाव और अवसाद के लक्षण हैं। अगर हम समय रहते इसकी पहचान कर लें तो इसे गंभीर स्थिति में पहुंचने से रोक सकते हैं। पढ़ना-लिखना जरूरी है, लेकिन बच्चों पर इतना दबाव न डालें कि वे कम उम्र में ही तनाव का शिकार हो जाएं। 

स्वतंत्र रूप से संवाद करें
पढ़ाई के साथ-साथ ऐसा माहौल बनाएं जहां बच्चे घर, स्कूल, कोचिंग में अपनी समस्याओं पर खुलकर चर्चा कर सकें। बच्चों को यह आज़ादी देकर आप उन्हें तनाव और अवसाद का शिकार होने से बचा सकते हैं। उन्हें यह भी समझाएं कि मानसिक रूप से स्वस्थ होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक रूप से स्वस्थ होना और यदि उन्हें पेशेवर मदद लेने की ज़रूरत है, तो ऐसा करने में संकोच न करें। 

सामाजिक दबाव से दूर रहें
उन्हें दुनिया में हो रही स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के बारे में बताएं। इससे तनाव बढ़ने के बजाय पढ़ने, लिखने या अन्य काम के लिए प्रेरणा मिलती है। यह बच्चों को शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन कराती है।

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