भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गषीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को मनायी जाती है। इसे दत्त जयंती भी कहा जाता है। इसी दिन सती अनुसूईया की कोख से भगवान दत्तात्रेय का जन्म प्रदोष काल में हुआ था। इसीसे जन्मोत्सव उनका दोपहर के बाद मनाया जाता है। महायोगेश्वर भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से त्रिदेवों की पूजा का फल प्राप्त होता है। वे आजन्म ब्रह्मचारी व संयासी रहें। इस वर्ष भगवान दŸत्तात्रेय की जयंती 18 दिसंबर पावन दिन शनिवार को है।
हिंदु सनातन वैदिक उपासना व संयास धर्म मे दत्तात्रेय भगवान का महत्व विशेष है। भगवान दत्तात्रेय सप्त ऋषि अत्रि व माता अनुसूईया के पुत्र हैं। अत्रि पुत्र होने के कारण इन्हें आत्रेय कहा जाता है। वे भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव त्रिदेवों के संयुक्त अंशावतार हैं। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठा स्थान भगवान दत्तात्रेय का हैं। दतात्रेय में ईश्वर और गुरू दोनों रूप समाहित हैं, इसीलिए उन्हें परब्रह्ममूर्ति सदगुरू और श्रीगुरूदेवदत भी कहा जाता हैं। उन्हें गुरू वंष का प्रथम गुरू, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार दतात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की षक्ति का पता लगाया था और चिकित्सा षास्त्र में क्रांतिकारी अन्वेषण किया था। दतात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेष्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दतात्रेय थे। भगवान दतात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था। भगवान दतात्रेय ने जीवन में कई लोगों से षिक्षा ली। दतात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी षिक्षा ग्रहण की। दतात्रेयजी कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है, उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरू माना है, इस प्रकार दत्तात्रेय के 24 गुरू हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाष, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी। पौराणिक कथा के अनुसार माता अनुसूया एक पतिव्रता नारी थीं। इन्होने ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के समान बल वाले एक पुत्र के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी इस कठिन साधना के कारण तीनो देव इनकी प्रशंसा करते थे। जिस कारण तीनो देवियों सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती जी को माता अनुसूया से ईर्ष्या होने लगी थी। इन देवियों को पतिव्रता धर्म पर बहुत अभिमान भी था। तब भगवान विष्णु ने एक लीला रची। तब देवर्षि नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए तीनों देवियों के पास बारी-बारी से पहुंचकर सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म की प्रशंसा की। तब तीनों देवियों के कहने पर त्रिदेव माता अनुसूया की परीक्षा लेने उनके आश्रम पहुंचे। तीनों देव रूप बदलकर साधु वेष में अनुसूइया के पास पहुंचे और उनसे भोजन कराने को कहा तो माता ने हां बोल दिया। लेकिन तीनो ने कहा कि वे भोजन तब ही ग्रहण करेंगे, जब वे निर्वस्त्र होकर शुद्धता से उन्हें भोजन परोसेंगी। माता ने कुछ क्षण रूककर हामी भर दी, क्योंकि उन साधु का वह अपमान नहीं करना चाहती थी। माता ने मंत्र उच्चारण कर अपने तपोबल से त्रिदेवो को छः माह के छोटे-छोटे बालकों में परिवर्तित कर दिया, तब तीनों रोने लगे। फिर तीनों बालकों को बिना वस्त्र के अनुसूईया ने स्तनपान कराया और पालने में रख दिया। उधर देवियों को अपने पति के वापस न आने से चिंता हो गईं। तब नारदजी ने उनके पास जाकर सब घटनाक्रम बताया। इससे तीनों देवियों को अपने किए पर पछतावा हुआ। माता अनुसूईया ने क्षमा मांगकर अपने पतियों को वापस देने का आग्रह करती हैं। माता तीनों देवों को उनका मूर्त रूप दे देती हैं। तब तीनो देव वरदान मांगने को कहते हैं, तब माता ने तीनों देवों को पुत्र स्वरूप में पाने की मांग रखी। इसके बाद अनुसूइया के गर्भ से भगवान दŸाात्रंय जन्म लेते हैं। जो तीनो देवों का रूप कहलाते हैं। इस प्रकार माता अनुसूया परीक्षा में सफल हुई और उन्हें तीनों देवो के समान पुत्र की प्राप्ति हुई। यह त्रिदेव के रूप में जन्मे भगवान दतात्रेय हैं। इसके कई षिष्य भी थे। जिनमे परषुराम भी आते हैं। कहा जाता हैं दतात्रेय देव ही योग, प्राणायाम के जन्म दाता थे। दतात्रेय देव ने ही कार्तिकेय को ज्ञान दिया था। इनके कारण ही प्रहलाद एक महान विष्णु भक्त एवम राजा बना था। इन्होने ही नरसिम्हा का रूप लेकर हिरण्याकष्यप का वध किया था। कई वेदों एवम पुराणों के दतात्रेय के जीवन का उल्लेख मिलता हैं।



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Fri, Dec 17 , 2021, 07:01 AM